हिन्दू धार्मिक ग्रंथो के अनुसार जहां जहां माँ सती के शरीर के अंग गिरे, वहां वहां Shaktipeeth बन गईं। ये अत्यंत पावन तीर्थ माने जाते है। ये तीर्थ पूरे भारत के प्रत्येक कोण प्रत्येक दिशा मे फैले हुए है।
शक्तिपीठ (Shaktipeeth) का शाब्दिक अर्थ “शक्ति” अर्थात देवी दुर्गा से है जिन्हें दाक्षायनी, माँ पार्वती एवं माँ सती के रूप में पूजा जाता है।और पीठ का अर्थ माँ सती के शरीर के अंग से है जो भगवान विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर गिरा था। यह सभी स्थान पूज्य है और शक्तिपीठ कहलाते है।
शक्तिपीठ की संख्या (Shaktipeeth kitne hai)
हिन्दू धार्मिक ग्रंथो मे देवी के शक्तिपीठ की गणना विभिन्न है। तंत्रचूड़ामणि मे देवी के शक्तिपीठ की संख्या 52 बतायी गयी है।तो देवी भागवत पुराण मे 108 शक्तिपीठ की संख्या का उल्लेख है। वहीं कालिका पुराण मे 26 और शिव चरित्र मे 51 शक्तिपीठ की संख्या बताई गई है।
शक्तिपीठ की कथा (Shaktipeeth ki Katha)
पुराणों के कथनानुसार राजा दक्ष भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थीं- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से राजा दक्ष को 24 कन्याएं हुईं और वीरणी से 60 कन्याएं। इस तरह राजा दक्ष की 84 पुत्रियां थीं।
राजा दक्ष को भगवान शिव पसंद नही थे। राजा दक्ष के अनुसार भगवान शिव औघड़ थे। परंतु माता सती भगवान शिव से ही विवाह करना चाहती थी। लेकिन राजा दक्ष सती का विवाह शिव से नहीं करना चाहते थे अत: उन्होंने सती के स्वयंवर करने का निर्णय लिया। थाजा दक्ष ने सभी गंधर्व, देव, यक्ष, को आमंत्रित किया, परंतु भगवान शिव को नहीं। उन्होने भगवान शिव का अपमान करने के लिए भगवान शिव की मूर्ति द्वार के निकट लगा दी । स्वयंवर के समय जब यह बात माता सती को पता चली तो उन्होंने जाकर उसी शिव मूर्ति के गले में वरमाला डाल दी। तभी शिवजी तत्क्षण वहीं प्रकट हो गए और उन्होने सती को पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया। इस घटना पर राजा दक्ष भगवान शिव पर कुपित हो गए।
पुनः एक बार राजा दक्ष ने महायज्ञ करवाया। जिसमें राजा दक्ष ने सभी ऋषि, देवी-देवताओं और मुनियों को निमंत्रण भेजा। किंतु इस यज्ञ में राजा दक्ष ने भगवान शिव और माता सती को निमंत्रण नही भेजा। फिर भी माता सती ने भगवान शिव को यज्ञ मे शामिल होने को कहा परंतु भगवान शिव मना कर दिया और कहा जब उन्होंने हमें निमंत्रण नहीं दिया है तो हम कैसे जाएं? लेकिन माता सती नहीं मानी और वह अकेली ही अपने पिता के यज्ञ में चली गई। वहां उन्होंने देखा कि सभी देवी, देवताओं के लिए आसन सजा है। सभी देवताओ का आह्वान भी किया जा रहा है किंतु मेरे पति का नहीं।
फिर राजा दक्ष ने माता सती की न केवल उपेक्षा की बल्कि अपमानित भी किया। माता सती अपना और अपने पति शंकर का अपमान होता देख राजा दक्ष के महायज्ञ में कूदकर अपनी देहलीला समाप्त कर ली। यह घटना जब भगवान शिव को पता चली तो वे बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने अपने एक गण वीरभद्र को भेजा।कहते हैं कि जब वीरभद्र ने राजा दक्ष का यज्ञ ध्वंस किया तब प्रजापती दक्ष ने विष्णु को युद्ध करने के लिए आव्हान किया।
भगवान विष्णु ने वीरभद्र को पाश में बांध लिया। तब भगवान शिव औेर क्रोधित हो गए और अपनी जटाओं से भद्रकाली को अवतरित किया। इसके बाद वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष का सिर धड़ से अलग कर उनके सिर को उसी यज्ञाग्नि में जला दिया जिसमें माता सती ने आत्मदाह किया था। घटना स्थल पर भगवान शिव स्वंय प्रकट हुए और बहुत दु:खी हुए। यज्ञ की अग्नि से शिवजी ने माता सती की देह को निकाला और उसे अपने कंधे पर लेकर जगह-जगह घूमते रहे। उन्हें दु:खी देखकर और देह के प्रति आसक्ति पालने पर विष्णुजी को बड़ी दया आई और तब उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के देह के टूकड़े टूकड़े कर दिए। कहते है कि जहां-जहां देवी सती के अंग और आभूषण गिरे, वहां-वहां Shaktipeeth निर्मित होते गए।
51 शक्तिपीठ के नाम (Name of 51 Shaktipeeth List)
इसके बाद माता सती ने पार्वती के रूप में हिमालयराज के यहां जन्म लिया और भगवान शिव की घोर तपस्या की और भगवान शिव को पति के रूप मे प्राप्त किया।
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