तिरूपति बालाजी का मंदिर आंध्र प्रदेश के चितूर जिले मे स्थित है। तिरूपति बालाजी के मंदिर को श्री वेंकटेश्वर मंदिर भी कहते है। यह मंदिर समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर तिरूमला की पहाड़ी पर स्थित है। कहा जाता है कि बिजयनगर, होयसल और चोल के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था। यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला के अदभूत संगम का उदाहरण है।
तिरूपति बालाजी की कथा (Tirupati Balaji ki Katha)
एक कथनानुसार एक बार महर्षि भृगु बैकुंठ आये और आते के साथ ही उन्होनें शेष शैय्या पर योगनिद्रा में लेटे हुए भगवान विष्णु छाती पर एक लात मारी। भगवान विष्णु ने तुरंत उठकर महर्षि भृगु के चरण पकड़ लिए और पूछने लगे कि ऋषिवर आपके पैर में चोट तो नहीं लगी। इस पर भृगु ऋषि लज्जित होकर दोनों हाथ जोड़ लिए और उन्होंने अपनी गलती स्वीकार कर ली। भृगु ऋषि हाथ जोड़कर बोले ‘हे प्रभु आप सबसे सहनशील देवता हैं इसलिए यज्ञ भाग के प्रमुख अधिकारी आप ही होगे। लेकिन इस अपमान से माँ लक्ष्मी भृगु ऋषि को दंड देना चाहती थी। और भगवान विष्णु से नाराज हो गई। देवी लक्ष्मी नाराज होकर बैकुंठ छोड़कर चली गई। तब भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को खोजना शुरु किया तो पता चला कि देवी लक्ष्मी ने पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रुप में जन्म लिया है। भगवान विष्णु ने भी अपना रुप बदला और पहुंच गए पद्मावती के पास।
भगवान विष्णु ने पद्मावती के सामने विुवाह का प्रस्ताव रखा जिसे देवी लक्ष्मी ने स्वीकार कर लिया लेकिन समस्या यह थी कि विवाह के लिए धन कहां से आएगा। तब भगवान विष्णु जी ने समस्या का समाधान निकालने के लिए भगवान शिव और ब्रह्मा जी को साक्षी रखकर भगवान कुबेर से धन कर्ज मे लिया। इस कर्ज के रूपयो से भगवान विष्णु के वेंकटेश रुप और देवी लक्ष्मी के अंश पद्मवती का विवाह हुआ। भगवान कुबेर से कर्ज लेते समय भगवान विष्णु ने यह वचन दिया था कि कलियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे। और जब तक कर्ज समाप्त नही होता तब तक वह ब्याज चुकाते रहेंगे।
भगवान विष्णु के कर्ज न चुका जाने के कारण बड़ी मात्रा में भक्त धन-दौलत चढ़ाते है, ताकि भगवान जल्दी से कर्ज मुक्त हो जाएं।
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तिरूपति बालाजी मंदिर की विशेषताऐ
- तिरूपति बालाजी के मुख्यद्वार के दाएं ओर बाल्यकाल में बालाजी को ठोड़ी से रक्त निकल आया था। तभी से भगवान बालाजी के ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा शुरू हुई।
- भगवान बालाजी के सिर पर रेशमी केश है, और आश्चर्य की बात यह है कि ये आपस मे कभी नही उलझती। भगवान बालाजी के केश सदैव सुलझे हुए रहते है।
- तिरूपति बालाजी मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव है। जिस मे बाहरी व्यक्ति का प्रवेशनिषेध है। उस गाँव के लोग बहुत ही नियम से रहते हैं। उसी गाँव से लाए गए फूल और अन्य वस्तुओं को चढाया जाता है जैसे- दूध, घृत, माखन, फल आदि।
- भगवान बालाजी गर्भगृह के मध्य भाग में खड़े है। लेकिन, बाहर से देखने पर ऎसा लगता है कि मानो वह दाई तरफ खड़े हो।
- भगवान बालाजी की प्रतिमा को प्रतिदिन नीचे धोती और उपर साड़ी से सजाया जाता है।
- मंदिर के गृभगृह में चढ़ाई गई किसी भी वस्तु को मंदिर के बाहर नहीं लाया जाता है। बालाजी मंदिर के पीछे एक जलकुंड है वहीं पर बिना पीछे देखे वस्तुओ का विसर्जन किया जाता है।
- भगवान बालाजी की पीठ को जितनी बार भी साफ करा जाए लेकिन पीठ पर सदैव गीलापन रहता ही है और वहां पर कान लगाने पर समुद्र घोष की आवाज सुनाई देती है।
- बालाजी के वक्षस्थल पर लक्ष्मीजी निवास करती है। इसीलिए प्रत्येक गुरुवार को निजरूप दर्शन के समय भगवान बालाजी की चंदन से वक्षस्थल की सजावट की जाती है।और उस चंदन को निकालने पर लक्ष्मीजी की छबि उस पर उतर आती है।
- भगवान बालाजी के जलकुंड में विसर्जित की हुई वस्तुए तिरूपति से 20 किलोमीटर दूर वेरपेडु में बाहर आती है।
- मंदिर के गर्भगृह मे जलने वाले दीपक कभी भी नही बुझते है। ये दीपक कितने हजार सालों से जल रहे हैं किसी को भी इसका पता नही है।
तिरूपति मंदिर मे केश दान का महत्व
मंदिर मे श्रद्धालु प्रभु को सवेचछा से अपने केश समर्पित करते है। ऐसा माना जाता है कि केशों के साथ व्यक्ति अपना दंभ व घमंड भी छोड़ देता है।
तिरूपति बालाजी मंदिर कैसे जाए
वायु मार्ग
तिरूपति बालाजी का निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति है। यहाँ पर से इंडियन एयरलाइंस की हैदराबाद, दिल्ली और तिरुपति के बीच प्रतिदिन सीधी उडा़न मिलती है।
रेल मार्ग
तिरूपति बालाजी का निकटवर्ती स्टेशन तिरुपति है। इस स्टेशन से बैंगलोर, चेन्नई और हैदराबाद के लिए हर समय ट्रेन मिलती है।
सड़क मार्ग
कई राज्यो के विभिन्न भागों से तिरुपति बालाजी के लिए एपीएसआरटीसी की बसें नियमित रूप से चलती हैं। या फिर राष्ट्रीय राजमार्ग NH 716 के द्वारा भी तिरूपति बालाजी पहुंचा जा सकता है।
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