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स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद – सम्पूर्ण जानकारी | Swami Vivekananda

Posted on December 31, 2022
Table of contents
  1. स्वामी विवेकानंद | Swami Vivekananda
  2. स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
  3. स्वामी विवेकानंद जी का बचपन
  4. स्वामी विवेकानंद जी की प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा
  5. स्वामी विवेकानंद जी की आध्यात्मिक शिक्षा
  6. स्वामी विवेकानंद जयंती | Swami Vivekananda Jayanti
  7. स्वामी विवेकानंद जी की आध्यात्मिक गुरु
  8. स्वामी विवेकानंद जी का शिकागो भ्रमण
  9. शिक्षा पर विवेकानंद जी का दृष्टिकोण
  10. स्वामी विवेकानंद जी के सिद्धांत

स्वामी विवेकानंद | Swami Vivekananda

भारत देश हमेशा से ही प्रतिभाओं की खान रहा है। यहाँ कई वीरों के साथ-साथ कई ज्ञानी व सिद्ध व्यक्तियों ने भी जन्म लिया है। उन्हीं ज्ञानी व सिद्ध व्यक्तियों में से एक नाम स्वामी विवेकानंद जी का भी है।

कलकत्ता (कोलकाता) में एक उदार व कुलीन परिवार में वर्ष 1863 में 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद का जन्म  हुआ था। Swami Vivekananda का मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनके पिताजी का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो कि कोलकाता उच्च न्यायालय में प्रसिद्ध वकील थे। उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, जो कि धार्मिक विचारों वाली महिला थी।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

विवेकानंद जी एक महान दार्शनिक थे। अल्प आयु में ही उनका ध्यान आध्यात्म की ओर झुक गया था। Swami Vivekananda अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस से बहुत प्रभावित थे, तथा एक सच्चे गुरुभक्त भी थे। 19 वीं शताब्दी में जन्में Swami Vivekananda जी एक महान अभिव्यक्ति थे, जिन्होंने पूरे  विश्व को भारत की महानता से परिचित करवाया तथा अपने ज्ञान से पूरे विश्व को प्रभावित किया। स्वामी विवेकानंद जी द्वारा एक युवा क्रांतिकारी के रूप में कई महान कार्य किए गए। Swami Vivekananda युवाओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है।

स्वामी विवेकानंद जी का बचपन

बचपन से ही स्वामी विवेकानंद जी अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। बुद्धिमान होने के साथ ही वे बहुत नटखटी भी थे। नटखटी स्वभाव होने के कारण वे अपने सथियों के साथ काफ़ी शरारतें भी किया करते थे।

स्वामी विवेकानंद को बचपन से ही अपने घर में धार्मिक और अध्यात्मिक वातावरण मिला, जिसमें वे पले-बढ़े। स्वामी जी के घर में प्रत्येक दिन नियमित रूप से पूजा-पाठ होती थी। स्वामी जी की माँ भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। रामायण, महाभारत व पुराण आदि का वाचन करने के लिए आमतौर पर स्वामी जी के घर में कथावाचकों का आना-जाना रहता था।

Swami Vivekananda जी का पूरा बचपन धार्मिक तथा आध्यात्मिक वातावरण में गुजरने की वजह से उनके मन-मस्तिष्क पर धर्म व आध्यात्म का बहुत गहरा असर हुआ। अपने माता-पिता से प्राप्त संस्कारों तथा धार्मिक वातावरण की वजह से स्वामी विवेकानंद के मन में बालपन से ही ईश्वर को जानने तथा सत्य का ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न हो गई। ईश्वर को जानने की इच्छा  धीरे-धीरे उनके मन-मस्तिष्क  को आध्यात्म की ओर ले गयी तथा वे संन्यासी हो गये ।

स्वामी विवेकानंद जी की प्रारंभिक व माध्यमिक शिक्षा

स्वामी विवेकानंद बालपन से ही पढ़ाई-लिखाई में बड़े तीव्र थे।  8 वर्ष की उम्र में सन् 1871 में उन्होनें  ‘ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन संस्थान’ में दाखिला ले लिया। इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला ले लिया।  स्वामी जी ने वर्ष 1879 में कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज की इंट्रेंस की परीक्षा पास की। Swami Vivekananda कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से इंट्रेंस परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त करने वाले पहले विद्यार्थी बने ।

जनरल इंस्टिट्यूट असेंबली से स्वामी जी ने यूरोपीय इतिहास व पश्चिमी जीवन की पढ़ाई की। स्वामी जी ने 1881 में ललित कला की परीक्षा पास की। वर्ष 1884 में स्वामी जी ने स्नातक की डिग्री पूरी की। Swami Vivekananda Ji ने डेविड ह्यूम इमैनुएल कैंट तथा चार्ल्स डार्विन जैसे महान वैज्ञानिकों का भी अध्ययन कर रखा था। स्वामी विवेकानंद जी हरबर्ट स्पेंसर के विकास सिद्धांत से भी बहुत प्रभावित थे, जिसके चलते उन्होंने हरबर्ट स्पेंसर की किताब को बंगाली भाषा में परिभाषित किया।

