जवाई बांध

Jawai Bandh, जवाई बांध : संपूर्ण जानकारी

जवाई बांध (Jawai Bandh) का नाम किसने नहीं सुन रखा। राजस्थान के पाली जिले के सुमेरपुर गांव में स्थित इस बांध का निर्माण जोधपुर के राजा उम्मेद सिंह ने करवाया था।

इसका निर्माण 1957 में सम्पूर्ण हो गया था। इस कार्य में लगभग 11 साल का समय लग गया। बांध के निर्माण कि शुरुवात तो इंजीनियर एडगर और फर्गुसन के पर्यवेक्षण में हुई थी और इंजीनियर मोती सिंह के समय यह कार्य सम्पूर्ण हो गया था।

यह बांध जवाई नदी पर बनाया गया था क्यूंकि पाली और जालौर में बाड़ की घटनाऐं बढ़ती ही जा रही थी। जवाई नदी असल में लुनी नदी से निकलती है।

जवाई बांध पर्यटकों के लिए एक अच्छा स्थान है, खास कर कि प्रकृति–प्रेमियों के लिए। यहां पर उन्हें तेंदुए , मगरमच्छ, प्रवासी पक्षी, आदि पशु–पक्षी और हरियाली भी देखने को मिलेगी। खास कर कि सर्दी के मौसम में कई प्रवासी पक्षी देखने को मिलते है जैसे की रोबिन पक्षी, फ्लेमिंगो, आदि। क्यूंकि पास ही मे जवाई पर्वत और जवाई नदी है जो इस जगह की सुंदरता को और भी बड़ा देते है।

Jawai Band 259 मीटर लंबा बांध है इसलिए इसे पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा बांध माना जाता है।

जवाई बांध के लाभ – सिंचाई और बिजली का स्त्रोत

वैसे तो इस बांध का निर्माण पाली जिले की पानी की जरूरतें पूरी करने के लिए किया गया था , परंतु अगर बांध में पानी बच जाए (जैसा अधिकतर बार देखा भी जाता है) तो इसे पाली और जालौर जिले की सिंचाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। पाली जिले की 26 हज़ार और जालौर जिले की 15 हजार हेक्टेयर भूमि पर जवाई बांध की सहायता से ही सिंचाई होती है।

यही नहीं, बल्कि पाली जिले के 33 और जालौर जिले के 22 गांवो की पेयजल पूर्ति भी जवाई बांध ही करता है।

बल्कि 6 वर्ष पहले “शिवगंज–जवाई जल प्रदाय योजना”  के तहत शिवगंज वासियों के पेयजल कि समस्या भी खतम हो गई।

सई बांध और जवाई बांध का मिलन

जब जवाई बांध (Jawai Bandh) के सूखने के कारण पाली और जालौर के किसान और गांव वासियों को परेशानी होने लगी तब सरकार ने 1977 में एक सुझाव निकाला की वह उदयपुर के सई बांध का पानी जवाई बांध तक पहुंचाएंगे।

तब जाकर एक सुरंग का निर्माण किया। यह सुरंग 6.7 किलो मीटर लंबी और 12 फीट चोड़ी है। इसके निर्माण से कई हद तक सारी परेशानियां खतम हुई।

जवाई बांध के तेंदुए और गांव वासियों का शांतिपूर्ण सह–अस्तित्व

जवाई बांध (Jawai Bandh) के आस पास तेंदुओं का दिखना बहुत आम बात हैं। यहां के लोगो के अनुसार कुछ 70 से 90 तेंदुए यहां निवास करते हैं। यहां के रबाड़ी लोग उनको अपना रक्षक समझते हैं और मानते है कि कोई भी तेंदुए किसी को कभी नुकसान नहीं पहुंचाएगा। और यह बात बिल्कुल सही साबित भी हुई हैं क्यूंकि आज तक ऐसा कोई किस्सा नहीं हुआ जब किसी तेंदुए ने किसी इंसान पर हमला किया हो।

बल्कि मंदिर के पुजारी तो बिना किसी के रक्षण के सुबह पूजा करने मंदिर में जाते हैं, वहां तेंदुए तो होते है परंतु कोई हानि नहीं पहुचाते।

गांव के लोग किसी त्योहार पर ज्यादा आवाज नहीं करते हैं और गाने भी कम बजाते है ताकि तेंदुओं को परेशानी ना हो। यह सारी बाते इस चीज का प्रमाण है की मनुष्य और पशु–पक्षी एक साथ निवास कर सकते हैं, हमे अपनी सुविधाओ और लालच के चलते किसी भी प्राणी को मारने कि आवश्कता नहीं है।

तेंदुओं कि घटती संख्या को मध्य नज़र रखते हुए यहां पर एक “जवाई बांध कंजर्वेशन रिज़र्व” का निर्माण हुआ है । यहां पर पर्यटक जंगल सफारी भी कर सकते है।

शाम के समय तेंदुओं को देखने की संभावना और बड़ जाती है।

जवाई बांध के आस पास घूमने लायक स्थल | Places to visit near Jawai Bandh

देव गिरी मंदिर (Dev Giri Mandir)

यह मंदिर जवाई बांध के पास ही स्थित जवाई पर्वतों में है। आशापुरा माता का यह मन्दिर बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां के लोगो का यह मानना है की आशापुरा माता उन्हें सारे संकटों से बचा कर रखती है। और यह बात सही भी सिद्ध हुई है, क्यूंकि यहां जंगली जानवर आते तो है परंतु किसी को हानि पहुंचाने नही बल्कि माता के दर्शन करने।

कंबेश्वर महादेव मंदिर

जवाई बांध से सिर्फ 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर शिवगंज में है। इस मंदिर में जाने का सबसे सही समय होता है नवंबर का महिना क्यूंकि तब यहां पर साल में सिर्फ एक बार लगने वाले मेले का आयोजन होता है। चुकी यह मंदिर पहाड़ियों के बीच स्थित है, मंदिर तक पहुंचने का सफ़र और भी रोमांचक और दिलचस्प हो जाता है।

रबाड़ीयों का गांव

जवाई बांध के आस–पास ही रबाड़ी जाति के लोग निवास करते है । अगर आप जवाई बांध जा रहे है तो यहां के इतिहास को जानने का सबसे आसान तरीका इन लोगो को जानना।

यह जाति बहुत ही प्राचीन है और राजस्थान के अलावा गुजरात, पंजाब, मध्य प्रदेश, आदि जगहों पर भी निवास करती है। रबाड़ी लोग खेती–बाड़ी और पशु–पालन का कार्य करते है। यह लोग आशापुरा माताजी की पूजा करते है।     

सालो से यह जाति यहां के पशु–पक्षी जैसे तेंदुए, मगरमच्छ, आदि के साथ शांति पूर्वक निवास कर रही है। इनका मानना है की तेंदुए उनकी जाति की रक्षा के लिए है और उन्हें कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।

इस जाति के पुरुष अपने सर पर लाल रंग की पगड़ी बांध कर रखते है और महिलाएं अपने पूरे हाथो पर सफेद रंग की चूड़ियां पहनती है। इस पहनावे के कारण रबारियों को पहचानना काफी आसान होता है।

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