ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश राज्य के नर्मदा नदी के बीच बने द्वीप जिसे शिवपुरी अथवा मन्धाता कहते है मे स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग मे से एक है। यह द्वीप ऊँ के आकार का है, इसलिए यहाँ के ज्योतिर्लिंग को ओंकारेश्वर कहते है। माना जाता है कि यह नगरी भीलो ने बसाई थी।
ऐसा भी कहा जाता है कि देवी omkareshwar-jyotiling यहाँ नित्य मृत्तिका के 18 सहस्र शिवलिंग तैयार कर उनका पूजन करती थी और उसके बाद उन शिवलिंग को नर्मदा नदी में विसर्जित कर देती थी।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा (Omkareshwar Jyotiling ki Katha)
ज्योतिर्लिंग के बारे मे कई कथाऐ प्रचलित है।
एक अन्य कथनानुसार एक बार देवों और दानवो के बीच भीषण युद्ध हुआ। दानवों ने देवताओं को पराजय कर दिया। देवता इस बात को सह न सके और निराश होकर भगवान शिव से विनती की और पूजा-अर्चना की। देवताओ की अगाध भक्ति को देखकर भगवान जी अत्यंत प्रसन्न हुए और ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप में स्थापित हुए और दानवों को पराजय किया।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे मे जो लोकजन द्वारा सबसे प्रचलित कथा है वह यह है कि एक बार राजा मान्धाता ने इस पर्वत पर घोर तपस्या किया। इस घोर तपस्या से शिव भगवान जी अत्यंत प्रसन्न हुए और प्रकट हुए। तब राजा मान्धाता ने शिव भगवान को सदा के लिए यहीं विराजमान होने का वर मांगा। तब से शिव जी यही विराजमान है। इसीलिए इस नगरी को ओंकार – मान्धाता भी कहते है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ 33 कोटि देवी-देवता निवास करते है। तथा यहाँ 68 तीर्थ स्थल है। यहाँ पर नर्मदा जी में स्नान करने का विशेष महत्त्व है। माना जाता है कि नर्मदा जी के दर्शन मात्र से ही सारे पाप, कष्ट दूर हो जाते है।
Omkareshwar Jyotiling के बारे मे एक और कथा है। कहा जाता है कि एक बार नारद जी घूमते हुए विंध्याचल पर्वत पर जा पहुंचे। पर्वतराज विंध्याचल ने नारद जी का स्वागत किया और कहा कि मैं सर्वगुण संपन्न हूँ, मेरे पास सब कुछ है, हर प्रकार की सम्पदा है। नारद जी विंध्याचल पर्वत की अभिमान युक्त बातें सुनकर लम्बी सांस खींचकर खड़े रहे। तब विंध्याचल ने नारद जी से पूछा कि आपने लम्बी सांस क्यों खींची। तब नारद जी ने कहा कि तुम्हारे पास सब कुछ तो है किन्तु तुम सुमेरू पर्वत से ऊंचे नहीं हो। यह सुन विंध्याचल पर्वत को बहुत दुःख हुआ और मन ही मन शोक करने लगा। तब उसने भगवान शिव का आराधना किया। माना जाता है कि जहाँ पर साक्षात् ओमकार विद्यमान है, वहां पर उन्होंने शिवलिंग स्थापित किया और लगातार प्रसन्न मन से 6 महीने तक पूजा अर्चना की। इस तपस्या से भगवान शिव अतिप्रसन्न हुए और वहां प्रकट हुए और विंध्य से वरदान मांगने को कहा। तब विंध्य ने कहा मुझे बुद्धि प्रदान करें जो अपने कार्य को सिद्ध करने वाले हो। वर देने के बाद वहां देवता और ऋषि भी आ गए। सभी ने भगवान शिव जी की पूजा की और प्रार्थना की कि हे प्रभु! आप सदा के लिए यहाँ विराजमान हो जाईए भगवान शिव ने उन लोगों की बात मान ली और ओमकार लिंग दो लिंगों में विभक्त हो गया। एक पार्थिव लिंग विंध्य पर्वत के द्वारा बनाया गया था वह परमेश्वर लिंग के नाम से जाना जाता है और दूसरा लिंग भगवान शिव जहाँ स्थापित हुए। यह लिंग ओमकार लिंग कहलाता है। परमेश्वर लिंग को अमलेश्वर लिंग भी कहा जाता है और तब से ही ये दोनों शिवलिंग जगत में प्रसिद्ध हुए।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषताऐ
- यह ज्योतिर्लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, बनाया या तराशा हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इस ज्योर्तिलिंग के चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है।
- सामान्यत: किसी भी मन्दिर में लिंग की स्थापना गर्भ गृह के मध्य में की जाती है और शिखर ठीक उसके ऊपर होता है, किन्तु ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का लिंग मन्दिर के गुम्बद के नीचे नही है।
- इस ज्योतिर्लिंग की एक विशेषता यह भी है कि मन्दिर के ऊपरी शिखर पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति लगी है। कुछ लोगों की मान्यता है कि यह पर्वत ही ओंकाररूप है।
- यह मंदिर पांच मंजिला है। प्रथम तल पर ओंकारेश्वर लिंग, द्वितीय तल पर महाकालेश्वर लिंग, तृतीय तल पर सिद्धनाथ लिंग, चतुर्थ तल पर गुप्तेश्वर लिंग और पांचवें तल पर ध्वजेश्वर लिंग स्थित है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे | Omkareshwar Jyotiling kese Phuche
रेल मार्ग
रेलवे-स्टेशन खंडवा से यह मंदिर 72 किमी दूर है।
वायु मार्ग
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से निकटस्थ हवाई अड्डा अहिल्याबाई होलकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, इंदौर है।यह मंदिर से 77 किमी दूर है।
सड़क मार्ग
बस स्टैंड मोरटक्का मंदिर से 12 किमी की दूरी पर है।
नर्मदा नदी के तट तक किसी भी वाहन से आया जा सकता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग तक जाने के लिए नर्मदा नदी के तट पर से नाव, स्टीमर आदि उपलब्ध रहते है।
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