विजय दिवस क्यों मनाया जाता है ?
भारत में प्रत्येक वर्ष 16 दिसंबर को एक अहम दिन मनाया जाता है जिसका नाम है “विजय दिवस”। ये दिवस 1971 में भारत–पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में मिली भारत की विजय की याद में मनाया जाता है। कई लोग “कारगिल विजय दिवस” और “विजय दिवस” को लेकर असमंजस की स्थिति में रहते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग तो दोनों को एक ही समझने की भूल भी कर देते हैं। यहाँ आपको ये जान लेना चाहिए कि ये दोनों दिवस अलग हैं। “विजय दिवस” जहाँ 16 दिसंबर को 1971 की पाकिस्तान–भारत की लड़ाई में भारत के विजयी होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है तो वहीं “कारगिल विजय दिवस” 1999 में कारगिल में हुई भारत–पाकिस्तान की लड़ाई में भारत की जीत के उपलक्ष्य में 26 जुलाई को मनाया जाता है।
1971 में भारत और पाकिस्तान के मध्य हुए युद्ध में भारत की जीत हुई थी और परिणाम स्वरूप पूर्वी पाकिस्तान आजाद हुआ था जिसे आज हम बांग्लादेश के नाम से जानते हैं। ये भारत के लिए एक ऐतिहासिक जीत थी जिसने हर देशवासी के दिल में जोश और उमंग पैदा की थी और आज भी करती है। इस युद्ध ने वैश्विक पटल पर भारतीय सैनिकों के शौर्य का परिचय दिया था। इस युद्ध के बाद से दुनिया भी भारतीय सेना का लोहा मानने लगी थी।
विजय दिवस का इतिहास
विजय दिवस का इतिहास भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध में है। इस युद्ध के हालात 1971 से ही बनने लगे थे। आज हम जिसे बांग्लादेश के रूप में देखते है, वो उस समय पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था। पूर्वी पाकिस्तान के लोग अपना अलग देश चाहते थे और पाकिस्तान से अलग होना चाहते थे। इस घटना को रोकने के लिए पश्चिमी पाकिस्तान की तरफ से पूर्वी पाकिस्तान में सैनिक शासन द्वारा नियंत्रण को मजबूत किया जा रहा था और क्रांतिकारियों का दमन किया जा रहा था।
पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जिसका नाम याहिया ख़ां था उसने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की लोक भावनाओं को सैनिक शक्ति से कुचलने का आदेश दे दिया। इसके पश्चात शेख़ मुजीब जो उस समय मुख्य क्रांतिकारियों में से एक थे, उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। इस घटना से वहां से कई शरणार्थी निरंतर भारत आने लगे थे।
पाकिस्तानी सेना के ऐसे व्यवहार की खबरें जब भारत में आने लगीं तो भारत देश पर यह दबाव आने लगा कि वह वहाँ अपनी सेना के माध्यम से हस्तक्षेप करे। इंदिरा गांधी, तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री, चाहती थीं कि अप्रैल महीने में हमला किया जाए। इस विषय पर इंदिरा गांधी ने तत्कालीन थल सेना के अध्यक्ष जनरल मानेकशॉ की सलाह ली।
बात 1971, 3 दिसंबर की है, उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी कलकत्ता में एक जनसभा को सम्बोधित कर रही थीं। इंदिरा गांधी ने उसी वक्त दिल्ली लौटकर मंत्रिमंडल की आपात बैठक की। उसी दिन पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों ने शाम के समय भारत की वायुसीमा को पार करके श्रीनगर, पठानकोट, आगरा व जोधपुर आदि जगहों पर बम गिराना आरंभ कर दिया। उसी समय इंदिरा गाँधी वापस दिल्ली लौटीं और आपातकालीन बैठक बुलाई।
युद्ध शुरू होते ही भारतीय सेना पूर्व की तरफ तेजी से आगे बढ़ रही थी। भारत की सेना की रणनीति में शामिल था कि अहम केंद्रों को छोड़ते हुए बस आगे बढ़ा जाए। भारतीय सेना के समक्ष ढाका कब्जाने का लक्ष्य तो रखा ही नहीं गया था। दिसंबर की 14 तारीख को भारतीय सेना को गुप्त खबर मिली कि दोपहर में गवर्नमेंट हाउस ऑफ़ ढाका में एक खास बैठक होनी है, जिसमें बड़े पाकिस्तानी प्रशासनाधिकारी शामिल होने वाले थे। भारतीय सेना ने मीटिंग के दौरान ही भवन पर मिग 21 के द्वारा बम गिराये जिससे हॉल की छत उड़ गई। लगभग कांपते-से हाथों से गवर्नर मलिक ने अपना इस्तीफ़ा लिखा।
