सोमवार का व्रत रखने की परंपरा हिंदू धर्म में काफी पुरानी परंपरा है। इस व्रत को रखने का काफी महत्व है। कहते हैं कि भगवान शंकर भोलेनाथ जिस पर भी प्रसन्न हो जाते है, उनके लिए दुनिया में कोई भी चीज कठिन नहीं होती है। भगवान भोलेनाथ जब प्रसन्न होते है तब अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते है।
सोमवार व्रत के नियम
इस व्रत को करने के लिए श्रावण, चैत्र मार्गशीर्ष और वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से प्रारंभ किया जा सकता है। यह व्रत कम से कम 16 सोमवार तक अवश्य रखना चाहिए।
इस व्रत को प्रारंभ करने के लिए सोमवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। भगवान शिव के मंदिर में जाकर शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।
जलाभिषेक करने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की पूरे मन और श्रद्धा से पूजा करनी चाहिए । उसके पश्चात सोमवार की कथा सुननी चाहिए। सोमवार के व्रत में फलों का सेवन कर सकते हैं और एक ही समय भोजन कर सकते है।
सोमवार व्रत कथा
सोमवार के व्रत की कथा इस प्रकार है, एक बार की बात है एक शहर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनकी कोई भी संतान नहीं थी। संतान न होने के कारण वे बहुत दुःखी रहते थे। संतानप्राप्ति के लिए वे हर सोमवार को व्रत रखते थे और शिव मंदिर में जाकर श्रद्धा से भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करते थे।
उनकी भक्ति को देखकर एक दिन माता पार्वती प्रसन्न हुईं। उन्होंने भगवान शिव से साहूकार की इच्छा पूरी करने का विनम्र निवेदन किया।
पार्वती की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि “हे पार्वती, इस दुनिया में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और उसकी नियति में जो कुछ भी हो, उसे वह धारण करना पड़ता है।” लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का सम्मान करने के लिए, उन्हें उसकी इच्छा पूरी करने के लिए कहा।
माता पार्वती के अनुरोध पर शिव ने साहूकार को पुत्रप्राप्ति करने का वरदान दिया। थोड़े समय के बाद साहूकार के यहां एक बेटे का जन्म हुआ। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उनकी संतान की आयु केवल बारह वर्ष होगी। साहूकार माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत सुन रहा था। इससे न तो वह खुश हुआ और न ही दुःखी हुआ। वह पहले की तरह ही भगवान शिव की पूजा करता रहा।
जब बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया। काशी जाते समय साहूकार ने अपने पुत्र को कहा कि ” तुम रास्ते में यज्ञ करते जाना और जहां भी यज्ञ करो वहां ब्राह्मणों को भोजन करा कर दान दक्षिणा भी देना।”
इसी प्रकार वह रास्ते में यज्ञ करते हुए और ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देते हुए काशी की ओर चला गया। रास्ते में एक नगर के राजा की पुत्री का विवाह था। रात्रि का समय था। राजा की पुत्री का विवाह जिस राजकुमार के साथ होने वाला था वह एक आंख से अंधा था।
राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र की इस कमी को छिपाने के लिए एक बात सोची और साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा कि क्यों न इस लड़के को धोखे में रखकर राजकुमारी से शादी कर ली जाए। शादी के बाद में इसे पैसे के साथ भेज दूंगा और राजकुमारी को अपने शहर ले जाऊंगा।
लेकिन साहूकार का बेटा ईमानदार था, उसे यह उचित नही लगा। उसने राजकुमारी की चुन्नी के किनारे पर लिखा कि “तुम्हारी शादी तो मुझसे हो गई है, लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजा जाएगा, वह आंख का काना है। मैं काशी में पढ़ने जा रहा हूँ।”
