हिंदू धर्म में सप्ताह के सात दिन किसी न किसी देवता को समर्पित होते है। ऐसे में शुक्रवार का दिन हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है। शुक्रवार के दिन माता संतोषी की पूजा और व्रत किया जाता है। इस व्रत को संतोषी व्रत भी कहते है।यह व्रत विशेष रूप से महिलाएं करती हैं हालांकि इस व्रत को पुरुष भी कर सकते है। शुक्रवार का व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। माता संतोषी का शुक्रवार का व्रत करने वाले व्यक्ति को धन, सुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में मां संतोषी के व्रत का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता संतोषी भगवान गणेश की पुत्री है। कहा जाता है कि माता संतोषी की पूजा करने से जीवन में संतोष का प्रवाह होता है। माना जाता है कि माता संतोषी की पूजा करने से धन और विवाह संबंधी समस्याएं दूर होती है।
संतोषी माता व्रत विधि
इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को सूर्योदय से पहले उठकर घर की साफ-सफाई करनी चाहिए। उसे अपने नित्य कर्मों जैसे स्नान आदि को पूर्ण करके घर में गंगाजल छिड़ककर उसे शुद्ध करना चाहिए। फिर घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में किसी शांत स्थान पर संतोषी देवी की मूर्ति या तस्वीर लगाएं। एक बड़े बर्तन में पूजा की सारी सामग्री और लोटे में जल भरकर रख लें। इस जलपात्र के ऊपर गुड़ और चने का दूसरा बर्तन रखें। माता संतोषी की पूजा विधि पूर्वक करें।मां के सामने घी का दीपक जलाएं।मां को अक्षत, पुष्प, सुगंधित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें। साथ ही गुड़ और चने का भोग लगाएं।
इसके बाद देवी संतोषी की कथा का श्रवण किया जाता है, फिर आरती की जाती है, इसके बाद गुड़ और चने का प्रसाद वितरण किया जाता है। अंत में लोटे का जल घर में छिड़कें और बचा हुआ जल तुलसी के पौधे में डाल दें। इस व्रत को इसी प्रकार 16 शुक्रवार नियमित रूप से करें। अंतिम शुक्रवार को व्रत का समापन करें। अंतिम दिन देवी संतोषी की पूजा की उपरोक्त विधि का पालन करें। फिर 8 बच्चों को खीर-पूरी का भोग लगाएं और उन्हें केले का दान और प्रसाद देकर विदा करें। अंत में व्रत करने वाले व्यक्ति को भोजन करना चाहिए।
शुक्रवार संतोषी माता व्रत कथा
एक बार एक वृद्ध महिला थी, उसका एक ही बेटा था। बेटे की शादी के बाद वह अपनी बहू से घर का सारा काम कराती थी। लेकिन, उसने उसे कभी ठीक से खाना नहीं दिया। लड़का ये सब बातें देखता तो था पर अपनी माँ से कभी कुछ नहीं कह पाता था। उसकी पत्नी दिन भर काम में लगी रहती। वह उपले बनाती, रोटियां बनाती, बर्तन साफ करती, कपड़े धोती थी। इन सब कामों को करते-करते उसका दिन निकल जाता था।
बहुत सोच-विचार और योजना के बाद लड़के ने अपनी माँ से कहा, “माँ, मैं विदेश जा रहा हूँ।” माँ को उसकी यह बात अच्छी लगी और उन्होंने उसे जाने की अनुमति दे दी। इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास गया और बोला, ‘मैं विदेश जा रहा हूं। मुझे अपनी कोई निशानी दो। पत्नी ने कहा “मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है जो मैं आपको दे सकूँ।” इतना बोलकर वह अपने पति के पैरो में गिर पड़ी और वही रोने लगी जिस वजह से लड़के के जूतों पर उसकी पत्नी के हाथ के निशान लग गये जो कि गाय के गोबर से सने हुए थे।
