पराक्रम दिवस | Parakram Diwas
“शहीद दिवस”, “सेना दिवस” व “विजय दिवस” आदि कुछ ऐसे खास दिन हैं, जो भारत में भारत के वीर सपूतों की याद में मनाए जाते हैं। इसी सूची में एक और दिवस है, “पराक्रम दिवस” , जो कि 2021 के दौरान अस्तित्व में आया। “पराक्रम दिवस” हर वर्ष जनवरी की 23 तारीख को मनाया जाता है। अब प्रश्न ये उठता है, कि 23 जनवरी को तो स्वतन्त्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती मनायी जाती है, फिर ये पराक्रम दिवस क्या है? सुभाष चन्द्र बोस की जयंती को ही 2021 में पराक्रम दिवस का नाम दिया गया था।
पराक्रम दिवस मुख्यतः सुभाष चन्द्र बोस से ही संबंधित है। जैसे हर वर्ष सुभाष चन्द्र बोस की जयंती को मनाया जाता था, उसी प्रकार पराक्रम दिवस को भी मनाया जाता है, क्योंकि ये सुभाष चन्द्र बोस की जयंती का ही बदला हुआ नाम है। इस दिन दिग्गज नेताओं व अधिकारियों द्वारा नेताजी को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। शैक्षणिक संस्थानों, जैसे- विद्यालयों, महाविद्यालयों आदि में इस दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इनमें भाषण, चित्रकला प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता, नाटक प्रदर्शन व नृत्य आदि को शामिल किया जाता है।
टी.वी. और रेडियो आदि पर भी इस दिन से संबंधित विशेष कार्यक्रम किए जाते हैं।
पराक्रम दिवस का इतिहास
पराक्रम दिवस का इतिहास ज्यादा प्राचीन नहीं है। इसे पहले से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के रूप में मनाया जाता था। सन् 2021 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने नेताजी की 125वीं जयंती के अवसर पर उनकी जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की राष्ट्रीय उद्घोषणा की। तभी से 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में विशेष दिन बनाया गया।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जीवन
अंग्रेजी शासन की नींव को अपने साहस से हिलाने वाले, और वीर शहीदों की सूची में आगे, नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म सन् 1897 में 23 जनवरी को कटक, उड़ीसा राज्य (वर्तमान) में हुआ था। जानकीनाथ बोस नेताजी के पिता थे, जो कि पेशे से एक वकील थे। उनकी माता प्रभावती देवी थीं, जो कि एक घरेलू महिला थी। जानकीनाथ बोस और प्रभावती की कुल 14 सन्तानें थीं, जिनमें 9वें नम्बर की सन्तान नेताजी थे। नेताजी की शुरुआती शिक्षा कटक में ही हुई थी। उसके बाद उन्होनें अपनी उच्च शिक्षा कोलकाता में स्थित स्कॉटिश चर्च कॉलेज और प्रेसिडेंसी कॉलेज से प्राप्त की। उच्च शिक्षा के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए नेताजी को इंग्लैंड भेज दिया गया। वर्ष 1919-20 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा तो पास कर ली, लेकिन भारत देश की हालत और उसे ब्रिटिशों के गुलाम के रूप में देखकर वे अपनी नौकरी को पूरे मन के साथ नहीं कर पाये। देश को स्वतंत्रता दिलाने के उद्देश्य से उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी व स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए।
उनकी आँखों में देश को स्वतंत्र कराने का स्वप्न था जिसको पूरा करने के लिए प्रारंभ में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़कर कार्य किया। सुभाष चन्द्र बोस स्वामी विवेकानंद जी से प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरू मानते थे। चितरंजन दास जी नेताजी के राजनीतिक गुरु थे।
सन् 1945 में 18 अगस्त को ताईपेई में विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु को काफ़ी विवादास्पद माना जाता है, क्योंकि दुर्घटना के बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस लापता हो गए थे। इसकी जाँच के लिए कई कमेटियां बनाई गईं। कुछ रिपोर्ट बताती हैं कि इस दुर्घटना में देश का वीर सपूत सुभाष वीरगति को प्राप्त हो गया, वहीं कुछ रिपोर्ट ने नेताजी के जीवित होने का भी दावा किया। 2017 में एक आर.टी.आई. का जवाब देते हुए केन्द्र सरकार ने नेताजी की मृत्यु की पुष्टि कर दी थी।
स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी की भूमिका
असहयोग आंदोलन के दौरान नेताजी स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए थे। अपने जोश के साथ वह देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। सन् 1921 में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी जी से हुई। नेताजी क्रांतिकारी विचार के थे, और गरम दल से संबंध रखते थे, वहीं दूसरी ओर गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे, और नरम दल से संबंधित थे। इन्हीं विभिन्नतओं के चलते उनके बीच वैचारिक मतभेद थे, लेकिन उनका उद्देश्य एक ही था, और वो था भारत देश को आजादी दिलाना।
जहाँ एक तरफ देश की आजादी के लिए देश के भीतर अन्दोलन हो रहे थे, वहीं देश की आजादी के लिए देश से बाहर भी आन्दोलन हो रहे थे। देश के बाहर के आन्दोलन का नेतृत्व नेताजी द्वारा किया जा रहा था।
नेताजी को मुख्यतः जिस लिए जाना जाता है, वो है “आजाद हिंद फौज”। आजाद हिंद फौज ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी विशेष भूमिका निभाई, लेकिन ये अपने मूल उद्देश्य में पूरी तरह से सफल नहीं हो सकी, क्योंकि इसके सैनिकों को बाद में बंदी बना लिया गया था। इसने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने साहस व शौर्य का बेहतर प्रदर्शन किया था।
सुभाष चन्द्र बोस ने अपने क्रांतिकारी साथियोँ के जोश को बढ़ाने, व अपने स्वतंत्रता अभियान में जान डालने के लिए कई नारे दिए, जिनमें “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” और “जय हिंद” प्रमुख थे।
सुभाष चन्द्र बोस ने ही सर्व प्रथम गांधी जी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था।
पराक्रम दिवस क्यों मनाया जाता है?
सुभाष चंद्र बोस की जयंती जिसे अब पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है, इसके पीछे का उद्देश्य देश के लोगों, खासतौर पर देश के युवाओं में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तरह ही विकट परिस्थितियों का सामना करने तथा उनमें देशभक्ति की भावना को संचारित करना है।
पराक्रम दिवस का उद्देश्य देश के नागरिकों को सुभाष चन्द्र बोस द्वारा किए गए कार्यों व उनके व्यक्तित्व से परिचित कराना है। पराक्रम दिवस एक अवसर है, जिस पर नेताजी को याद व उन्हें नमन किया जाता है।
निष्कर्ष
महान व्यक्ति इस दुनिया में आते हैं, और चले जाते हैं, लेकिन उनके व्यक्तित्व हमेशा साथ रहते हैं। इन्हीं व्यक्तित्वों में से एक व्यक्तित्व नेताजी का भी है। उनके व्यक्तित्व से आज के युवा बहुत कुछ सीख सकते हैं। पराक्रम दिवस कहा जाए या सुभाष चन्द्र बोस की जयंती कहा जाए , नेताजी हमेशा हमारी यादों में रहेंगे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
सुभाष चन्द्र बोस की जयंती के उपलक्ष्य में हम हर साल 23 January को पराक्रम दिवस मानते है।
सुभाष चन्द्र बोस ने
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