करवा चौथ अश्विन के महीने में पूर्णिमा के बाद चौथे दिन उत्तरी और पश्चिमी भारत की हिंदू महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार है। करवा चौथ का व्रत परंपरागत रूप से दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, जम्मू, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश राज्यों में मनाया जाता है तथा आंध्र प्रदेश में इसे अटला ताड्डे के नाम से मनाया जाता है।
चौथ माता का व्रत
भारत में, हिंदू विवाहित महिलाएं (ज्यादातर उत्तरी भारत से) करवा चौथ का व्रत करती है। यह त्यौहार प्यार और शादी के पवित्र बंधन का जश्न मनाता है। विवाहित महिलाएं अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और लंबे जीवन के लिए प्रार्थना में पूरे दिन का उपवास रखती है। इस दिन महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक ‘निर्जला‘ (बिना पानी के) उपवास रखती है और अपने जीवन साथी के लिए सफलता, कल्याण और खुशी मांगती है। दिन की शुरुआत महिलाओं के सूर्योदय से पहले सरगी (आम तौर पर उनकी सास द्वारा तैयार किया गया भोजन) के साथ होती है। उसके बाद वे शाम को चंद्रोदय तक कुछ भी ग्रहण नहीं सकती है।
करवा चौथ की कहानी | Karwa Chauth ki kahani
एक ब्राह्मण था जो धर्म के कार्यों में लीन था। ब्राह्मण की एक बेटी और सात बेटे थे। कन्या का नाम वीरावती था और इकलौती संतान होने के कारण उसके सातों भाई उसे बहुत प्यार करते थे। कुछ समय बाद वीरावती का विवाह एक ब्राह्मण युवक से हो गया। विवाह के कुछ समय बाद वीरावती अपने मायके आ गई। उस दिन उसने करवा चौथ का व्रत रखा था और भूख से व्याकुल हो रही थी। शाम को जब सभी भाई अपने काम से घर लौटे तो उन्होंने अपनी बहन से उसकी चिंता का कारण पूछा। वीरावती ने कहा कि वह उपवास कर रही है और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन कर सकती है।
लेकिन अपनी प्यारी बहन की चिंता भाइयों से देखी नहीं जा रही थी, तब सबसे छोटे भाई ने एक युक्ति निकाली और दीपक जलाकर पास के एक पीपल के पेड़ पर छलनी के नीचे रख दिया। दूर से देखने पर ऐसा लगता था जैसे चाँद निकल आया हो। इसके बाद सभी भाइयों ने जाकर वीरावती से कहा कि चांद निकल आया है और अब तुम अपना करवा चौथ का व्रत खोल सकती हो। वीरावती ने अपने भाइयों की बात मानकर विधिपूर्वक चंद्रमा को अर्घ्य दिया और पूजा की।
पूजन के बाद जैसे ही उसने खाने का पहला निवाला मुंह में डाला, उसे छींक आ गई। लेकिन वीरावती इस चेतावनी को समझ नहीं पाई। दूसरा निवाला मुंह में रखा तो उसमें बाल निकल आया, पर वीरावती भूख से इतनी व्याकुल थी कि उसने उसे भी नज़र अंदाज कर दिया। जैसे ही उसने तीसरा निवाला खाया, उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। इस दुखद समाचार को सुनकर वीरावती रोने लगी। इसके बाद उसकी भाभियों ने उसे सच्चाई बताई और कहा कि यह सब करवा चौथ का व्रत टूटने के कारण हुआ है।
सच्चाई जानने के बाद, वीरावती ने फैसला किया कि वह अपने पति को अपनी पवित्रता से पुनर्जीवित करेगी, और इसीलिए उसने अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया। वो पूरे एक साल तक अपने पति के शरीर की देखभाल करती रहीं और उस पर उगी सुई जैसी घास को इकट्ठा करती रहीं। उसने मन ही मन ठान लिया था कि उसका पति फिर से जीवित हो जाएगा। एक साल बाद, करवा चौथ का त्यौहार आया और वीरावती की भाभी उनसे आशीर्वाद लेने आईं। उसने अपनी भाभियों से आग्रह किया, ‘यम सुई ले लो, पिया सुई दे दो, मुझे भी अपनी तरह सुहागिन बना दो।’ तब उसकी एक भाभी ने कहा कि उसका पति सबसे छोटे भाई के कारण मरा है, इसलिए उसकी पत्नी ही उसे जीवित कर सकती है।
अंत में, सबसे छोटी भाभी आती है, और वीरावती उससे घास लेने और अपने पति को पुनर्जीवित करने का आग्रह करती है। कुछ देर तक भाभी मना करती है, लेकिन वीरावती के सदाचारी रूप और पवित्रता को देखकर वह उसकी बात मान जाती है। इसके बाद सबसे छोटी भाभी अपनी छोटी उंगली काटकर उसमें से निकला अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। वीरावती का पति जीवित हो जाता है।