बेटे के जाने के बाद वृद्धा की प्रताड़ना बढ़ती गई। एक बार उसकी बहू बहुत परेशान होकर मंदिर गई। वहां उसने कई महिलाओं को पूजा करते देखा। उसने उन स्त्रियों से व्रत के विषय में पूछा। उन्होंने कहा, वे देवी संतोषी का व्रत कर रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस व्रत से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते है।
महिलाओं ने उसे बताया कि शुक्रवार को नित्य कर्म निपटाकर एक पात्र में चने और गुड़ से शुद्ध जल लेकर पूरी श्रद्धा से संतोषी माता की पूजा करनी चाहिए। खट्टे स्वाद वाली कोई वस्तु न खाएं और न ही किसी को उपहार दें। एक बार ही भोजन करें।
व्रत की विधि सुनकर वह प्रत्येक शुक्रवार को पूरे धैर्य के साथ उसका पालन करने लगी। धीरे धीरे उसकी सास का व्यवहार भी उसके प्रति सुधारने लगा। देवी की कृपा से उसके पति का पत्र आया। कुछ दिन बाद उसने पैसे भी भेज दिए थे। वह प्रसन्न हो गई और व्रत का पालन नियमित रखा। वह मंदिर गई और सभी महिलाओं को बताया कि देवी संतोषी के आशीर्वाद से उसकी सास के व्यवहार में बदलाव आया है और उसके पति ने विदेश से पत्र और धन भेजा है। उसने कहा “हे माँ! जब मेरे पति वापस लौट आएंगे तब मैं व्रत का उद्यापन (निष्कर्ष) करूंगी।
एक बार देवी संतोषी उनके पति के सपने में आईं और उसके घर न लौटने का कारण पूछा। तब उसने उत्तर दिया कि सेठ (साहूकार) का सारा सामान नहीं बिका और, पैसा भी अब तक नहीं आया था। अगले दिन उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात बताई और घर जाने की अनुमति मांगी। लेकिन, सेठ ने मना कर दिया। देवी की कृपा से उसकी दुकान पर बहुत से खरीदार आए और उन्होंने सारा सामान खरीद लिया। कर्जदारों ने सेठ के पैसे लौटा दिए। अब साहूकार ने उसे वापस घर जाने की इजाजत दे दी।
घर जाकर उसने अपनी माँ और पत्नी को बहुत सारा धन दिया। तब पत्नी ने देवी संतोषी के व्रत का उद्यापन करने को कहा। उसने सभी को आमंत्रित किया और उद्यापन की सारी तैयारी की। पास में रहने वाली एक महिला को उसकी खुशी देखकर जलन होने लगी। महिला ने अपने बच्चों को कहा कि खाना खाते समय तुम कुछ खट्टा खाने का माँगना।
उद्यापन के समय बच्चे खट्टा खाने की जिद करने लगे। बहू ने बच्चों को चुप कराने के लिए कुछ पैसे दिए। बच्चे खरीदारी करने गए और उस पैसे से लाई गई इमली खाने लगे। देवी ने इससे क्रोधित होकर अपना क्रोध प्रकट किया। राजा के सेवकों ने उसके पति को पकड़ लिया और उसे महल ले गए। फिर किसी ने उस महिला को बताया कि बच्चों ने उद्यापन के दौरान पैसों की इमली खा ली। उसने फिर व्रत का उद्यापन करने का संकल्प लिया।
संकल्प लेने के बाद जब वे दर्शन करके मंदिर से बाहर आ रहे थे तो उन्होंने देखा कि उनका पति उनकी ओर आ रहा है। पति ने कहा कि राजा कमाए हुए धन पर कर मांग रहा है। अगले शुक्रवार को उन्होंने पुनः विधिपूर्वक व्रत का उद्यापन किया। देवी संतोषी प्रसन्न हुईं। नौ महीने के बाद उस महिला ने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। इसके बाद माता, पति-पत्नी सब संतोषी माता की कृपा से सुखपूर्वक रहने लगे।
शुक्रवार संतोषी माता व्रत के नियम
