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सम्मेद शिखरजी

सम्मेद शिखरजी – जैन तीर्थ स्थल | Sammed Shikharji

Posted on December 27, 2022
Table of contents
  1. सम्मेद शिखरजी | Sammed Shikharji
  2. श्री सम्मेद शिखरजी का इतिहास | Sammed Shikharji ka Itihas
  3. सम्मेद शिखरजी से जुड़ी मान्यताएँ
  4. सम्मेद शिखरजी का मौसम | Sammed Shikharji ka Mousam
  5. सम्मेद शिखरजी कैसे पहुँचे? | Sammed Shikharji Kese Phuche
  6. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

सम्मेद शिखरजी | Sammed Shikharji

भारत देश विविधताओं से भरा देश है, जहाँ विभिन्न धर्मों का भी अस्तित्व है। धार्मिक विविधता होने के कारण यहाँ विभिन्न तीर्थ स्थल भी मौजूद है, जो भारत देश को विशेष बनाते है। इन्हीं तीर्थ स्थलों में से एक प्रमुख तीर्थ स्थल श्री सम्मेद शिखरजी भी है। श्री सम्मेद शिखरजी मुख्य रूप से जैन तीर्थ स्थल है। ये तीर्थ स्थल झारखण्ड राज्य के गिरिडीह जिले में, छोटा नागपुर पठार की एक पहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी को पारसनाथ पर्वत के नाम से जाना जाता है। यह पहाड़ 1,350  मीटर की ऊँचाई के साथ झारखण्ड राज्य का सबसे ऊँचा स्थान भी है।

पारसनाथ पर्वत विश्व में प्रसिद्ध है। यह स्थान जैन धर्म के अनुयायियों हेतु एक अति महत्वपूर्ण स्थल है। हर वर्ष यहां लाखों जैन धर्म के अनुयायी प्रार्थना के लिए आते हैं। न सिर्फ़ जैन धर्म, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी पर्यटक के रूप में यहाँ घूमने के लिए आते हैं। श्री सम्मेद शिखरजी को सर्वश्रेष्ठ जैन तीर्थ माना जाता है।

जैन ग्रंथों की माने तो अयोध्या और Sammed Shikharji, दोनों ही स्थानों का अस्तित्व इस सृष्टि के समानांतर माना जाता है। इसी वजह से दोनों को ‘शाश्वत’ भी माना जाता है। जब तीर्थयात्री सम्मेद शिखरजी की तीर्थयात्रा प्रारंभ करते हैं, तो तीर्थंकरों को याद करते हुए आगे बढ़ते हैं, जिससे उनका मन आस्था, श्रद्धा, खुशी और उत्साह से भर जाता है।

श्री सम्मेद शिखरजी का इतिहास | Sammed Shikharji ka Itihas

श्री सम्मेद शिखरजी के बारे में कोई निश्चित इतिहास प्राप्त नहीं हैं, इसलिए इसके लिए विभिन्न ग्रंथों का सहारा लिया जाता है।

तीर्थ (तीर्थस्थल) के रूप में Sammed Shikharji का सर्वप्रथम संदर्भ जैन धर्म के  प्रमुख बारह ग्रंथों में से एक, ज्ञानीधर्मकथा ग्रंथ  में मिलता है। पार्श्वनाथचरित में भी सम्मेद शिखरजी का उल्लेख किया गया है। पार्श्वनाथचरित 12वीं शताब्दी की जीवनी है , जिसे पार्श्व ने लिखा था।

आधुनिक इतिहास की मानें, तो इस मन्दिर का निर्माण विशालदेव व वास्तुपाल ने करवाया था, जो उस समय के दरबार में मुख्य अधिकारियों में से एक थे।

जब 1950 में बिहार भूमि सुधार अधिनियम लागू हुआ,  तो इसके माध्यम से शिखरजी का क्षेत्र सरकार की सम्पत्ति के रूप में आ गया। इसके बाद जैन धर्म के लोगों के इस तीर्थ स्थान के प्रति अधिकार संदेह की सीमा में आ गए। पर्यटक स्थल के रूप में सम्मेद शिखरजी का प्रयोग जैन की धार्मिक आस्था एवं मान्यताओं को प्रभावित करता है।

जैन संप्रदायों द्वारा सम्मेद शिखरजी के लिए राज्य की विकास योजनाओं के विरुद्ध एक विरोध आंदोलन शुरू किया गया था, जिसका नाम था शिखरजी बचाओ अभियान। जैनियों द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पहाड़ी के बुनियादी ढांचे व सम्मेद शिखरजी तीर्थ स्थल में परिवर्तन व सुधार के लिए राज्य शासन की योजनाओं का विरोध किया गया, क्योंकि शिखरजी पहाड़ी के व्यावसायीकरण से जैनियों की आस्था व श्रद्धा आहत होती है।  युगभूषण सूरी ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। इस आन्दोलन की माँग थी कि सम्मेद शिखरजी पहाड़ी को राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से पूजा स्थल की मान्यता दी जाए। अन्ततः राज्य सरकार द्वारा 2018 में 26 अक्टूबर को सम्मेद शिखरजी पहाड़ी को ‘पूजा स्थल’ के रूप में मान्यता दी गई।

