बाबा अमरनाथ | Baba Amarnath
बाबा अमरनाथ भगवान शिव का ही दूसरा नाम है। बाबा अमरनाथ के लिए यात्रा बहुत ही दुर्गम और कठिन मार्ग से होकर गुजरती है। यहाँ पहाड़ी पर कभी कभी ऑक्सीजन लेवल की कमी हो जाती है। बाबा अमरनाथ की गुफा श्री नगर से लगभग 145 किमी दूर हिमालय की पर्वत श्रेणियों में स्थित है।
यह गुफा समुद्र तल से 3,978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह गुफा 150 फीट ऊंचा और लगभग 90 फीट लंबा है। बाबा अमरनाथ की यात्रा पर जाने के दो रास्ते है- पहला पहलगाम होकर जाता है और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से होकर जाता है। इसके बाद की यात्रा पैदल की जाती है। इन्हें बाबा बर्फानी के नाम से भी जाना जाता है। इस यात्रा को हिन्दु धर्म ग्रंथो और पुराणो मे बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है।
बाबा अमरनाथ की यात्रा पर कब जाए ? | Amarnath Yatra kab Jana Chiye
हिन्दु पंचांग के अनुसार यह यात्रा आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर सावन महीने के अंत तक चलती है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव श्रावण मास के पूर्णिमा को इस गुफा मे आये थे। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार बाबा अमरनाथ की यात्रा जुलाई के अंतिम माह से शुरू होकर अगस्त के पूरे महीनेभर चलती है।
Baba Amarnath Helicopter Booking
नोट: बाबा अमरनाथ की यात्रा मौसम को ध्यान मे रखकर करनी चाहिए।
बाबा अमरनाथ की कथा | Baba Amarnath ki Katha
धार्मिक ग्रंथो और मान्यताओ के अनुसार एक बार माँ पार्वतीजी ने भगवान शंकरजी से पूछा, पार्वती बोली, हे भगवान ‘मेरा शरीर नाशवान है, मृत्यु को प्राप्त होता है, परंतु आप कैसे अमर है, इसका कारण मुझे भी बतायें। मैं भी अजर-अमर होना चाहती हूं?‘ इस पर भगवान शिव ने कहा, ‘यह सब अमरकथा के कारण है।’ तब भगवान शिव ने पार्वतीजी को कथा सुनाया।
लेकिन मुश्क़िल यह थी कि अमरकथा सुनाते वक्त कोई अन्य जीव इस कहानी को सुन ले इसीलिए भगवान शंकर सभी तत्वों का परित्याग करके अमरनाथ गुफा की ओर जाते है। जाते हुए वे वहाँ सबसे पहले पहलगाम पहुंचे, जहां उन्होंने अपने नंदी (बैल) का परित्याग किया। उसके बाद चंदनबाड़ी में उन्होंने अपनी जटा (केशों) से चंद्रमा को मुक्त किया। शेषनाग नामक झील पर पहुंचकर उन्होंने अपने गले से सर्पों को भी उतार दिया। प्रिय पुत्र श्री गणेशजी को भी उन्होंने महागुनस पर्वत पर छोड़ दिया। फिर पंचतरणी पहुंचकर शिवजी ने पांचों तत्वों का परित्याग किया। सबकुछ छोड़कर अंत में भगवान शिव ने इस अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और पार्वतीजी को अमरकथा सुनाना आरंभ किया। लेकिन अमरकथा सुनाते वक्त गुफा मे एक शुक शिशु भी था। जिसे सुनकर शुक शिशु शुकदेव ऋषि के रूप में अमर हो गये । ऐसा भी माना जाता हैं कि जिन भक्तों पर भगवान शिव और माँ पार्वती प्रसन्न होते हैं उन्हें ये कबूतर जोड़ो के रूप में प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होते है।
बाबा अमरनाथ के रास्ते मे पड़ाव
पहलगाम के रास्ते अमरनाथ की गुफा जाते समय थोड़ी थोड़ी दूर रूक कर चलना पड़ता है। जिसे पड़ाव कहते है। पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, यह पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते है। इसके दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। शेषनाग अगला पड़ाव है। यह मार्ग जोखिम भरा है। यात्रीगण शेषनाग पहुँच कर स्वयं को तरोताजा महसूस करते है। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि मे विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू होती हैं। शेषनाग से पंचतरणी आठ मील दूर है। यहाँ पांच छोटी-छोटी नदी बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है।
यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊँचाई की वजह से ठंड भी यहाँ ज्यादा होती है। यहाँ पर ऊँचाई के कारण ऑक्सीजन की कमी होती है। अमरनाथ की गुफा यहाँ से केवल आठ किलोमीटर की दूरी पर रह जाती है। इसी दिन गुफा के नजदीक पहुँच कर पड़ाव डालते है। और दूसरे दिन सुबह पूजा अर्चना करते है। अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुँचते ही सफर की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग
बाबा अमरनाथ के शिवलिंग का वर्णन | Amarnath Shivling
बाबा अमरनाथ के शिवलिंग की प्रमुख विशेषता यह है कि इस पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्माण होता है। प्राकृतिक हिम से बनने के कारण इसे स्वंय भू हिमानी शिवलिंग भी कहते है। अमरनाथ के गुफा की परिधि करीब डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती है।
यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है और सावन की पूर्णिमा तक यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। अचंभित होने वाली बात यह है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में कच्ची बर्फ होती है।
Disclaimer : इस पोस्ट में दी गई समस्त जानकारी हमारी स्वयं की रिसर्च द्वारा एकत्रित की गए है, इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि हो, किसी की भावना को ठेस पहुंचे ऐसा कंटेंट मिला हो, कोई सुझाव हो, Copyright सम्बन्धी कोई कंटेंट या कोई अनैतिक शब्द प्राप्त होते है, तो आप हमें हमारी Email Id: (contact@kalpanaye.in) पर संपर्क कर सकते है।