स्वामी विवेकानंद जी की आध्यात्मिक शिक्षा

स्वामी विवेकानंद का बालपन से ही आध्यात्म की ओर झुकाव हो गया था। आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वामी जी ने पहले ब्रह्म समाज में प्रवेश किया, लेकिन वहां आत्म संतोष प्राप्त नहीं हुआ, क्योंकि Swami Vivekananda वेदांत योग को पश्चिमी संस्कृति में प्रचलित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहते थे।

जब एक बार उन्होनें किसी सन्यासी से पूछा कि “आप कभी ईश्वर से मिले है?“ , तो उन साधु व्यक्ति ने स्वामी विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंस के पास जाने के लिए कहा।

रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनकर स्वामी विवेकानंद उनके पास तर्क करने के उद्देश्य से गए, लेकिन रामकृष्ण परमहंस के विचारों से स्वामी विवेकानंद बहुत प्रभावित हुए। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर Swami Vivekananda ने रामकृष्ण परमहंस को अपना शिक्षक बना लिया। Swami Vivekananda जी ने रामकृष्ण परमहंस जी से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। अपने गुरु के सानिध्य में रहकर विवेकानंद जी को आत्म साक्षात्कार भी हुआ। विवेकानंद परमहंस जी के सबसे प्रिय शिष्यों में से एक थे तथा Vivekananda Ji भी सच्चे गुरुभक्त थे। Vivekananda Ji ने 25 वर्ष की उम्र में ही सन्यास ले लिया था। इसी वजह से उन्होनें विवाह भी नहीं किया था।

स्वामी विवेकानंद जयंती | Swami Vivekananda Jayanti

Swami Vivekananda का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। हम हर साल स्वामी विवेकानंद जयंती 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मानते है।

स्वामी विवेकानंद जी की आध्यात्मिक गुरु

Swami Vivekananda के आध्यात्मिक गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंश थे।

स्वामी विवेकानंद जी का शिकागो भ्रमण

अमेरिका में 1993 में विश्व धर्म परिषद का आयोजन किया गया था। स्वामी जी ने भारत की ओर से इसमें भाग लिया था। उस समय पश्चिमी देशों में भारतीयों को हीन दृष्टि से देखा जाता था। स्वामी जी ने इस सम्मेलन में इतिहास का विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया था। भाषण की शुरुआत विश्व प्रसिद्ध संबोधन  “मेरे सभी अमरीकी बहन एवं भाईयों!” के साथ की गई थी। स्वामी जी द्वारा इस प्रकार संबोधित किए जाने पर सभी श्रोता अपने स्थान पर खड़े हो गए तथा तालियों के साथ स्वामी जी के संबोधन को स्वीकार किया।

Swami Vivekananda को केवल 2 मिनट का समय दिया गया था, लेकिन इतने समय में ही स्वामी जी ने विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया था।

शिक्षा पर विवेकानंद जी का दृष्टिकोण

विवेकानंद जी अंग्रेजी शिक्षा के विरोधी थे। Swami Vivekananda Ji मानते थे, कि अंग्रेजी शिक्षा द्वारा आत्म ज्ञान की प्राप्ति नहीं की जा सकती। Swami Ji कहते थे, कि शिक्षा केवल पुस्तकों का ज्ञान नहीं है, बल्कि शिक्षा वो है, जो व्यक्ति को बुद्धिमान बनाने के साथ-साथ उसके चरित्र का भी निर्माण करे।

Vivekananda Ji के अनुसार शिक्षा, बच्चों के दिमाग में  ज्ञान को ठूँसना नहीं है। शिक्षा वह है, जिसका प्रयोग जीवन के संघर्षों से लड़ने में सहायता करे।

स्वामी विवेकानंद जी के सिद्धांत

  • बालक – बालिकाओं के लिए समान शिक्षा।
  • पाठ्यक्रम में लौकिक व परालौकिक दोनों का स्थान होना चाहिए।
  • शिक्षा ऐसी हो, जो चरित्र का निर्माण करे तथा आध्यात्म का अवसर दे।

Disclaimer : इस पोस्ट में दी गई समस्त जानकारी हमारी स्वयं की रिसर्च द्वारा एकत्रित की गए है, इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि हो, किसी की भावना को ठेस पहुंचे ऐसा कंटेंट मिला हो, कोई सुझाव हो, Copyright सम्बन्धी कोई कंटेंट या कोई अनैतिक शब्द प्राप्त होते है, तो आप हमें हमारी Gmail Id: (contact@kalpanaye.in) पर संपर्क कर सकते है।

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