राजकुमारी ने जब चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने यह बात अपने माता-पिता को बताई। राजा ने अपनी बेटी को विदा नहीं किया, जिससे बारात वापस चली गई। उस साहूकार का लड़का और उसके मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन बालक 12 वर्ष का हुआ उस दिन यज्ञ हुआ। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि ठीक है तुम अंदर जाकर सो जाओ।
शिव के वरदान के अनुसार उसी समय उस बालक के प्राण निकल गए। मृत बालक को देख मामा विलाप करने लगे। संयोग से शिव और माता पार्वती उसी समय वहां से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- “स्वामी, मैं इसके रोने की आवाज़ को सहन नहीं कर सकती। आपको इस व्यक्ति की पीड़ा को दूर करना चाहिए। और इस बालक को पुनर्जीवित कर देना चाहिए।”
जब शिव मृत बालक के पास गए तो उन्होंने कहा कि यह वही साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। लेकिन माता पार्वती ने कहा “हे महादेव, कृपया इस बच्चे को और उम्र दें, नहीं तो इसके माता-पिता भी इसके अलग होने के कारण तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।”
माता पार्वती के पुनः निवेदन करने पर भगवान शिव ने बालक को जीवित रहने का वरदान दिया। शिव की कृपा से बालक जीवित हो गया। लड़का अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने मामा के साथ अपने शहर चला गया। दोनों उसी शहर पहुंचे जहां उनकी शादी हुई थी। उस नगर में यज्ञ का भी आयोजन किया गया। लड़के को राजा ने पहचान लिया और महल में जाकर उसकी देखभाल की और अपनी बेटी को विदा किया।
यहां साहूकार और उसकी पत्नी अपने पुत्र का इंतजार कर रहे थे। उसने प्रण लिया था कि अगर उसे अपने पुत्र की मौत का समाचार मिला तो वह भी अपने प्राण त्याग देगा, लेकिन अपने पुत्र के जीवित होने की खबर पाकर वह बहुत खुश हुआ।
उसी रात भगवान शिव शंकर ने साहूकार के सपने में आकर कहा “हे श्रेष्ठी, सोमवार की व्रत कथा सुनकर, प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारे पुत्र को दीर्घायु दी है।” इस प्रकार जो भी इस सोमवार के व्रत की कथा को पढ़ता है, व्रत रखता है और सुनता है उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।
सोमवार व्रत के लाभ
व्रत को रखने से व्यक्ति को सभी तरह के दुःख-दर्द से मुक्ति मिल जाती है और जीवन सुखी हो जाता है। भगवान शिव शंकर भोलेनाथ बहुत ही दयालु है।
सोमवार के दिन व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा होती है और व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। सोमवार का व्रत करने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों का प्रायश्चित हो जाता है। ऐसे लोगों को हमेशा मोक्ष प्राप्त होता है।
सोमवार व्रत कथा विधि
शिवजी की मूर्ति को चढ़ाने के लिए सफेद चंदन इत्र, धतूरा, गंगाजल, बेलपत्र, भांग, रोली, अष्टगंध, सफेद वस्त्र, नैवेद्य, गंगाजल इत्यादि सामग्री की आवश्यकता है। किसी भी पूजा या व्रत को आरम्भ करने के लिये सर्व प्रथम संकल्प करना चाहिये। व्रत के पहले दिन संकल्प किया जाता है। उसके बाद आप नियमित पूजा और व्रत करें। सबसे पहले हाथ में जल, अक्षत, पान का पत्ता, सुपारी लेकर संकल्प करें।
नैवेद्य बनाने के लिए आधा सेर गेहूं के आटे को घी में भूनकर गुड़ मिलाकर बना लें। सभी वस्तुएं भगवान शिव की मूर्ति के आगे समर्पित कर दें। हाथ में अक्षत तथा फूल लेकर दोनों हाथ जोड़ लें और भगवान शिव का आह्वान करें।
हाथ में लिये हुए फूल और अक्षत शिव भगवान को समर्पित करें। सबसे पहले भगवान शिव पर जल चढ़ाएं। जल के बाद सफेद वस्त्र अर्पित करें। सफेद चंदन से भगवान को तिलक लगाएं। सफेद पुष्प, धतुरा, बेल पत्र, भांग एवं पुष्पमाला अर्पित करें। अष्टगंध, धूप अर्पित कर, दीप दिखायें।
भगवान को भोग के रूप में ऋतु फल या बेल और नैवेद्य अर्पित करें। इस प्रकार विधि पूर्वक पूजा अर्चना कर सोमवार के व्रत को संपूर्ण करें और भगवान शिव शंकर भोलेनाथ से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
ओम नमः शिवाय ।।
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