संतोषी माता पूजा प्रत्येक शुक्रवार को 16 सप्ताह की अवधि के लिए की जाती है। शुक्रवार के दिन प्रात: स्नान करके पूजा स्थल पर संतोषी माता की तस्वीर लगाएं और एक छोटा कलश रखें। संतोषी माता की तस्वीर कोफूलों से सजाएं और प्रसाद के रूप में गुड़ का टुकड़ा और केले के साथचना रखें। व्रत के दिन दही, नींबू आदि कुछ भी खाना या छूना नहीं चाहिए।
देवी संतोषी माता की तस्वीर के सामने दीया (दीप) जलाएं। मंत्र जाप शुरू करें, कथा पढ़ें और माता की आरती करें। पूजा के दिन बिना कुछ खट्टा खाए संतोषी माता का अनुष्ठान किया जाता है।पूरे दिन उपवास करें या दिन में एक बार भोजन कर सकते हैं।
संतोषी माता का अनुष्ठान शुरू करने से पहले महत्वपूर्ण पूजा सामग्री एकत्र कर लीजिये; जैसे कलश, पान के पत्ते, फूल, चना और प्रसाद के लिए गुड़, आरती के लिए कपूर, दीये, हल्दी और कुमकुम, संतोषी माता की तस्वीर, अगरबत्ती, कलश के लिए नारियल और हल्दी मिले चावल।
संतोषी माता के अनुष्ठान के दौरान, पहली प्रार्थना संतोषी माता के पिता गणेश और माता रिद्धि सिद्धि के लिए होती है। संतोषी माता कथा पढ़ते समय हाथ में गुड़ और चने की दाल रखें। सुनने वाले हर समय “संतोषी माता की जय” बोलते रहें। कथा पूरी करने के बाद हाथ में पकड़ा हुआ गुड़ और चना इकट्ठा करके गाय को खिलाना चाहिए। पात्र में जो गुड़ और चना रखा हो उसे प्रसाद के रूप में सभी को बांट देना चाहिए।
संतोषी माता व्रत के लाभ
देवी संतोषी भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और व्यापार में सफलता दिलाती हैं, दरिद्रता दूर करती हैं, दुष्टों का नाश करती हैं। भक्त देवी से संतान प्राप्ति, व्यापार में लाभ, आय में वृद्धि, और दुखों का नाश करने की प्रार्थना करते हैं।
माना जाता है कि संतोषी माता के सही ढंग से किए गए अनुष्ठान से भक्तों को परिवार में शांति, समृद्धिका आशीर्वाद मिलता है। यह एक विश्वास है जो सभी अनुष्ठानों को सुचारू रूप से करने में मदद करता है।
संतोषी माता व्रत उद्यापन विधि
मां संतोषी के 16 शुक्रवार का व्रत करने के बाद अंतिम शुक्रवार को व्रत का उद्यापन करना चाहिए। इसके लिए माता संतोषी की पूजा करें और बच्चों एवं महिलाओं को भोजन के लिए आमंत्रित करें। इस दिन आटे का खाजा, चावल की खीर और चने की सब्ज़ी बनानी चाहिए। बच्चों और स्त्रियों को यह भोजन बड़ी श्रद्धा और प्रेम से खिलाए। साथ ही केले का प्रसाद दें। भोजन के बाद यथाशक्ति दक्षिणा दें। इस तरह पूजा करने से मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों के दुख और दरिद्रता को दूर करती हैं, साथ ही हर मनोकामना पूरी करती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
घर में हमेशा सुख-समृद्धि और खुशियाँ बनाये रखने का आशीर्वाद पाने के लिए लगातार 16 शुक्रवार को पूरे विधि-विधान से मां संतोषी की पूजा की जाती है।
मां संतोषी विघ्नहर्ता गणेश की पुत्री हैं। संतोषी मां का व्रत करने से सभी संकट दूर हो जाते है और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही मन में तृप्ति का भाव उत्पन्न होता है। लगातार 16 शुक्रवार तक व्रत और पूजा करने से परिवार में समृद्धि और शांति की बनी रहती है।
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