महानदी के बारे में जानकारी
महानदी भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। इसकी कुल लम्बाई 858 किलोमीटर है, जिसमें से 286 किलोमीटर तो केवल छत्तीसगढ़ राज्य में ही है। यह नदी छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी नदी है। इसे छत्तीसगढ़ राज्य की गंगा भी कहा जाता है। यह नदी बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
इस नदी को उड़ीसा का शोक भी कहा जाता है, क्योंकि इस नदी में जब ज्यादा पानी हो जाता है, तो उड़ीसा में बाढ़ आ जाती है, जिससे जान व माल की हानि होती है।
महानदी कहाँ से निकलती है?
Mahanadi का उद्गम स्थल छत्तीसगढ़ राज्य में है। छत्तीसगढ़ राज्य में रायपुर के निकट ही धमतरी नाम का एक जिला है। इस जिले की सिहावा पहाड़ी से महानदी को उद्गम होता है।
महानदी किन राज्यों में बहती है?
Mahanadi छत्तीसगढ़ राज्य के अलावा मध्यप्रदेश तथा उड़ीसा राज्य से में भी बहती है।
महानदी का प्राचीन नाम (Mahanadi ka Prachin Naam)
Mahanadi बहुत प्राचीन नदी है। इसका प्राचीन नाम चित्रोत्पला है। इसके अलावा महानंदा व नीलोत्पला भी इसी नदी के प्राचीन नाम हैं।
महानदी का इतिहास (Mahanadi ka Itihas)
प्राचीन ग्रंथों में भी महानदी का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार शुक्लमत पर्वत से महानदी तथा इसकी सहायक नदियों के निकलने का जिक्र मिलता है। न केवल इतिहासकारों, बल्कि गणितज्ञों द्वारा भी Mahanadi का जिक्र किया गया है। इसे मंदवाहिनी नाम से भी जाना था।
भीष्म पर्व में भी महानदी के संबंध में उल्लेख किया गया है। इसमें बताया गया है, कि भारत की प्रजा चित्रोत्पला नदी का जल पीती थी, यहाँ यह बात ध्यान रखने योग्य है, कि चित्रोत्पला Mahanadi का ही प्राचीन नाम है। इससे पता चलता है, कि महाभारत के समय में इस नदी के तट पर आर्य लोगों का निवास था।
रामायण काल से Mahanadi का संबंध जोड़ा जाता है। कहा जाता है, कि इक्ष्वाकु वंश के शासकों द्वारा महानदी के किनारे अपना राज्य स्थापित किया गया था।
महानदी की कहानी (Mahanadi ka Kahani)
महानदी से एक कथा भी जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार एक बार प्रयाग के कुंभ मेले में कई ऋषि गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। उन्होंने ऋषि श्रृंगी को भी अपने साथ ले जाने का विचार बनाया, लेकिन उस समय श्रृंगी ऋषि ध्यान में थे। अन्य ऋषियों ने उनके ध्यान को भंग करना ठीक नहीं समझा। सभी ऋषि बिना श्रृंगी ऋषि के ही प्रयाग चले गए। प्रयाग से ऋषि, श्रृंगी ऋषि के लिए गंगा जल लेकर आए, लेकिन श्रृंगी ऋषि अभी भी ध्यान में ही थे, तो ऋषियों ने गंगा जल श्रृंगी ऋषि के कमण्डल में डाल दिया। काफ़ी लंबे समय तक श्रृंगी ऋषि ध्यान में लगे रहे, जिससे गंगा माँ प्रसन्न हुईं और श्रृंगी ऋषि से वरदान माँगने के लिए कहा। श्रृंगी ऋषि का ध्यान नहीं टूटा, जिससे क्रोधित होकर गंगा माँ तेज वेग में पूर्व की ओर प्रवाहित होने लगीं। जब ऋषि का ध्यान टूटा, तो उन्होंने गंगा माँ से पश्चिम की ओर से प्रवाहित होने की प्रार्थना की। गंगा माँ ने उनकी ये प्रार्थना मान ली।
कहा जाता है, कि इसी तरह महानदी की उत्पत्ति हुई थी।
महानदी का महत्व (Mahanadi ka Mahatva)
