संत रविदास कौन थे? (Sant Ravidas kon the)
संत रविदास एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनके व्यक्तित्व को भारत देश के प्रमुख व्यक्तित्वों में शामिल किया जाता है। गुरु संत रविदास 14वीं शताब्दी के अंत व 15वीं शताब्दी के शुरुआती समय के एक महान संत, कवि, दार्शनिक व समाज सुधारक थे।
Sant Ravidas निर्गुण भक्ति धारा के संतों में से एक थे, जिन्हें सबसे प्रमुख माना जाता है। उस समय सम्पूर्ण भारत में विभिन्न भक्ति आन्दोलन चलाया जा रहा था तथा उत्तर भारत में भक्ति अन्दोलन का नेतृत्व करने वालों में से संत रविदास भी एक थे। उन्होंने अपनी काव्य रचनाओं द्वारा अपने अनुयायियों, चाहने वालों, अपने समुदाय के लोगों व समाज के लोगों के बीच अपने आध्यात्मिक व सामाजिक संदेशों का संचार किया।
कई लोगों के लिए संत रविदास एक मसीहा के रूप में थे, जो आध्यात्मिक व सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। संत रविदास आध्यात्मिक तौर पर बहुत समृद्ध थे। समाज के लिए उन्होंनें जो अपना योगदान दिया, उसके लिए आज भी लोगों के दिल में उनके लिए सम्मान है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र व पंजाब राज्यों में संत रविदास की प्रसिद्धि बहुत ज्यादा है।
संत रविदास का जीवन परिचय (Sant Ravidas Jivan Parichay)
Sant Ravidas की जन्म तिथि को लेकर विद्वानों व इतिहासकारों द्वारा विभिन्न मत प्रस्तुत किए गए है। कुछ विद्वान मानते हैं, कि रविदास जी का जन्म 1398 में हुआ था, तो वहीं कुछ विद्वानों के अनुसार 1399 को उनका जन्म वर्ष बताया गया है। बहुत के आधार पर माना जाता है, कि वर्ष 1377 में माघ मास की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जी पैदा हुए थे।
संत रविदास जी का जन्म वाराणसी के निकट सीर गोबर्धन गाँव में हुआ था, जिसे अब “श्री गुरु रविदास जन्म स्थान” के रूप में जाना जाता है। संत रविदास के पिता का नाम संतोख दास तथा माता का कलसा देवी था। संत रविदास के पिताजी राजा नगर राज्य में एक सरपंच हुआ करते थे। रविदास जी चर्मकार जाति से थे। उनके पिता जी चमड़े का काम करते थे तथा उससे जूते व चप्पल बनाया करते थे।
संत रविदास की प्रारंभिक शिक्षा
बचपन में पंडित शारदा नंद संत रविदास के गुरु थे। उनकी पाठशाला में ही रविदास जी शिक्षा लेने जाया करते थे। शुरुआत से ही वे काफ़ी होनहार छात्र थे। उनके गुरु भी उनकी प्रतिभा से प्रभावित थे। रविदास जी को ऊँची जाति वाले छात्रों द्वारा हीन भावना का शिकार होना पड़ा। ऊँची जाति के छात्रों ने रविदास जी का पाठशाला में आना बंद करवा दिया था।
रविदास जी की प्रतिभा को देखते हुए पंडित शारदा नंद जी ने अपनी निजी पाठशाला में रविदास जी को शिक्षा प्रदान की।
संत रविदास का आगे का जीवन
समय के साथ जैसे-जैसे संत रविदास बड़े हुए, उनका झुकाव आध्यात्म की ओर बढ़ता चला गया। सामाजिक बुराइयों व कुरीतियों के प्रति भी उनका रोष बढ़ता चला गया। सामाजिक कुरीतियों का बुरा प्रभाव उन्होंने अपने जीवन में अनुभव किया था। अपने आध्यात्मिक ज्ञान व सामाजिक कुरीतियों के प्रति अपने विचारों को लोगों के सामने लाने के लिए संत रविदास जी ने लेखनी का सहारा लिया और कई काव्य रचनाएँ की।
संत रविदास किनकी पूजा करते थे?
