काल भैरव मंदिर, उज्जैन (Kaal Bhairav Mandir Ujjain)
काल भैरव मंदिर, उज्जैन मे क्षिप्रा नदी किनारे स्थित एक हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर लगभग 6000 वर्ष पुराना माना जाता है। यह मंदिर भगवान काल भैरव को समर्पित है, और यह महाकाल मंदिर से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह पूरे विश्व मे एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां पर काल भैरव भगवान को प्रसाद के रूप मे मदिरा चढ़ाया जाता है।
यह मंदिर एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है। वाम मार्ग के मंदिरों की ये विशेषता होती है कि मंदिरों में प्रसाद के रूप मे मांस, मदिरा, मुद्रा, बलि, चढ़ाए जाते है।
काल भैरव मंदिर की कथा (Kaal Bhairav ki Katha)
हिन्दू धार्मिक ग्रंथ स्कंद पुराण में काल भैरव के कथा का वर्णन किया गया है। स्कंद पुराण के अनुसार चारों वेदों के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना आरंभ किया, तो देवतागण भगवान शिव की शरण में गए ताकि पांचवा वेद न रचा जा सके। लेकिन ब्रह्मा जी ने किसी की नही सुनी और पांचवे वेद की रचना कर डाली। इस बात पर भगवान शिव को गुस्सा आ गया और उन्होंने तीसरे नेत्र को खोल दिया जिस से बालक बटुक भैरव प्रकट हुए। उग्र स्वभाव के बटुक बालक ने क्रोध में ब्रह्मा जी का पांचवां सर काट दिया।
जिससे उन्हे ब्रह्म हत्या का पाप लग गया।ब्रह्म हत्या के दोष को दूर करने के लिए भैरव कई स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। आखिर में भैरव भगवान शिव के पास गये। भगवान शिव ने भैरव को बताया कि वो उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करे। तब उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिलेगी। उसी समय से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है।
एक अन्य कथा के अनुसार माता सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह कर लिया। सती के इस फैसले सती के पिता राजा दक्ष बहुत दुखी और क्रोधित हुए। राजा दक्ष ने भगवान शिव को अपमानित करने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सती और भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। सूचना मिलने पर सती ने भगवान शिव से उस यज्ञ में शामिल होने की इच्छा जाहिर किया। तब भगवान शिव ने सती को समझाया कि बिना निमंत्रण किसी भी आयोजन में नहीं जाना चाहिए, फिर वह अपने पिता का घर ही क्यों न हो। लेकिन सती नहीं मानी और यज्ञ मे जा पहुंची। यज्ञ मे सभी देवी, देवता, ऋषि, मुनि, गंधर्व आदि निमंत्रित थे।
इस बात पर सती नाराज होकर पिता से महादेव तथा उनको न बुलाने का कारण पूछती है।तो राजा दक्ष भगवान शिव का अपमान करते है। इस अपमान से आहत सती यज्ञ के हवन कुंड की अग्नि में आत्मदाह कर लेती है। भगवान शिव सती के आत्मदाह की घटना से आहत होते है और क्रोध करते है जिस से काल भैरव की उत्पत्ति होती है।काल भैरव राजा दक्ष का सर धड़ से अलग कर देते है। तब से काल भैरव भगवान की पूजा होती है।
काल भैरव मंदिर, उज्जैन की विशेषताऐ
- एक मान्यता के अनुसार उज्जैन के राजा भगवान महाकाल ने कालभैरव को उज्जैन शहर की रक्षा के लिए नियुक्त किया था। इसलिए भगवान कालभैरव को शहर का कोतवाल भी कहते है।
- भैरव मंदिर के चारो ओर दीवार है। जिस का निर्माण परमार वंश कालीन राजाओ ने कराया था।
- ग्वालियर के राजघराने से प्रत्येक वर्ष भगवान काल भैरव के लिए पगड़ी आता है। कहा जाता है कि लगभग 400 वर्ष पहले सिंधिया घराने के राजा महादजी सिंधिया शत्रु राजाओं से बुरी तरह से हार गए थे। जब वे कालभैरव के मंदिर में पहुंचे तो उनकी पगड़ी यहाॅं गिर गई। तब महादजी सिंधिया ने अपनी पगड़ी भगवान कालभैरव को समर्पित कर दी और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान से प्रार्थना की थी।
- इस मंदिर मे स्थित कालभैरव की प्रतिमा मदिरा (शराब) का सेवन प्रसाद के रूप मे करती है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि ये मदिरा जाती कहां है ये रहस्य आज तक बना हुआ है।
काल भैरव कौन है (Kaal Bhairav Kon hai)
भगवान् भोलेनाथ के पांचवे अवतार को काल भैरव मन गया है। काल भैरव की उत्पत्ति के सम्बन्ध में माना जाता है कि जब भगवान् शिव अंधकासुर राक्षस को नष्ट करते है तब भगवान शिव के रक्त से बाबा काल भैरव उत्पन्न होते है। बाबा काल भैरव को ही भैरवनाथ के नाम से भी जाना जाता है। भैरवनाथ, नाथ संप्रदाय के पूजनीय माने जाते है।
काल भैरव शराब क्यों पीते है
Kaal Bhairav भगवान् शिव के रक्त से उत्पन्न होने के कारण तमोगुण प्रवृत्ति के है। और तमोगुण प्रवृत्ति वाले मांसाहारी, तामसी एवं नशीले पदार्थों का सेवन करते है , इसलिए बाबा काल भैरव तामसी प्रवृत्ति के कारण शराब का सेवन करते है। माना जाता है कि बाबा काल भैरव शराब को प्रसाद के रूप में ग्रहण करके अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते है।
काल भैरव मंदिर उज्जैन टाइमिंग | Kaal Bhairav Ujjain Timing
Kaal Bhairav Mandir अपने भक्तों के लिए प्रातः काल 6 बजे खुल जाता है, इसके बाद 7 बजे से 8 बजे तक सुबह कीआरती होती है। इस प्रकार दिनभर मंदिर भक्तों के लिए खुला ही रहता है। शाम को 6 बजे से 7 बजे तक शाम की आरती होती है और रात्रिकाल में 10 बजे मंदिर बंद कर दिया जाता है।
काल भैरव जयंती (Kaal Bhairav Jayanti)
प्रतिवर्ष मार्घशीर्ष माह की अष्टमी तिथि (कृष्ण पक्ष) को काल भैरव जयंती बहुत ही धूम धाम के साथ मनाई जाती है। इसी दिन भगवान् भोलेनाथ के लहू से काल भैरव का अवतरण हुआ था।
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