16 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्म समर्पण कर दिया और ये विश्व का दूसरा सबसे बड़ा आत्म समर्पण था। करीब 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्म समर्पण किया था। ये एक विशाल विजय थी।
इंदिरा गांधी उस वक्त संसद भवन में थीं जब मानेकशॉ ने उन्हें भारत की विशाल विजय की खबर दी। इंदिरा गाँधी ने संसद में उद्घोषणा की कि भारत को युद्ध में विजय प्राप्त हुई है। इस खबर ने चारों ओर जश्न का माहौल पैदा कर दिया था। पूर्वी पाकिस्तान को आजादी और दुनिया को नया देश बांग्लादेश मिला।
ये एक विशाल विजय का दिवस था जिसे हम आज भी 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाते चले आ रहे हैं।
विजय दिवस क्यों मनाया जाता है?
कई खास दिनों को मनाने के पीछे उनकी ऐतिहासिक वजहें होती है। विजय दिवस मनाने के पीछे की मुख्य वजह 1971 में भारत को मिली जीत को याद करना है। इस दिन 1971 में शहीद हुए भारत के वीर सपूतों को भी याद किया जाता है तथा उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। इतिहास में इस दिन भारत की सेना ने अपना जो साहस और वीरता का प्रदर्शन किया था वो अद्भुत था। ये दिवस भारतीय सेना के लिए भी एक गौरवशाली दिन होता है। इस दिवस के माध्यम से अतीत में हुई घटना और उसमें भारतीय सेना की भूमिका से नौजवानों व युवाओं को परिचित कराया जाता है और उनमें देशभक्ति की भावना का संचार करने का प्रयास किया जाता है।
1971 के भारत–पाकिस्तान युद्ध के वीर
यूँ तो पूरी भारतीय सेना ही वीरों की सेना है लेकिन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले कुछ वीर इस प्रकार हैं:-
- सैम मानेकशॉ (सेनाध्यक्ष) – मानेकशॉ इस युद्ध के समय भारतीय सेना के सेना अध्यक्ष थे और युद्ध के दौरान भारतीय सेना के नेतृत्व कर्ता भी थे।
- कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा – वो जनरल जगजीत सिंह ही थे जिन्होनें पाकिस्तानी सेनानायक लेफ्टि. जनरल नियाज़ी पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाकर पाकिस्तानी सेना से आत्म समर्पण कराया था।
- मेजर होशियार सिंह – मेजर होशियार सिंह ने भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपने अदम्य साहस का परिचय दिया था जिसके लिए उन्हें परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था।
- लांस नायक अलबर्ट एक्का – इन्होंने युद्ध के दौरान अपने शौर्य और सैनिक कौशलों का बेहतर प्रदर्शन किया था। इन्होनें अपनी यूनिट के कई सैनिकों की रक्षा की और इस दौरान वो काफ़ी घायल भी हो गए, जिस कारण 3 दिसंबर 1971 को ये वीर वीरगति को प्राप्त हो गया। उनके इस योगदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
निष्कर्ष
विजय दिवस एक अवसर है उस विशाल विजय को याद करने का जो 16 दिसंबर 1971 में मिली थी और उन वीरों को याद करने का जिनके कारण ये विजय मिली थी। सेना की उपस्थिति के कारण ही हमारा समाज बाहरी शक्तियों से सुरक्षित रहता है। जिस प्रकार वो अपना कार्य करते हैं ठीक उसी प्रकार हमारा दायित्व है कि हम भी एक अच्छे नागरिक के सभी कर्तव्यों का पालन करें। हर साल विजय दिवस आता रहेगा और भारतीय सेना के साहस का परिचय देता रहेगा।
अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न
कारगिल विजय दिवस प्रतिवर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है।
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