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पितृ पक्ष / श्राद्ध पक्ष- सम्पूर्ण जानकारी | Pitru Paksha

Posted on December 24, 2022
Table of contents
  1. पितृ पक्ष | Pitru Paksha
  2. पितृ पक्ष का इतिहास | Pitra Paksha Ka Itihas
  3. पितृ पक्ष का महत्व | Pitra Pakash Ka Mahatav
  4. पितृ पक्ष में वर्जित कार्य | Pitra Pakash me Varjit Karya
  5. पितृ दोष क्या होता है? | Pitra Dosh kya hota hai
  6. पितरों को खुश करने के लिए क्या करें?
  7. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

पितृ पक्ष | Pitru Paksha

पितृ पक्ष हिंदू धर्म के लोगों के लिए एक विशेष अवधि है। ये सोलह दिन की एक विशेष अवधि है, जिसके दौरान हिंदू धर्म के लोगों द्वारा अपने पूर्वजों (पितरों) के लिए पिण्डदान किया जाता है तथा उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाता है। पितृ पक्ष को अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे – महालय पक्ष, श्राद्ध , अपर पक्ष आदि।

हर साल भाद्रपद की पूर्णिमा से आश्विनी माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक की अवधि पितृ पक्ष की अवधि होती है।

हिंदू धर्म के धर्मग्रंथों की मान्यता के अनुसार मानव पर मुख्यतः तीन प्रकार के प्रमुख ऋण माने गए हैं और ये तीन ऋण इस प्रकार है :- देव ऋण, पितृ ऋण तथा ऋषि ऋण । इन तीनों ऋणों में से पितृ ऋण को सर्वोपरि माना गया है।

पितृ पक्ष(Pitra Paksha) में लोगों द्वारा अपने पूर्वजों का श्राद्ध डाला जाता है। इन पूर्वजों में पिता के साथ-साथ माता को भी शामिल किया जाता है।

पितृ पक्ष का इतिहास | Pitra Paksha Ka Itihas

Pitra Paksha (पितृ पक्ष) की प्रथा वैदिक काल से भारतीय परम्परा का हिस्सा रहा है। पितृ पक्ष मनाए जाने के पीछे कई प्राचीन कथाएं प्रचलित हैं।

श्राद्ध से जुड़ी एक कथा का वर्णन मार्कण्डेय पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार रूची नामक एक ब्रह्मचारी ऋषि था, जो वेदों के अनुसार साधना कर रहा था। जब वह ऋषि चालीस वर्ष की आयु के हुए, तो उन्हें अपने चार पितर दिखाई दिए, जो मृत्यु के पश्चात दु:ख भोग रहे थे। रूची ऋषि के पितरों ने उन्हें अपने दु:खों का  कारण बताया तथा ऋषि रूची से शादी करने व पितरों के लिए श्राद्ध डालने के लिए कहा।

श्राद्ध से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कथा महाभारत के समय से भी सम्बंधित है, जिसके अनुसार कर्ण जब मृत्यु के बाद स्वर्ग गए, तो वहाँ उन्होनें भोजन की माँग की, लेकिन उन्हें भोजन के बदले सोना-चांदी पेश किया गया। कर्ण ने जब कहा कि उन्हें भोजन चाहिए , न की सोना-चांदी! , तो इस पर इन्द्र ने उन्हें बताया की तुमने जीवन में सोना-चांदी ही दान किया था और कभी भी अपने पूर्वजों के लिए अन्न-जल नहीं चढ़ाया। कर्ण ने कहा कि उसे तो अपने पूर्वजों के बारे में पता ही नहीं था, इसलिए वह अपने पूर्वजों को जल-अन्न अर्पित नहीं कर सका। कर्ण द्वारा छोड़े गए कार्य को पूरा करने के लिए उसे वापिस 15 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया था। इन 15 दिनों को ही पितृ पक्ष के रूप में जाना गया।

पितृ पक्ष का महत्व | Pitra Pakash Ka Mahatav

हिंदू धर्म में पितृ पक्ष की बहुत अहमियत है। पितृ पक्ष मनाने का प्रमुख कारण पूर्वजों से निकटता स्थापित रखना व उन्हें खुश व संतुष्ट रखना है। इसे मनाने के पीछे का एक और  कारण मृत्य के पश्चात स्वयं के लिए अच्छी स्थिति की व्यवस्था करना है। पितृ पक्ष मनाने के कई विशेष महत्व है। इनमें से कुछ महत्व निम्नलिखित है:-

  • हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में श्राद्ध डालने से पितरों की आत्मा को मुक्ति प्राप्त होती है। यदि पितरों का पिण्डदान न किया जाए, तो पूर्वजों की आत्मा भटकती रहती है।
  • पितरों को श्राद्ध डालने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
  • लोगों का मानना है, कि पितृ पक्ष में जो अन्न-जल पितरों को अर्पित किया जाता है, वो सीधे पितरों को प्राप्त होता है।
  • मान्यता है कि पितृ पक्ष में मृत्यु के देवता यमराज सभी पितरों को उनके परिजनों से मिलने के लिए आजाद कर देते हैं। इस दौरान सभी पितर पृथ्वी लोक  में विचरण करते हैं, इसलिए इस दौरान उन्हें श्राद्ध डालने से उन्हें तृप्ति मिलती है।
  • माना जाता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध डालने से गृह शांति रहती है, क्योंकि श्राद्ध डालने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पितृ पक्ष में वर्जित कार्य | Pitra Pakash me Varjit Karya

Pitra Pakash (पितृ पक्ष) एक विशेष अवधि है, जिसके दौरान कई बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। इस अवधि में कई कार्य वर्जित माने जाते है, जिनमें से कुछ इस प्रकार है:-

  • इस अवधि में घर का माहौल सात्विक रखना चाहिए। माँसाहारी भोजन इस दौरान वर्जित माना जाता है। प्याज-लहसुन का भी इस अवधि में परहेज किया जाता है।
  • जो व्यक्ति श्राद्ध डालता है, उसके लिए पितृ पक्ष की अवधि में बाल कटवाने व नाखून काटने को वर्जित माना जाता है। इसके साथ ही उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है।
  • माना जाता है कि इस अवधि में पितर पशु-पक्षी के रूप में आते हैं, इसलिए इस अवधि में पशु-पक्षियों को किसी भी प्रकार से सताना नहीं चाहिए।
  • पितृ पक्ष के दौरान किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य, जैसे: शादी, गृह प्रवेश आदि वर्जित होते हैं। पितृ पक्ष एक शोक की अवधि है, जिसमें पितरों को याद किया जाता है।

पितृ दोष क्या होता है? | Pitra Dosh kya hota hai

शास्त्रों के अनुसार कुंडली के नवम भाग में राहु के आने से जो दोष उत्पन्न होता है, उसे पितृ दोष कहते है। अन्य तथ्यों के अनुसार परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद उचित प्रकार अंतिम संस्कार न करने व अकाल मृत्यु के होने से पितृ दोष उत्पन्न होता है। पितृ दोष होने पर गृह शांति भंग हो जाती है, किसी न किसी तरह का दुख बना रहता है, आकस्मिक घटनाएं होती रहती है।

पितरों को खुश करने के लिए क्या करें?

  • पितृ पक्ष में उचित विधि-विधान से पितरों को श्राद्ध डालें व ब्राह्मणों को खाना खिलाएं। हर पूर्णिमा व अमावस को पितरों को जल अर्पित करें।
  • पितरों को खुश करने के लिए नियमित रूप से रोज सुबह नहा-धोकर पीपल के पेड़ की पूजा करें व उसे जल अथवा दूध अर्पित करें।
  • नियमित रूप से रोज घर में शाम के वक्त दक्षिण दिशा में तेल का दीया जलाएं।
  • प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी पितरों को खुश किया जा सकता है।
  • पितृ गायत्री मंत्रों का उच्चारण करने से भी पितरों को खुश किया जा सकता है तथा इससे पितृ दोष को शांत करने में भी सहायता होती है। इन मन्त्रों में से एक मंत्र निम्नलिखित है:-

ॐ  पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृ प्रचोदयात्।

Pitra Dosh Nivaram Mantra

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

पितृ पक्ष की शुरुआत कब से होती है?

भाद्रपद की पूर्णिमा से।

पितर कौन होते है?

मृत परिजन।

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