भारत असंख्य संस्कृतियों और परंपराओं से भरा देश है, और ऐसा ही एक हिंदू पर्व “प्रदोष” है। हिंदू भक्तों का मानना है कि, यह सबसे शक्तिशाली व्रतों में से एक है। वे इस दिन उपवास रखते है और इस व्रत को बहुत उत्साह और जोश के साथ मनाते है। प्रदोष अनुष्ठान एक तपस्या है, जिसका उद्देश्य अच्छे स्वास्थ्य, शांति और मुक्ति (मोक्ष) की तलाश करना है।
प्रदोष का अर्थ (Pradosh ka Arth)
‘प्रदोष’ शब्द का अर्थ है ‘रात का प्रारंभ भाग’, या ‘शाम से संबंधित’। इसलिए, यह व्रत संध्याकाल के दौरान मनाया जाता है और इसे “प्रदोष व्रत” कहा जाता है। ‘शिव पुराण’ के अनुसार, यह माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करते है। यह व्रत आमतौर पर हिंदू कैलेंडर के अनुसार माह के 13 वें दिन (तिथि) रखा जाता है।
सभी सात प्रदोषों में से, शनि प्रदोष (जब प्रदोष शनिवार को पड़ता है) और सोम प्रदोष (जब प्रदोष सोमवार को पड़ता है) सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
प्रदोष व्रत की विधि ( Pradosh Vrat Vidhi)
यह शुभ दिन सुख-समृद्धि और कल्याण का दिन माना जाता है। इस दिन देवी पार्वती और भगवान शिव के दर्शन करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन की जाने वाली पूजा भगवान शिव और पार्वती को प्रसन्न करने के लिए प्रार्थना और मंत्रों के साथ शुरू होती है। भक्तों को 108 बार महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करके और घी के साथ दीया जलाकर शिवलिंग की पूजा करना चाहिए।
हिंदू कैलेंडर और मान्यताओं के अनुसार, इस पवित्र दिन पर उपवास करने के दो तरीके है। पहले तरीके के अनुसार भक्त सुबह जल्दी स्नान करके सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक का उपवास करते है। फिर वे अगले दिन सुबह स्नान करने के बाद ताजा भोजन ग्रहण करने के बाद ही उपवास तोड़ सकते है। दूसरे तरीके के अनुसार भक्त सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास करता है, क्योंकि प्रदोष शब्द सूर्यास्त के आसपास, शाम के समय को संदर्भित करता है। इस शुभ दिन पर, भक्त शाम के समय भगवान शिव के मंदिर जाते है।
प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat Katha)
स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार, सतयुग से पहले भी, देवताओं और असुरों ने संयुक्त रूप से भगवान विष्णु के मार्गदर्शन में समुद्र मंथन किया था। उन्होंने अमृत प्राप्त करने के लिए सबसे बड़े सर्प वासुकी को रस्सी के रूप में उपयोग करके ब्रह्मांडीय महासागर का मंथन किया और अमर होने के लिए इसका उपभोग किया। इस समुद्र मंथन का पहला परिणाम हलाहला (विष) था। जब समुद्र तल से विष निकला, तो वह इतना विषैला था कि वह ब्रह्मांड को नष्ट कर सकता था। इसलिए, देवता और दानव कोई भी इसे ग्रहण करने के लिए आगे नहीं आए। तब भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने और पृथ्वी पर रहने के लिए हलाहल का पान किया। जिस दिन भगवान शिव ने इस जहर की आखिरी बूंद पीने का फैसला किया, उस दिन को प्रदोष के दिन के रूप में मनाया जाता है।
प्रदोष व्रत के लाभ (Pradosh Vrat ke Labh)
ऐसा माना जाता है कि प्रदोष के दिन भगवान शिव का व्रत और पूजा करने से व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो सकता हैं। स्कंद पुराण प्रदोष व्रत के महत्व का खूबसूरती से वर्णन करता है –
- प्रदोष काल के दौरान शिव मंदिर में जाना और एक दीपक जलाना महादेव को प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त है।
- जो लोग इस शुभ दिन पर भक्ति और विश्वास के साथ व्रत रखते है, उन्हें संतोष, स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति होती है।
- भगवान शिव और पार्वती के मंदिर के अंदर 108 बार महा मृत्युंजय मंत्र का जाप मन को शांत करता है और आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ इच्छाओं की पूर्ति में सहायता करता है।
