सुरकंडा देवी का मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। यह भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है। उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले के काणा ताल गांव में स्थित, यह एक बहुत ही प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है।
सुरकंडा देवी मंदिर कहां पर स्थित है
यह देवभूमि, जोकि उत्तराखंड के टिहरी जनपद में है, यह भारत के प्रसिद्ध 51 शक्ति पीठ में से एक है। यह धनोल्टी से 8 किलोमीटर दूर 2756 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
यह मंदिर सरकुट पर्वत पर है। यह पर्वत श्रृंखला समुद्र तल से 9995 फुट की ऊंचाई पर है। इस सरकुट पर्वत पर स्थित मंदिर का नाम सुरकंडा देवी है।
सुरकंडा देवी मंदिर प्रचलित मान्यताएं
मंदिर में देवी काली जी की प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर के मैदान में भगवान हनुमान की मूर्ति और शेर पर बैठी एक देवी की मूर्ति भी देखी जा सकती है। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां मांगी जाने वाली सभी मुरादें पूरी होती है।
स्कंद पुराण में इससे संबंधित एक कथा प्रचलित है कि देवराज इंद्र ने अपना खोया हुआ राज्य वापस प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर प्रार्थना की थी।
सुरकंडा देवी मंदिर प्रचलित कथा
इसके अलावा अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार जब राजा दक्ष की पुत्री सती ने भगवान श्री भोलेनाथ को अपने वर के रूप में चुना था, तब उनका यह चयन राजा दक्ष को अस्वीकार्य था। एक बार राजा दक्ष कि यहां एक वैदिक यज्ञ का आयोजन किया गया। इसमें अधिकांशतः सभी को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान श्री भोलेनाथ को निमंत्रण नहीं भेजा गया।
लेकिन देवी सती अपने पति भगवान श्री भोलेनाथ के लाख समझाने के बावजूद भी अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में सम्मिलित होने चली गई। लेकिन वहां पर सभी के द्वारा भगवान भोलेनाथ के लिए कई अपमानजनक टिप्पणियां की गई जिससे देवी सती अत्यंत ही आहत हुई और इसके फल स्वरूप उन्होंने उसी यज्ञ कुंड में अपने प्राण त्याग दिए।
जब भगवान भोलेनाथ को देवी सती के यज्ञ कुंड में प्राण त्यागे जाने का समाचार मिला तो वे अत्यंत दुखी और अत्यंत ही क्रोधित हुए और माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर रखकर हिमालय की ओर निकल गए।
भगवान शिव के इस क्रोध और दुख को समाप्त करने के लिए एवं सृष्टि को भगवान शिव के तांडव से बचाने के लिए भगवान श्री हरि ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के नश्वर शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया और वह भाग जहां जहां गिरे वहां पवित्र शक्ति पीठ की स्थापना हुई। यह सुरकंडा देवी जी का मंदिर वही प्रसिद्ध मंदिर है जहां पर माता सती का सिर गिरा था।
रोचक प्रसाद
इस मंदिर की एक और बात बहुत अनोखी है, कि यहां पर प्रसाद के रूप में माखन मिश्री या कोई अन्य मिठाई नहीं मिलती बल्कि यहां पर प्रसाद के रूप में भक्तों को रौंसली की पत्तियां दी जाती है। यह रौंसली की पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं और यह भी माना जाता है कि इन पत्तियों को जिस भी स्थान पर रखा जाए वहां सुख समृद्धि का वास हमेशा रहता है।