सम्मेद शिखरजी से जुड़ी मान्यताएँ

Sammed Shikharji से जुड़ी विभिन्न मान्यताएँ इस प्रकार है:-

  • जैन धर्म शास्त्रों के अनुसार जीवन में एक बार सच्चे मन से सम्मेद शिखरजी की यात्रा करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद नरक व पशु योनि प्राप्त नहीं होती।
  • इस स्थान की भावपूर्ण यात्रा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा संसार के जन्म-कर्म से सम्बंधित बंधनों से आगामी 49 जन्मों के लिए मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
  • इस स्थान को पवित्र व सात्विक माना जाता है, जिसके प्रभाव से यहाँ के हिंसक प्रवृति वाले जानवरों , जैसे:- शेर, बाघ आदि का स्वभाव भी अहिंसक रहता है। इसलिए तीर्थयात्री बिना किसी डर के यहाँ की यात्रा करते है।
  • इस पवित्र स्थान को मोक्ष स्थान माना जाता हैं। जैन शास्त्रों के अनुसार जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों ने इस स्थान पर मोक्ष की प्राप्ति की थी। माना जाता है कि अजीतनाथ जी एवं संभवनाथ जी ने सबसे पहले शिखरजी में मोक्ष की प्राप्ति की थी।

सम्मेद शिखरजी का मौसम | Sammed Shikharji ka Mousam

सम्मेद शिखरजी का मौसम सामान्यतः महीनों के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। अप्रैल से जून के महीनों का समय गर्म मौसम का होता है। जुलाई से सितंबर का समय बरसात के मौसम का रहता है तथा दिसंबर से फरवरी के महीनों का समय शीत ऋतु का रहता है।

वैसे तो सालभर भक्त इस पवित्र स्थान की यात्रा के लिए आते हैं, लेकिन सर्दी के मौसम को यहाँ की यात्रा के लिए सबसे अच्छा माना जाता है, इसलिए इस मौसम में यहाँ भक्तों की संख्या ज्यादा होती है।

सम्मेद शिखरजी कैसे पहुँचे? | Sammed Shikharji Kese Phuche

सम्मेद शिखरजी पहुँचने के लिए तीनों माध्यमों का प्रयोग किया जा सकता है। यानि रेलमार्ग, वायु मार्ग व सड़क मार्ग , तीनों ही माध्यम यहाँ आने के लिए उपलब्ध है।

  • वायु मार्ग:-  सम्मेद शिखरजी के पास में कोई एयरपोर्ट नहीं है। इसके सबसे निकट का हवाई अड्डा रांची का एयरपोर्ट है, जो पारसनाथ से करीब 103 किलोमीटर की दूरी पर है। एक अन्य हवाई अड्डा करीब 117 किलोमीटर की दूरी पर गया में स्थित है। एयरपोर्ट से टैक्सी या बस के माध्यम से पारसनाथ पर्वत तक पहुंचा जा सकता है।
  • रेलमार्ग:-   इसके निकटतम रेलवे स्टेशनों में पारसनाथ रेलवे स्टेशन व गिरिडीह रेलवे स्टेशन शामिल है। इन रेलवे स्टेशनों के लिए प्रमुख रेलवे स्टेशनों से नियमित रेल मिल जाती है। यहाँ से टैक्सी आदि के द्वारा पारसनाथ पर्वत तक पहुंचा जा सकता है।
  • सड़क मार्ग:- बस आदि के द्वारा सड़क मार्ग का प्रयोग करते हुए गिरिडीह तक पहुंचा जा सकता है। जिले में पारसनाथ पर्वत के लिए बस सेवा उपलब्ध है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

सम्मेद शिखरजी किस जिले में स्थित है?

गिरिडीह जिले में।

किस वर्ष में सम्मेद शिखरजी को पूजा स्थल घोषित किया गया था?

2018 में।

सम्मेद शिखरजी जाने के लिए सबसे अच्छा समय कौन–सा है?

दिसंबर से फरवरी माह के बीच का समय।

सम्मेद शिखरजी को अन्य किस नाम से जाना जाता है?

मोक्ष स्थान।

Disclaimer : इस पोस्ट में दी गई समस्त जानकारी हमारी स्वयं की रिसर्च द्वारा एकत्रित की गए है, इसमें किसी भी प्रकार की त्रुटि हो, किसी की भावना को ठेस पहुंचे ऐसा कंटेंट मिला हो, कोई सुझाव हो, Copyright सम्बन्धी कोई कंटेंट या कोई अनैतिक शब्द प्राप्त होते है, तो आप हमें हमारी Gmail Id: (contact@kalpanaye.in) पर संपर्क कर सकते है।

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