करवा चौथ व्रत विधि
- प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत आरंभ करे।
- व्रत के दिन निर्जला रहना चाहिए उस दिन न कुछ खाये और न ही पीये।
- चावल के बने घोल से करवा चित्रित करें। इस रीति को करवा धरना कहा जाता है।
- शाम के समय, मां पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसान पर बिठाए।
- मां पार्वती को सुहागिन की तरह श्रृंगार करे।
- भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना करे और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करे।
- सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करे और चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करे।
करवा चौथ व्रत के नियम
- विवाहित महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर, पूर्ण स्नान करना चाहिए और नए कपड़े पहनना चाहिए। इस शुभ दिन पर महिलाओं को सभी 16 श्रृंगारों के साथ एक नई दुल्हन की तरह सजना चाहिए। महिलाओं को एक संकल्प भी लेना होता है, जो यह है कि वे अपने पति की भलाई और परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए व्रत रख रही है।
- महिलाएं अखंड सौभाग्य प्राप्त करने के लिए इस दिन माँ पार्वती की पूजा करती हैं। माँ पार्वती को अखंड सौभाग्यवती माना जाता हैं, इसलिए महिलाएं उनकी पूजा करती है।
- सूर्योदय से पहले विवाहित महिलाओं को सरगी की थाली से खाना चाहिए, जिसमें मूल रूप से दूध, सेंवई, फल, सूखे मेवे, कोई भी जूस, पूरी और सब्जी होती है, जिसे उनकी सास को बनाना होता है। यह भोजन बिना लहसुन प्याज के ही पकाना चाहिए।
- महिलाएं करवा चौथ के दौरान सूर्योदय से चंद्रोदय तक कठोर उपवास रखती है। व्रत के दौरान वे पूरे दिन पानी भी नहीं पीती है।
- शाम को महिलाएं देवी को मिठाई, फूल, फल और सिंदूर चढ़ाती हैं और घी के दीये और धूप जलाती है।
- उसके बाद महिलाएं करवा चौथ व्रत कथा पढ़ती हैं। चंद्रोदय के समय पत्नियां अपने पति को छलनी से देखती है और करवा चौथ की पूजा में उनकी लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं और फिर उसके बाद पति अपनी पत्नियों को पानी पिलाकर उनका व्रत संपन्न करवाते है।
- इस प्रकार करवा चौथ की पूजा संपन्न होती है।
करवा चौथ क्यो मनाते है?
इस त्यौहार की प्रमुखता हमारे देश के उत्तर और उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में व्यापक रूप से देखी जा सकती है। इन क्षेत्रों की पुरुष आबादी का एक बड़ा हिस्सा भारतीय सेना के सैनिक और सैन्य बलों के अधिकारी थे और इन लोगों की सुरक्षा के लिए इन क्षेत्रों की महिलाओं ने उपवास करना शुरू कर दिया। इन सशस्त्र बलों, पुलिसकर्मियों, सैनिकों और सैन्य कर्मियों ने दुश्मनों से देश की रक्षा की और महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करती थी।
इस त्यौहार का समय रबी फसल के मौसम की शुरुआत के साथ मेल खाता है, जो इन उपरोक्त क्षेत्रों में गेहूं की बुवाई का मौसम है। महिलाएं मिट्टी के बर्तन या करवा को गेहूं के दानों से भरती हैं और उन्हें रबी के अच्छे मौसम की प्रार्थना करते हुए भगवान को अर्पित करती है।
हाल के दिनों में पतियों ने भी अपनी पत्नियों के लिए व्रत रखना शुरू कर दिया है। प्रेम भाव ने त्यौहार को और अधिक विशेष बना दिया है क्योंकि इस दिन पति पत्नी दोनों अपना प्यार, समझ और करुणा व्यक्त करते है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
करवा चौथ पर महिलाएं देवी पार्वती की विशेष प्रार्थना करते हुए यह व्रत रखती है। वे इस दिन सूर्योदय से चंद्रोदय तक कुछ भी नहीं खाती है। यह त्यौहार विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की समृद्धि, सुरक्षा और लंबी उम्र की प्रार्थना के लिए मनाया जाता है।
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