भारतीय संदर्भ में महानदी के महत्व की बात करें, तो Mahanadi अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। इसका विभिन्न पक्षों में विशिष्ट महत्व है। महानदी के महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा बताया गया है:-
व्यावसायिक महत्व
व्यापार व व्यवसाय की दृष्टि से महानदी का बहुत महत्व रहा था। इतिहासकारों की मानें, तो प्राचीन समय में महानदी को व्यापार करने के लिए जल मार्ग के रूप में प्रयोग किया जाता था। महानदी और उसकी सहायक नदियों द्वारा परिवहन के माध्यम से सामानों का आयत-निर्यात किया जाता था। Mahanadi एक समय पर आवागमन करने का भी माध्यम रही है। लोग नाव की सहायता से यात्राएँ किया करते थे। इससे नाविकों के लिए रोजगार का भी सृजन होता था। वर्तमान समय में भी इसका व्यावसायिक महत्व बना हुआ। मछुआरों के लिए आज भी यह नदी पेट पालने का काम करती है। इसके अलावा कई इस्पात उद्योगों व कपड़ा उद्योगों को Mahanadi से जल प्राप्त होता है।
धार्मिक महत्व
महानदी का धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है। भारत की पवित्र नदियों में महानदी को भी शामिल किया जाता है। Mahanadi को गंगा नदी के समान पवित्र माना जाता है। Mahanadi से जुड़ी विभिन्न मान्यताओं के कारण, इस नदी के किनारे कई धार्मिक केंद्र, मंदिर स्थापित है। लोगों की मान्यता के अनुसार महानदी का जल इतना पवित्र है, कि इस नदी में स्नान करने से पाप कम हो जाते है। इस नदी के किनारे विभिन्न प्रकार के आनुष्ठानिक कार्यों को किया जाता है।
सांस्कृतिक महत्व
सांस्कृतिक रूप से भी महानदी का विशेष महत्व है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति में Mahanadi की अहम भूमिका है। विभिन्न त्यौहारों के दौरान भी Mahanadi की विशिष्ट भूमिका रहती है।
प्राकृतिक महत्व
Mahanadi अपने प्रवाह मार्ग में आने वाले क्षेत्रों के लिए जल स्त्रोत की भी पूर्ति करती है। इसके किनारे की भूमि कहीं-कहीं उपजाऊ होने के कारण वहां बहुत हरियाली है। इस नदी की उपस्थिति से आस-पास के इलाकों में प्राकृतिक सौन्दर्य उत्पन्न होता है।
महानदी की सहायक नदियाँ
- दूध नदी
- शिवनाथ नदी
- हसदेव नदी
- बोरई नदी
- सिलयारी नदी
- मांड नदी
- केलो नदी
- ईब नदी
- पैरी नदी
- जोंक नदी
- सोंढुर नदी
- सूखा नदी
- लात नदी
महानदी पर स्थित प्रमुख बांध (Mahanadi par Pramukh Dam)
इस नदी पर बने हुए प्रमुख बांध निम्नलिखित है:-
हीराकुंड बांध (Hirakund Dam)
यह बाँध उड़ीसा में स्थित है। यह विश्व का सबसे लंबा तथा सबसे बड़ा बाँध है, जिसकी लंबाई 25.8 किलोमीटर है। इसका निर्माण कार्य 1947 में शुरू किया गया था तथा यह विशालकाय बाँध 1957 में बन गया था। इस बाँध के एक तरफ विशालकाय जलाशय है, जो की एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है।
रुद्री बांध (Rudri Dam)
यह एक प्रमुख बाँध है, जिसने अब बैराज का रूप ले लिया है। यह छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में Mahanadi पर निर्मित है। इसके जरिए आस-पास के एक विस्तृत क्षेत्र को जल आपूर्ति की जाती है।
गंगरेल बांध (Gangrel Dam)
यह छत्तीसगढ़ का सबसे लंबा बाँध है, जो Mahanadi पर बना हुआ है। इसे रविशंकर सागर नाम से भी जाना जाता है। इस बाँध से बड़ी मात्रा में पनबिजली का उत्पादन किया जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
छत्तीसगढ़।
महानदी को।
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