सरोजनी नायडू कौन थी (Sarojini Naidu kon thi)
सरोजनी नायडू नारी सशक्तिकरण की एक मिसाल थी। वह एक प्रसिद्ध कवयित्री थी, जिनकी कविताओं ने न सिर्फ़ भारतीयों को, बल्कि विदेशियों को भी प्रभावित किया। Sarojini Naidu एक कवयित्री के साथ-साथ एक सच्ची देशभक्त भी थी। वह एक जानी-मानी स्वतंत्रता सेनानी थी, जिन्होंने भारत को औपनिवेशिक शासन के चंगुल से मुक्त कराने में अपनी अहम भूमिका निभाई। एक स्त्री होने के साथ-साथ वे अन्य स्त्रियों के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत भी थी।
Sarojini Naidu ने अपने जीवन में कई विशेष उपलब्धियों को प्राप्त किया, जिसे आज भी याद किया जाता है। वह पहली भारतीय महिला गवर्नर थी।
सरोजनी नायडू का जीवन परिचय (Sarojini Naidu Jivan Parichay)
सरोजनी नायडू हैदराबाद में जन्मीं थी। वर्ष 1879 में 13 फरवरी को उनका जन्म हुआ था। अघोरनाथ चट्टोपाध्याय, सरोजनी नायडू के पिता थे। Sarojini Naidu की माँ वरदा सुन्दरी देवी थी। बंगाल प्रांत (बांग्लादेश) के ढाका में उनका पैतृक घर था। अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक बंगाली ब्राह्मण तथा निज़ाम कॉलेज के प्राचार्य थे। सरोजनी नायडू की माँ एक कवयित्री थी, जो बंगाली में कविता लिखती थी।
आठ भाई-बहनों में Sarojini Naidu सबसे बड़ी थी। हैदराबाद में उनका परिवार जाना-माना था, क्योंकि उनके एक भाई वीरेंद्रनाथ एक क्रांतिकारी थे। वहीं उनके दूसरे भाई हरिंद्रनाथ कवि, अभिनेता व नाटककार थे।
आरम्भिक जीवन तथा शिक्षा
सरोजनी नायडू शुरुआत से ही प्रखर बुद्धि की विद्यार्थी थीं। वर्ष 1891 में उन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा को पास किया। उस समय वे केवल 12 वर्ष की थीं, साथ ही उन्होंने परीक्षा में अव्वल दर्जा प्राप्त किया। मैट्रिक की परीक्षा पास करने बाद उन्हें विश्वविद्यालय अध्ययन हेतु अर्हता प्राप्त हो चुकी थी। उनके पिताजी चाहते थे, कि वे विज्ञान व गणित में आगे पढ़ाई करें, जबकि सरोजनी जी को कविताएँ लिखने में रुचि थी। एक बार उन्होंने गणित की कॉपी में 1300 पंक्तियों की एक कविता लिखी, जिसे देखकर उनके पिता आश्चर्यचकित हो गए। उनके पिताजी ने उसकी कई प्रतियाँ छपवायीं तथा कुछ लोगों में बांटी। हैदराबाद के निजाम सरोजनी जी की इस कला से प्रभावित हुए तथा उन्हें आगे अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की।
Sarojini Naidu ने लंदन के किंग्स कॉलेज तथा कैम्ब्रिज के गिर्टन कॉलेज से आगे की पढ़ाई पूरी की।
सरोजनी नायडू की शादी व बच्चे
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरोजिनी नायडू 1898 में वापस हैदराबाद आ गईं। वापस आकर उन्होंने गोविंदराजू नायडू से शादी कर ली। गोविंदराजू नायडू पेशे से चिकित्सक थे और उनकी Sarojini Naidu से पहली मुलाकात इंग्लैंड में ही हुई थी। यह एक अंतर-जातीय विवाह था, जो कि उस समय सामाजिक तौर पर अनुचित था। बावजूद इसके, उनके परिवार वाले उनकी शादी के लिए मान गए थे और उनकी शादी करा दी थी।
Sarojini Naidu के चार बच्चे थे:- जयसूर्य, पद्मजा , रणधीर तथा लीलामणि।
सरोजनी नायडू का उपनाम
सरोजनी नायडू का उपनाम भारत के लोगों ने उन्हें दिया था। ये उपनाम था, कोकिला। ‘कोकिला’ उपनाम उनकी प्रतिभा को दर्शाता था। कोकिला उपनाम उनकी कविता रचना व कविता वाचन के लिए दिया गया था। उनकी सुरीली आवाज में कविता वाचन लोगों को प्रभावित कर देता था। कविता वाचन के समय एक अलग ही भाव झलकता था, जो कि सुनने वालों को बहुत पसंद आता था।
इस उपनाम के पीछे एक वजह यह भी रही, कि सरोजनी नायडू ने कांग्रेस के अधिवेशन में प्रथम बार राष्ट्रगान का सस्वर वाचन किया था, जिसके परिणाम स्वरूप गांधीजी ने उन्हें भारत की कोकिला कहकर संबोधित किया था।
