Konark sun temple, ओडिशा राज्य मे स्थित है यह भुवनेश्वर से लगभग 68 किमी दूर है। कोणार्क मंदिर अपने स्थापत्य कला और मूर्तिशिल्प के लिए विश्व विख्यात है। कोणार्क मंदिर को वर्ष 1984 मे यूनेस्को की विश्व धरोहर मे शामिल किया गया।
कोणार्क मंदिर का निर्माण
Konark sun temple का निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा 13वीं शताब्दी (1238-1264 ई) में किया गया था। यह मंदिर गंग वंश के स्थापत्य, वैभव, स्थिरता और मज़बूती के साथ-साथ ऐतिहासिक परिवेश का प्रतिनिधित्व भी करता है। कथनानुसार, गंग वंश के राजा नृसिंह देव प्रथम ने अपने वंश का वर्चस्व सिद्ध करने के लिए मंदिर निर्माण का आदेश दिया। कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण मे बारह सौ वास्तुकारों और कारीगरों की सेना ने अपनी सृजनात्मक प्रतिभा और ऊर्जा से परिपूर्ण कला से बारह वर्षों मे इसका निर्माण किया। लेकिन राजा ने पहले ही अपने राज्य के बारह वर्षों की कर-प्राप्ति के बराबर धन खर्च कर दिया था। परंतु निर्माण पूरा होता हुआ दिखायी नहीं दे रही थी। तब राजा ने एक निश्चित तिथि तक कार्य पूर्ण करने का आदेश दिया। तब बिसु महाराणा का बारह वर्षीय पुत्र, धर्म पाद आगे आया। उसने मंदिर के निर्माण का गहन निरीक्षण किया। और मंदिर के अंतिम केन्द्रीय शिला को लगाने की समस्या को सुलझा लिया। धर्म पाद ने यह करके सबको आश्चर्य में डाल दिया। लेकिन इसके तुरन्त बाद ही धर्मपाद की मृत्यु हो गई।
कोणार्क मंदिर की मूर्तिकला
Konark Mandir (सूर्य-मन्दिर) का निर्माण लाल रंग के बलुआ पत्थर और काले ग्रेनाइट के पत्थर से हुआ है। कोणार्क मंदिर कलिंग शैली में निर्मित है। इस मन्दिर में सूर्य देवता को रथ के रूप में प्रदर्शित किया गया है तथा पत्थरों को उत्कृष्ट नक्काशी के साथ उकेरा गया है। पूरे मन्दिर को बारह जोड़ी चक्रों के साथ सात घोड़ों से खींचते हुये दिखाया गया है। जिसमें सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। परन्तु वर्तमान में सातों में से एक ही घोड़ा बचा हुआ है। यह बारह चक्र साल के बारह महीनों को प्रदर्शित करते हैं तथा प्रत्येक चक्र आठ अरों से मिल कर बना है, जो दिन के आठ पहरों को दर्शाते है। यहाॅं के स्थानीय लोग सूर्य-भगवान को बिरंचि-नारायण भी कहते है।
कोणार्क मंदिर की प्रत्येक स्थान सुंदर और मनमोहक शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण है। इसके विषय भी मोहक है, जैसे भगवानों, देवताओं, गंधर्वों, मानवों, वाद्यकों, प्रेमी युगलों, दरबार की छवियों, शिकार एवं युद्ध के चित्रों से भरी है। इनके बीच बीच में पशु-पक्षियों (लगभग दो हज़ार हाथी, केवल मुख्य मंदिर के आधार की पट्टी पर भ्रमण करते हुए) और पौराणिक जीवों, के अलावा महीन और पेचीदा बेल बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत है। उड़िया शिल्पकला की हीरे जैसी उत्कृष्त गुणवत्ता पूरे परिसर में अलग दिखाई देती है।
कोणार्क मंदिर का स्थापत्य कला: | Architecture of Konark Sun Temple
Konark Mandir मुख्यतः तीन मंडपों से मिलकर बना है। इनमें से दो मण्डप ढह चुके हैं अथवा नष्ट हो चुके है।
इस मन्दिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं:
- बाल्यावस्था (उदित सूर्य) – 8 फीट
- युवावस्था (मध्याह्न सूर्य) – 9.5फीट
- प्रौढ़ावस्था(अपराह्न सूर्य) -3.5 फीट
कोणार्क मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंह हाथियों पर आक्रमण करते हुए दिखाये गए है। दोनों हाथी, एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं। विस्मय की बात यह है कि ये मूर्तियाँ एक ही पत्थर की बनीं है। कोणार्क मंदिर के दक्षिणी भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं, जिन्हें उड़ीसा सरकार ने राजचिह्न के रूप में अपनाया है। कोणार्क मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही एक ओर मंदिर है जिसे नट मंदिर कहते है। यहाँ मंदिर की नर्तकियां, सूर्यदेव को अर्पण करने के लिये नृत्य किया करतीं थी। पूरे मंदिर में जहां तहां फूल-बेल और ज्यामितीय नमूनों की नक्काशी की गई है। इनके साथ ही मानव, देव, गंधर्व, किन्नर आदि की आकृतियां भी एन्द्रिक मुद्राओं में दर्शित है। इन प्रतिमाओ की मुद्राएं कामुक है।
कोणार्क मंदिर (सूर्य मंदिर) कैसे पहुंचे
Konark Mandir आसानी से किसी भी परिवहन मार्ग से पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर भुवनेश्वर से लगभग 68 किमी की दूरी पर है।
रेल मार्ग
कोणार्क मंदिर जाने के लिए सबसे निकटतम रेल मार्ग भुवनेश्वर है। भुवनेश्वर स्टेशन भारत के सभी बड़े रेलवे-स्टेशन से जुड़ता है।
सड़क मार्ग
कोणार्क मन्दिर जाने के लिए NH 16 है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग देश को वेस्ट बंगाल से लेकर तमिलनाडु तक जोड़ता है।
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