शिव चालीसा प्रदोष व्रत के सप्ताह में आने वाले दिन के अनुसार उसे रखने के महत्व और लाभ के बारे में बताती है:
- सोम प्रदोष जो सोमवार को पड़ता है, एक भक्त के लिए अच्छा स्वास्थ्य लाता है और उसकी सभी इच्छाओं को पूरा करने में मदद करता है।
- भौम प्रदोष जो मंगलवार को पड़ता है वह कई बीमारियों को दूर करता है और भक्त को लंबी उम्र का आशीर्वाद देता है।
- बुधवार का प्रदोष व्रत, करने वाले व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण करता है।
- गुरु प्रदोष गुरुवार के दिन पड़ता है, जो भक्त को अपने शत्रुओं से छुटकारा पाने और शांतिपूर्ण जीवन के लिए मदद करता है।
- भृगु वार प्रदोष जो शुक्रवार को पड़ता है, व्यक्ति के जीवन के आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने में मदद करता है।
- शनिवार के दिन पड़ने वाला शनि प्रदोष सबसे शुभ माना जाता है और इस दिन व्रत रखने से शिव पार्वती की कृपा से नि:संतान माता-पिता को संतान सुख और आनंदमय वैवाहिक जीवन जैसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- भानु वार प्रदोष जो रविवार को पड़ता है, वह जीवन में असीम प्रगति लाता है।
रविवार व्रत कथा (Ravivar Vrat Katha)
प्रदोष व्रत उद्यापन विधि (Pradosh Vrat Udhyapan Vidhi)
- त्रयोदशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके, साफ़ एवं कोरे वस्त्र पहने।
- रंगीन वस्त्र से भगवान की चौकी को सजाकर उस पर प्रथम पूज्य भगवान गणेशजी की प्रतिमा रख, शिव-पार्वती की प्रतिमा रखे और विधि विधान से पूजा करे।
- पूजा मे नेवेध लगाए एवं हवन करे।
- प्रदोष व्रत के हवन में पुराणों के अनुसार दिये मंत्र ॐ उमा सहित-शिवाये नम: का कम से कम 108 बार जप करते हुए आहुति दे।
- तदुपरान्त पुरे भक्तिभाव से आरती करें।
- अंत में पुरोहित को भोजन करा कर, उन्हें दान दे। पूरे परिवार के साथ भगवान शिव का आशीर्वाद लेकर प्रसादी ग्रहण करे।
प्रदोष व्रत कितने करने चाहिए ?
Pradosh Vrat लगातार 11 या 1 वर्ष तक के करके व्रत का उद्यापन कर सकते है। अगर कोई व्यक्ति लगातार 11 या 1 वर्ष तक त्रयोदशी का व्रत करता है तो भगवान शिव उसकी सभी इच्छाएं पूरी करते है।
प्रदोष व्रत कौन कर सकता है ?
Pradosh Vrat हिंदू कैलेंडर का एक शुभ त्यौहार है, जो अनिवार्य रूप से भगवान शिव और देवी पार्वती को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। भगवान शिव के भक्तों द्वारा मनाया जाने वाला यह त्यौहार या व्रत अनुष्ठान किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, चाहे उनकी उम्र और लिंग कुछ भी हो।
प्रदोष व्रत में क्या – क्या खाया जा सकता है ?
हालांकि अधिकांश हिंदू भक्त प्रदोष उपवास के दौरान भोजन नहीं करते है, जो कुछ लोग 24 घंटे का उपवास नहीं रख सकते है, वे शाम की पूजा के बाद कुछ प्रतिबंधात्मक और हल्का आहार ले सकते है, जिसमे निम्न शामिल है-
- फलों का सलाद: फलों का सलाद उपवास के दिनों के लिए बहुत अच्छा होता है। यह न केवल आपका पेट भरता है बल्कि सभी आवश्यक पोषक तत्व भी प्रदान करता है।
- आलू का रायता: यह दही, आलू, नमक और घी से बनाया जाता है और इससे व्रत करने वाले में ताजगी और ताकत आती है।
- कुट्टू पुरी: यह एक प्रसिद्ध और मुंह में पानी लाने वाला भोजन है, जिसे व्रत में खाया जा सकता है।
- शकरकंद: इस दिन खाने के लिए उबले शकरकंद के टुकड़े सबसे अच्छा नाश्ता है।
- मैंगो लस्सी: यह एक उत्तम पेय है क्योंकि यह पेट भरता है और हाइड्रेटेड रखता है।
प्रदोष व्रत में अन्न, चावल और सादे नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
शास्त्रानुसार प्रदोष व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ किया जा सकता है।
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