लद्दाख
लद्दाख भारत देश का एक केंद्र शासित प्रदेश है, जो कि उत्तर भारत में स्थित है। इसकी राजधानी की बात करें, तो इसकी राजधानी लेह है। जमयांग सेरिंग नामग्याल यहाँ के भाजपा सांसद हैं। यहाँ के उपराज्यपाल राधाकृष्ण माथुर जी हैं। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के बीच एक संयुक्त उच्च न्यायालय है। लद्दाख का सम्पूर्ण क्षेत्रफल वैसे तो 1,66,698 वर्ग किलोमीटर है, लेकिन केवल 59, 146 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल भारतीय नियन्त्रण में है, बाकी चीन और पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है। लद्दाख की जनसंख्या (2011 मतगणना के अनुसार) 2,74,289 है, इस प्रकार लद्दाख का जनसंख्या घनत्व 4.6 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। लद्दाख की भौगोलिक स्थिति की बात करें, तो विश्व मानचित्र पर लद्दाख की स्थिति 34°10’ उ. से 34°17’ उ. अक्षांश से 77°34’ पू. से 77°58’ पू. देशांतर है। लेह इसका प्रमुख शहर है। इसके अंदर दो जिले लेह और कारगिल हैं।
लद्दाख का इतिहास | History of Ladakh
ऐतिहासिक दृष्टि से लद्दाख 950 ईस्वी से 1834 तक एक स्वतंत्र राज्य था, जब तक हिंदू डोगरा ने इस पर हमला नहीं किया था।
1841 में इस पर चीनी तिब्बत ने हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप चीन–सिख युद्ध हुआ था, और इसमें चीन–तिब्बत की सेना पराजित हो गई थी।
1845-46 में अंग्रेजों और सिखों के बीच युद्ध हुआ, और जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के क्षेत्र से सिख साम्राज्य को विस्थापित करते हुए ब्रिटिशों का शासन स्थापित हुआ।
1962 में हुए चीन–भारत युद्ध के परिणाम स्वरूप आक्साई–चीन क्षेत्र पर चीन का आधिपत्य हो गया। जिसके बाद लद्दाख प्रमुख रणनीतिक क्षेत्र बन गया।
2019 में लद्दाख को भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, इससे पहले लद्दाख जम्मू-कश्मीर का एक क्षेत्र था।
लद्दाख की संस्कृति
लद्दाख में मुख्यतः बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, मुस्लिम धर्म, सिख धर्म आदि धर्मों के लोग रहते हैं। लद्दाख में बौद्ध धर्म की बहुलता है, जिसका प्रभाव वहाँ की संस्कृति पर भी पड़ता है। लद्दाख में विभिन्न धर्मों के साथ संस्कृतियों में भी भिन्नता है।
लद्दाख में धार्मिक पेंटिंग की समृद्ध धरोहर है। चित्रों में दर्शाए प्रत्येक भाव का अपना एक प्रतीकात्मक अर्थ होता है। लद्दाख में भित्ति चित्र बनाने की भी समृद्ध कला है। चित्रकला यहाँ के लोगों की कल्पना है, जो वो रंगों के माध्यम से दर्शाते हैं। लद्दाख में “थंगकास” संस्कृति और कला का एक महत्वपूर्ण रूप है। ये एक प्रकार की भारतीय पेन्टिंग है, जो मुलायम कपड़े पर बनाई जाती है, तथा जिसमें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है।
लद्दाख की वास्तुकला और कला में मिश्रित संस्कृति की झलक मिलती है। लेह पैलेस तथा गोम्पा स्थापत्य की दृष्टि से मुख्य हैं। लद्दाख में विभिन्न खूबसूरत मठ, जैसे अलची मठ, ठिकसी मठ, फुगताल गोम्पा, लामायुरु मठ और फियांग मठ हैं।
लद्दाख का रहन-सहन व भाषा
बात करें लद्दाख के रहन-सहन की, तो यहाँ के अधिकांश लोग याक, जंगली बकरी, विशेष प्रकार के कुत्ते व भेड़ आदि जानवरों को पालना पसंद करते हैं, और इसके पीछे उनका उद्देश्य दूध और मांस की प्राप्ति होती है। यहां की जलवायु के अनुरूप गर्मियों में यहाँ खुबानी, अखरोट व सेब पाए जाते हैं। ये एक शुष्क प्रदेश है, जिसके कारण यहाँ वनस्पति ज्यादा नहीं है, और इसके कारण पालतू जानवरों के लिए चारे की समस्या रहती है।
यहाँ के लोगों का स्वभाव शांत होता है। यहाँ के लोग लद्दाख में आने वाले विभिन्न पर्यटकों की मदद का हर संभव प्रयास करते हैं। पर्यटकों के लिए ढाबे, रेस्तरां, व होटल जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराना, उनका रहन-सहन व शालीनता से बात करना, यहाँ के लोगों को सराहनीय बनाता है। यहाँ के लोगों का रहन-सहन सामान्य है, लेकिन भौगोलिक कारणों की वजह से इन्हें कई समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