सरोजनी नायडू की जयंती (Sarojini Naidu Jayanti)
प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को सरोजनी नायडू की जयंती मनायी जाती है। सरोजनी नायडू की जयंती को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस विशेष दिन को कई उद्देश्यों के साथ मनाया जाता है।
सरोजनी नायडू की जयंती पर देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों को आयोजित किया जाता है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को Sarojini Naidu के बारे में बताने का प्रयास किया जाता है। Sarojini Naidu नारी सशक्तिकरण की एक प्रतीक थी। उनकी जयंती के दिन नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाओं की शुरुआत की जाती है।
सरोजनी नायडू का स्वतंत्रता अन्दोलन में योगदान
भारत को स्वतंत्रता दिलाने में Sarojini Naidu ने भी अपनी विशेष भूमिका निभाई थी। उनके द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में किये गए योगदान को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा बताया गया है:-
- 20 वीं शताब्दी के शुरूआती सालों में Sarojini Naidu गोपाल कृष्ण गोखले से बहुत प्रभावित हुईं तथा उन्होंने ने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का निर्णय लिया। वर्ष 1905 में बंगाल-विभाजन के बाद उन्होंने स्वतंत्रता अन्दोलन में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज की। बड़े-बड़े क्रांतिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने स्वतंत्रता के लिए कार्य करना शुरु कर दिया।
- स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ, वे समाज कल्याण तथा महिलाओं की बेहतर स्थिति के लिए भी कार्य कर रही थी। वर्ष 1915 से 1918 के बीच उन्होंने सामाजिक कल्याण व नारी-मुक्ति आदि विषयों पर व्याख्यान देने के लिए भारत देश के विभिन्न भागों की यात्राएं की। इस दौरान वह स्वतंत्रता संग्राम को विस्तार देने का प्रयास कर रही थी।
- वर्ष 1917 में महिला भारतीय संघ के गठन में भी उन्होंने सहायता की। होमरूल लीग की अध्यक्ष तथा एनी बेसेंट (उनकी सहायिका) के साथ वे होमरूल के मुद्दे को लेकर लन्दन भी गईं थीं।
- 1930 में जब गांधीजी द्वारा दांडी मार्च निकाला गया था, तो उस रैली में भी Sarojini Naidu ने भाग लिया था। नमक कानून तोड़ने के बाद सभी को ब्रिटिश अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया था।
- 1931 में जब दूसरे गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ था, तो उस समय Sarojini Naidu ने भी गांधी जी के साथ इस सम्मेलन में भाग लिया था।
- Sarojini Naidu को 1908 में केसर-ए-हिंद की उपाधि दी गयी थी, जो उन्होंने जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद वापस लौटा दी थी।
- सरोजनी नायडू ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा क्रांति की ज्योति को जलाए रखा।
- 1942 में जब भारत छोड़ो अन्दोलन की शुरुआत की गयी थी, तो उस समय Sarojini Naidu मुख्य नेतृत्वकर्ताओं में से एक थीं। इसके लिए उनको गिरफ्तार भी किया गया, जिसकी वजह से उन्होंने जेल में 21 माह का समय बिताया।
- गौरतलब है, कि 1925 के कानपुर अधिवेशन में उन्होंने अध्यक्ष की भूमिका भी निभायी थी।
सरोजनी नायडू की मृत्यु
वर्ष 1949 में 2 मार्च के दिन सरोजनी नायडू जी की गवर्नमेंट हाउस में मृत्यु हो गयी थी। उनकी मृत्यु का कारण हृदयाघात था।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
13 फरवरी 1879
हैदराबाद
कविता वाचन के दौरान उनकी आवाज बहुत सुरीली तथा भावपूर्ण होती थी।
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