रौंसली के वृक्ष को वहां के स्थानीय निवासी देव वृक्ष मानते है। और यही कारण है कि इस वृक्ष की लकड़ियों का प्रयोग सिर्फ पूजा के लिए ही किया जाता है। किसी अन्य प्रयोग में इस वृक्ष की लकड़ियां नहीं लाई जाती उदाहरण के लिए ईमारतों के निर्माण या किसी व्यवसायिक स्थल पर इस वृक्ष की लकड़ियों का उपयोग नहीं किया जाता है।
सुरकंडा देवी मंदिर का महत्व
इस सिद्धपीठ सुरकंडा देवी के मंदिर के कपाट पूरे वर्ष खुले रहते हैं, जो भी इस मंदिर में भक्त सच्चे मन से दर्शन करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते है। इस मंदिर में पूरे वर्ष कभी भी दर्शन किया जा सकता है, लेकिन नवरात्रि और गंगा दशहरा दो ऐसी तिथियां है जब मां के दर्शनों का विशेष महत्व है।
देवी के दरबार से केदारनाथ, बद्रीनाथ, नीलकंठ, गौरीशंकर सहित और भी कई पर्वत श्रृंखलाएं दिखाई देती है। देवी के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं के कष्ट दूर हो जाते हैं। यही वजह है कि इस मंदिर के दर्शन करने के लिए देश के हर कोने से श्रद्धालु आते है।
इस मंदिर के चारों और बहुत हरियाली है। इसकी प्राकृतिक छटा बहुत ही अच्छी है। उत्तर में हिमालय के बर्फ से ढके पहाड़ों को देखा जा सकता है, और दूसरी तरफ देहरादून और ऋषिकेश की घाटी को भी देखा जा सकता है।
सुरकंडा देवी मंदिर कैसे पहुंचे
मंदिर तक पहुचने के लिए लगभग 3 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है जो सुरकंडा देवी मंदिर की यात्रा को और अधिक रोमांचक बना देती है। यह पैदल यात्रा कद्दूखाल से शुरू होती है, जहां पर सारे वाहन रोक दिए जाते हैं। उसके ऊपर 3 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है।
अब मंदिर पहुंचने के लिए रोप वे की सुविधा भी शुरू हो गई है । जिससे मंदिर पहुंचने में आसानी हो रोपवे सेवा अब पूरी तरह कार्यात्मक है। यह लगभग 502 मीटर लंबी है और शीर्ष तक पहुंचने में 10-15 मिनट का समय लेती है।
मंदिर अच्छी तरह से बना हुआ है। यह मंदिर अपनी स्थापत्य सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। सर्दियों में, पूरा मंदिर बर्फ की मोटी परतों से घिरा रहता है, जो ट्रैक को थोड़ा चुनौतीपूर्ण लेकिन और भी खूबसूरत बना देता है। सुरकंडा देवी मंदिर का इतिहास उस समय का है जब माता सती के मृत शरीर को भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र ने 51 टुकड़ों में काटा था, जो पृथ्वी के अलग अलग भागों में जाकर गिरे थे।
जिसके बाद उन हिस्सों पर माता के शक्ति पीठों का निर्माण किया गया था। सुरकंडा देवी मंदिर सुबह 9.00 से 5.00 बजे तक खुलता है। इस दौरान सुरकंडा देवी मंदिर के दर्शन के लिए जा सकते है।
सुरकंडा देवी मंदिर घूमने जाने का सबसे अच्छा समय
सुरकंडा देवी मंदिर घूमने के लिए पूरा वर्ष ही उचित समय है। परंतु आगंतुकों को सलाह दी जाती है कि वह बारिश के समय इस जगह ना आए क्योंकि बारिश के समय में इस जगह बहुत सारे भूस्खलन होते रहते है। इसीलिए जुलाई-अगस्त के भारी मानसून के महीनों में यहां नहीं जाना चाहिए।
देवी मंदिर धनोल्टी से 08 और चंबा से 22 किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी पर स्थित है। धनोल्टी या चंबा पहुचने के बाद आप स्थानीय वाहनों की मदद से सुरकंडा देवी मंदिर जा सकते है। सुरकंडा देवी मंदिर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा स्थित है। सड़क मार्ग से सुरकंडा देवी मंदिर पहुँचने के लिए मसूरी जाना सही रहेगा।
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