लद्दाख में आमतौर पर जो भाषा बोली जाती है, उसे लद्दाखी बुलाया जाता है। लद्दाख में मुख्यतः तिब्बती, भोटी या बोधि भाषा का प्रयोग किया जाता है। यहाँ घूमने जाने वाले लोगों से बातचीत करने के लिए हिंदी भाषा का मुख्य रूप से प्रयोग किया जाता है।
लद्दाख के लोक नृत्य व त्यौहार
लद्दाख की संस्कृति विविध, समृद्ध व आकर्षक है। यहाँ के त्यौहार व लोक कलाएँ पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। बात करें यहाँ की लोक कलाओं की, तो लद्दाखी लोग संगीत, साहित्य व नृत्य में प्रतिभाशाली हैं। लद्दाख प्रदेश तिब्बती बौद्ध धर्म के अलावा भी अन्य सांस्कृतिक प्रभावों से जुड़ा रहा था। लद्दाख में उत्सव के समय पर विभिन्न धार्मिक नृत्य-नाटकों को भी अयोजित किया जाता है।
लद्दाख के कुछ प्रमुख लोक नृत्य इस प्रकार हैं:-
- छाम नृत्य :- ये नृत्य लद्दाख में विभिन्न त्यौहारों पर किया जाता है। इसे मुखौटा नृत्य भी कहा जाता है। ये नृत्य बौद्ध संस्कृति से प्रभावित है। नृत्य की रुचि रखने वालों के लिए ये नृत्य आकर्षण का बिंदु है।
- शोण्डोल नृत्य:- ये लद्दाख का एक प्राचीन नृत्य है, जिसे शाही नृत्य के नाम से भी जाना जाता है। ये नृत्य मुख्यतः कलाकारों द्वारा राजा हेतु किया जाता था। वर्ष 2019 में इस नृत्य ने गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम शामिल कराया था।
कुछ अन्य नृत्य खटोक, चेनमो आदि हैं।
लद्दाख में समय–समय पर विभिन्न त्यौहारों की भी रौनक रहती है। कुछ प्रमुख त्यौहार इस प्रकार हैं:-
- हेमिस महोत्सव
- दोसमोचे महोत्सव
- लोसर महोत्सव
- माथो नागरंग
- थिक्से और फियांग
लद्दाख की प्रमुख नदियाँ व लद्दाख के प्रसिद्ध होने के कारण
लद्दाख क्षेत्र में सिंधु नदी तथा इसकी मुख्य सहायक नदियाँ, चांग चेनमो, हानले, सुरू तथा जांसकर नदियाँ प्रवाहित होती हैं।
लद्दाख अपनी सुन्दरता व स्वच्छता के लिए प्रसिद्ध है। लद्दाख अपने वस्त्र उद्योग के लिए भी बहुत लोकप्रिय है। यहाँ के ऊनी वस्त्र बहुत अच्छी गुणवत्ता के होते हैं, क्योंकि उन्हें मानव श्रम द्वारा काता व बुना जाता है। वस्त्र के मामले में लद्दाख अपनी पश्मीना शॉल के लिए बहुत प्रसिद्ध है। रेशमी पोशाकें और कश्मीर की गुणवत्तापूर्ण पश्मीना शॉल लद्दाख के शिल्प व कला में शामिल हैं। यहाँ बने कालीन पर कला की मनमोहकता के दर्शन होते हैं।
लद्दाख में घूमने की जगह | Places in Ladakh to Visit
लेह-लद्दाख में घूमने लायक कई जगहें हैं, उनमें से कुछ जगहें निम्नलिखित हैं:-
- पेन्गोंग झील
- मैग्नेटिक हिल
- लेह पैलेस
- चादर ट्रैक
- फुगताल मठ
- खारदुंग ला पास
- त्सो कर झील
- त्सो मोरिरी झील
लद्दाख कैसे जाएँ?
रेलमार्ग:- कोई ट्रेन सीधी लद्दाख नहीं जाती है। इसके सबसे पास का रेलवे स्टेशन जम्मू तवी है, जो लद्दाख से लगभग 700 किलोमीटर की दूरी पर है। इससे आगे का सफ़र टैक्सी या बस द्वारा किया जा सकता है।
सड़क मार्ग:- लद्दाख जाने के लिये दो सड़क मार्ग हैं। एक सड़क मार्ग श्रीनगर से होकर लेह जाता है, तथा दूसरा सड़क मार्ग मनाली से होकर लेह को जाता है। मनाली से लेह जाने के लिए रोहतांग पास से होकर गुजरना पड़ता है, तथा श्रीनगर से लेह जाने के लिए जोजिला पास से होकर गुजरना पड़ता है। कई लोग बाइक के माध्यम से लेह तक का सफ़र तय करते हैं।
वायु मार्ग:- वायु मार्ग के द्वारा भी लद्दाख पहुँचा जा सकता है। लेह कुशोक बकुला रिमपोची यहाँ का मुख्य एयरपोर्ट है, जहाँ के लिए किसी भी बड़े शहर से सीधी फ्लाइट ली जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1993 में भारतीय सरकार द्वारा लद्दाख को स्वीकृत किया गया था, 2019 में इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था।
माउंट राकापोशी (7,788 मीटर)।
लगभग 1050 किलोमीटर ( मनाली के रास्ते )।
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