माना जाता है, कि संत रविदास राम जी की उपासना करते थे। उनके द्वारा बताया गया था, कि कृष्ण, करीम, केशव, रहीम सभी राम जी के ही रूप है।
रविदास जी ने कर्म को विशेष महत्ता दी है। उनके अनुसार कर्म ही पूजा है।
संत रविदास की कहानी (Sant Ravidas ki Kahani)
संत रविदास से जुड़ी कई कहानियाँ प्रचलित है। उनमें से एक कहानी इस प्रकार है:-
एक बार एक ब्राह्मण गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। उन्होंने रविदास जी से भी गंगा स्नान के लिए जाने के लिए पूछा। रविदास जी ने कहा कि उनके पास काम है और वो काम छोड़कर नहीं जा सकते। रविदास जी ने ब्राह्मण को एक सिक्का गंगा माँ को अर्पित करने के लिए दिया। ब्राह्मण सिक्का लेकर चला गया। ब्राह्मण ने गंगा माँ को वो सिक्का अर्पित किया, जिसके बदले गंगा माँ ने एक सोने का कंगन दिया। ब्राह्मण ने सोचा कि रविदास को इस कंगन के बारे में क्या ही पता चलेगा और ये सोचकर उसने वो कंगन रानी को भेंट कर दिया। रानी को कंगन बहुत पसंद आया और उसने दूसरे कंगन की भी माँग की। ब्राह्मण जब दूसरा कंगन न दे सका, तो राजा ने उसे दंड देने की धमकी दी। धमकी के डर से ब्राह्मण रविदास जी के पास आया और सारी बात बतायी तथा उनसे क्षमा माँगते हुए सहायता माँगी। रविदास जी ने ब्राह्मण को माफ़ कर दिया तथा कठौती के जल की ओर ध्यान लगाकर गंगा माँ का आह्वान किया और दूसरे कंगन की माँग की। उनके इस आह्वान के बाद कठौती में दूसरा कंगन भी आ गया। ब्राह्मण को कंगन देकर रविदास जी ने कहा , कि- “मेरा मन चंगा, तो कठौती में गंगा” । उसके बाद ये कहावत प्रसिद्ध हो गयी।
संत रविदास की जयंती (Sant Ravidas Jayanti)
प्रत्येक वर्ष माघ मास की पूर्णिमा को संत रविदास जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष भजन-कीर्तन किए जाते है। विभिन्न स्थानों पर जुलूस निकाला जाता है।
संत रविदास के दोहे (Sant Ravidas ke Dohe)
Sant Ravidas Ji ने कई काव्यों की रचनाएँ कीं। इन रचनाओं में उनके कई दोहे भी शामिल हैं। उनके कुछ दोहे निम्नलिखित हैं:-
“ब्राह्मण मत पूजिये, जो होए गुणहीन
पूजिये चरण चंडाल के जिसके होने गुण प्रवीण”“जाति–जाति में जाति हैं, जो केतन के पात
रैदास मनुष न जुड़ सके जब तक जाति न जात”“हीर–सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
संत रविदास के दोहे
ते नर जमपुर जाहिंगे , सत भाषै रविदास”
संत रविदास की मृत्यु कैसे हुई?
संत रविदास के ज्ञान, व्यवहार व उनकी मानवता के कारण उनके अनुयायी बढ़ते जा रहे थे। वो एक नीची जाति से थे , इसलिए उच्च वर्ग के लोग उनसे जलते थे तथा उन्हें मारने का प्रयास करते रहते थे।
एक बार उन्हें एक साजिश के जरिए एक भोज पर आमंत्रित किया गया। रविदास जी इस साजिश से भली-भांति परिचित थे। यह साजिश रविदास जी को मारने की थी, लेकिन उनके स्थान पर साजिशकर्ताओं के ही एक साथी की मृत्यु हो जाती है। इस घटना के बाद सभी रविदास जी से क्षमा माँगते है।
कई लोग मानते है, कि रविदास जी की हत्या की गयी थी, जबकि बहुमत के अनुसार माना जाता है, कि 1540 के आस-पास उनकी प्राकृतिक रूप से मृत्यु हुई थी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
सीर गोबर्धन गाँव
रैदास
संत रामानंद से
चर्मकार (चमार)
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