उज्जैन | Ujjain
भारत देश ऐतिहासिक धरोहरों की खान है। ऐसे ही कई ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए हुए, इसका एक प्रमुख नगर है उज्जैन। उज्जैन मध्यप्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है। ये मध्यप्रदेश का पाँचवाँ सबसे बड़ा शहर है। यह बहुत ज्यादा प्राचीन नगर है, जो कि शिप्रा नदी के किनारे बसा हुआ है। उज्जैन नगर मालवा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। उज्जैन को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जिनमें से प्रमुख है– महाकाल की नगरी, अवंतिका, उज्जयिनी, कालिदास की नगरी।
इस नगर की कुल जनसंख्या 5,15,215 (2011 की मतगणना के अनुसार) है। इस नगर का क्षेत्रफल 157 वर्ग किलोमीटर है, इस प्रकार यहाँ का जनसंख्या घनत्व 3,300 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। 2011 को मतगणना के अनुसार उज्जैन शहर की साक्षरता दर लगभग 84 प्रतिशत है तथा औसत लिंगानुपात 945 है।
यहाँ की पिनकोड संख्या 456001 से 456010 है।
उज्जैन का इतिहास | Ujjain ka Itihas
उज्जैन का इतिहास काफी विविधता पूर्ण एवं समृद्ध रहा है। यह सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहर के लिए बहुत प्रमुख नगर है। पुराणों एवं महाभारत काल में भी उज्जैन का जिक्र होता है। माना जाता है कि श्री कृष्ण की एक पत्नी उज्जैन की ही एक राजकुमारी थी। ईसा की छठी शताब्दी के समय काल में चंद्र प्रद्योत नामक एक प्रतापी राजा हुआ था, जिसका आसपास के इलाकों में काफी दबदबा था। इतिहास के अनुसार प्रद्योत वंश के बाद उज्जैन मगध साम्राज्य का हिस्सा बन गया था।
राजा खदिरसार भील
जैन ग्रंथों की माने तो 386 ईसा पूर्व के समयकाल में मगध साम्राज्य में राजा खदिरसार का शासन था। उस समय उनकी राजधानी उज्जैन थी। रानी चेलमा उनकी पत्नी थीं। शुरुआत में राजा बौद्ध धर्म के समर्थक थे, लेकिन रानी चेलमा के उपदेश से प्रभावित होकर उन्होनें जैन धर्म अपना लिया था।
राजा गन्धर्वसेन | Raja Gandharv Sen
ईसा पूर्व की पहली शताब्दी की शुरुआत में उज्जैन में राजा गन्धर्वसेन का शासन था। ये एक पराक्रमी राजा थे, जिनसे शक शासक भी भय खाते थे।
राजा विक्रमादित्य | Raja Vikramaditya
राजा विक्रमादित्य राजा गंधर्वसेन के ही पुत्र थे। शक शासकों ने राजा गंधर्वसेन को युद्ध में पराजित करके उज्जैन पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। बाद में राजा विक्रमादित्य ने शक शासकों को हराकर पुनः अपने साम्राज्य पर अपने पूर्वजों का आधिपत्य स्थापित कर दिया था। राजा विक्रमादित्य भारतीय इतिहास के एक प्रसिद्ध सम्राट रहे है।
महान कवि कालिदास | Kavi Kalidas
उज्जैन के इतिहास की जब भी बात की जाती है, तो उसमें कवि कालीदास का जिक्र भी अवश्य किया जाता है। महाकवि कालिदास राजा विक्रमादित्य के साम्राज्य में उनके नवरत्नों में से एक थे। उन्हें उज्जैन से काफी ज्यादा लगाव था। उन्होंने उज्जैन की संस्कृति, वास्तुकला, सुंदरता तथा प्रशासन की व्याख्या करते हुए कई काव्य लिखें हैं। मेघदूत नामक अपनी एक काव्य रचना में कवि कालिदास ने उज्जैन नगरी का जिक्र किया है।
ऐतिहासिक प्रमाण
उज्जैन के इतिहास के प्रमाण 600 ईसा पूर्व से मिलते हैं। उस समय भारत में कुल सोलह महाजनपद थे, जिनमें से एक अवंति भी था। अवंति की दो राजधानियों में से एक उज्जैन थी। उस समय चंद्र प्रद्योत नामक सम्राट का यहाँ शासन था।
मौर्य साम्राज्य
मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत उज्जैन प्रमुख व्यवसायिक एवं प्रशासनिक केंद्रों में से एक था। इस साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने की थी। बाद में इस साम्राज्य पर सम्राट अशोक का शासन रहा, जिन्होनें ‘धम्म’ का प्रचार किया था। उन्होनें बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। मौर्य साम्राज्य के शासन काल में उज्जैन का काफ़ी ज्यादा विकास हुआ।
End of Mourya Dynasty | मौर्य साम्राज्य की समाप्ति
मौर्य साम्राज्य की समाप्ति के बाद उज्जैन नगर सातवाहन राजाओं व शक शासकों के लिए प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र बन गया था। बाद में इस पर पश्चिमी शकों का शासन हो गया था।
गुप्त साम्राज्य
चौथी सदी में औलिकरों व गुप्तों ने मालवा क्षेत्र से शकों को विस्थापित कर दिया था। इस काल के दौरान इस क्षेत्र का औद्योगिक व आर्थिक विकास हुआ। सातवीं शताब्दी के समयकाल में उज्जैन कन्नौज के हर्षवर्धन साम्राज्य में मिल गया। इस काल के दौरान भी उज्जैन का निरंतर विकास होता रहा।
कालांतर में इस क्षेत्र पर कई शासकों का दबदबा रहा और इस दौरान कला, संस्कृति व साहित्य की दृष्टि से उज्जैन समृद्ध होता रहा।
दिल्ली सल्तनत व मराठाओं का अधिकार
जब खिलजियों ने उज्जैन पर आक्रमण किया था, तो उन्होनें न सिर्फ़ लूटपाट की, बल्कि यहाँ के वैभव को भी हानि पहुंचायी। जब अकबर राजा बना, तो उसने मालवा को प्रांतीय मुख्यालय बनाया था।
1737 के समयकाल में सिंधिया वंश का उज्जैन पर शासन हो गया और लंबे समय तक रहा, इस दौरान उज्जैन सर्वांगीण विकास करता रहा।
आधुनिक भारत में उज्जैन मध्यप्रदेश राज्य के एक शहर के रूप में सुशोभित है।
उज्जैन के प्रमुख मंदिर | Temples of Ujjain
- श्री महाकालेश्वर मन्दिर:- यह मन्दिर न सिर्फ़ उज्जैन का, बल्कि पूरे भारत का एक महत्वपूर्ण मन्दिर है। ये देवों के देव महादेव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। पुराणों में तथा संस्कृत साहित्य में भी इसका विशेष वर्णन मिलता है। लोगों में इस मन्दिर के प्रति विशेष आस्थाएं एवं मान्यताएँ हैं।
- श्री बड़े गणेश मन्दिर:- यह मन्दिर श्री महाकालेश्वर मन्दिर के निकट ही है। इसमें गणेश जी की एक बहुत बड़ी प्रतिमा स्थापित है। गणेश जी के अलावा यहाँ श्री कृष्ण, नवग्रह तथा पंचमुखी हनुमान जी की भी प्रतिमाएँ स्थापित हैं। महिलाएं गणेश जी को भाई मानती हैं तथा रक्षा बंधन पर उन्हें राखी बांधती हैं।
- मंगलनाथ मन्दिर:- यह मंगल भगवान का मन्दिर है, जिसका पूरे भारत में विशेष महत्व है, क्योंकि उज्जैन नगर को मंगल भगवान का जन्म स्थल माना जाता है। जिन लोगों की कुंडली में मंगल दोष होता है, वे लोग विशेष रूप से इस मन्दिर में आते हैं। यह मन्दिर बहुत प्राचीन है।
- हरसिद्धि देवी मन्दिर:- यह मन्दिर उज्जैन का एक महत्वपूर्ण व प्राचीन मन्दिर है। सम्राट विक्रमादित्य द्वारा यहाँ नियमित रूप से हरसिद्धि देवी की पूजा की जाती थी। शिवपुराण के अनुसार दक्ष यज्ञ के पश्चात माँ सती की कोहनी का भाग यहाँ गिरा था।
उज्जैन के प्रमुख व्यंजन | Ujjain Desserts
Ujjain के प्रमुख व्यंजनों में से कुछ निम्नलिखित हैं:-
- दाल बाफला
- आलू बड़ा
- गुलाब जामुन
- कचौरी
उज्जैन के अन्य प्रमुख स्थल | Places in Ujjain
उज्जैन मुख्यतः मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिरों के अलावा भी यहाँ कई अन्य दर्शनीय स्थल हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:-
- चौबीस खंभा
- वेधशाला
- कालियादेह पैलेस
- सांदीपनि आश्रम
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
शिप्रा नदी।
उज्जैन में।
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