पूरे विश्व में भारत देश की एक अलग हीं पहचान मानी जाती है। भारत जो कि विविधता में एकता के लिए जाना जाता है। कहते है कि यहां भाषा, खानपान, पहनावे, और संस्कृति से ले कर हर चीज़ राज्य बदलते हीं अलग रुप ले लेती है। सात रंगों से भी रंगीन मानी जाती है भारत की सभ्यता।
भारत का हर एक राज्य अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए है। हर एक राज्य की अपनी विशेषता और एक अनसुनी गाथा है। कुछ राज्यों और शहरों का इतिहास रामायण और महाभारत के युग से भी जुड़ा माना जाता है जो इन राज्यों को अपनी एक अनोखी पहचान देते हैं इन्हीं कुछ राज्यों में से एक है बिहार राज्य।
यूं तो बिहार राज्य का हर एक शहर हीं निराला है। मगर यहां का एक शहर बहुत हीं लोकप्रिय माना जाता है और वह है यहां का शहर ‘गया’। गया बिहार में स्थित एक ऐसा शहर है जिसे ज्ञान का शहर और विष्णु नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
यहां हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के लोग अधिक देखने को मिलते है। यहां से एक नदी भी बहती है जिसे फल्गु नदी के नाम से जाना जाता है। कहते है, कि इस नदी के तट पर पिंडदान करने से पितरों को बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
गया शहर की विशेषता
वैसे तो भारत का हर एक शहर अपनी किसी ना किसी विशेषता के लिए जाना जाता है। मगर बिहार का गया शहर कुछ अलग है। यह शहर ना केवल ज्ञान के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यह शहर मोक्ष के लिए भी जाना जाता है।
गया बिहार का एक ऐसा शहर है, जहां लाखों कि संख्या में लोग हर साल यहां अपने पितरों के मोक्ष और मुक्ति के लिए पिंडदान कराने आते है। यही नहीं यहां का इतिहास भगवान राम से भी जुड़ा माना जाता है।
गया शहर में पिंडदान का पौराणिक इतिहास
हिंदू परंपरा के अनुसार एक पुत्र को अपने माता पिता की सेवा उनके जीवित रहने पर तथा उनके मरने के बाद उनका विधिवत श्राद्ध व पिंडदान कर के करना चाहिए। ऐसा करने से पुत्र को पितरों का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में बाधा उत्पन्न नहीं होती।
गया में किए जाने वाले इस प्रक्रिया का उल्लेख पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। कहते हैं कि भगवान राम और माता सीता ने भी इस पिंडदान के नियम का पालन किया था। जब राजा दशरथ की मृत्यु हुयी उसके पश्चात भगवान राम और माता सीता ने गया में हीं पिंडदान किया था।
पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष मिल जाता है और हिंदू धर्म में इसका बड़ा महत्व माना जाता है।
गया को विष्णु नगर क्यों कहा जाता है?
गया में किए जाने वाले पिंडदान का उल्लेख विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी मिलता है। विष्णु पुराण में ऐसा कहा गया है कि गया में किया जाने वाला पिंडदान पितरों को मोक्ष देता है। ऐसा करने से पितरों के लिए स्वर्ग के रास्ते खुल जाते हैं।
इसके अलावा यह भी धारणा है कि यहां भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रुप में विराजते है। इसलिए यह शहर विष्णु नगरी और पितृ तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।
गया के मुख्य पर्यटन स्थल
Gaya (गया) ना केवल ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति स्थल के रुप में जाना जाता है बल्कि यह शहर कई तीर्थ स्थलों के लिए भी प्रचलित है। इनमें से कुछ तीर्थ स्थलों के नाम निम्नलिखित है:
- विष्णुपद मंदिर: गया का सबसे प्रसिद्ध मंदिर विष्णुपद मंदिर माना जाता है। यह मंदिर फल्गु नदी के पश्चिम छोर पर है। इस मंदिर कि विशेषता यह है कि यह मंदिर विष्णु भगवान के पदचिह्नों पर बना है।
- सूर्य मंदिर: गया का विख्यात सूर्य मंदिर विष्णुपद मंदिर से 20 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है जो सोन नदी के निकट स्थित है।
- ब्रह्मयोनि पहाड़ी: यह पहाड़ी अपनी चोटी पर स्थित शिव मंदिर के लिए जानी जाती है। कहा जाता है कि इस पहाड़ी की चोटी पर चढ़ने के लिए 440 सीढ़ियों को चढ़ना पड़ता है।
- मंगला गौरी मंदिर: यह मंदिर माता गौरी को समर्पित है जो कि पहाड़ पर स्थित है। यह शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर के प्रवेश पर आपको मां काली, गणेश, भोलेनाथ और हनुमान के भी मंदिर मिल जाएंगे।
गया जाने का मार्ग
Gaya (गया) बिहार राज्य में स्थित दुसरा सबसे बड़ा शहर है। गया जाने के लिए आपको मुख्य तीन मार्ग मिल सकते हैं। जिनमें सड़क मार्ग, हवाई मार्ग और रेल मार्ग शामिल है।
यदि आप सड़क मार्ग चुनते है, तो आपको गया के लिए बस लेनी होगी। गया जाने के लिए आपको पटना, राजगीर, बनारस, और रांची से बस मिल जाएगी। गया में फल्गु नदी के निकट दों बस स्टैंड है। यहां से बौद्धगया के लिए नियमित बस मिलती है।
हवाई मार्ग के विकल्प से आप गया अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे के ज़रिए गया पहुंच सकते है।
रेल मार्ग के ज़रिए आप गया जंक्शन पर पहुँच सकते है जहां गया के लिए पटना, कोलकाता, पुरी, बनारस, चेन्नई, मुंबई, नई दिल्ली, नागपुर, गुवाहाटी, जयपुर इत्यादि से ट्रेनें आती है।
गया के कुछ रोचक तथ्य
Gaya (गया) शहर अपने आप में बड़ा अनूठा है। यहां के बहुत से रोचक तथ्य है जिनमें से कुछ यहां बताए गए है।
- गया बिहार का दुसरा सबसे बड़ा शहर है जिसका उल्लेख हिंदू पुराणों में मिलता है।
- गया से 13 किलोमीटर दूर बौद्धगया स्थित है जहां कहते हैं कि बोधि वृक्ष के नीचे हीं बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुयी थी।
- गया मौर्यकाल का एक खास नगर माना जाता है।
- गया में खुदाई के दौरान अशोक सम्राट से जुड़ा एक पत्र भी मिला था।
गया शहर का इतिहास
Gaya (गया) शहर के उत्तपत्ति की एक अनोखी कहानी है। कहा जाता है कि गयासुर नाम का एक भस्मासुर कुल का राक्षस हुआ करता था। जिसने एक बार ब्रह्मा जी को कठिन तपस्या कर प्रसन्न किया था। जिसके पश्चात उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि उसका शरीर इतना पवित्र हो जाए कि लोग उसके दर्शन से हीं पाप मुक्त हो जाए। जो वरदान मिलते हीं स्वर्ग में आबादी बढ़ने लगी और लोग पाप करने लगे।
तभी यह सब देख देवताओं ने यज्ञ करने का सोचा और उसके लिए गयासुर से एक स्थल की मांग की। तभी गयासुर ने अपना शरीर यज्ञ करने के लिए देवताओं को दे दिया। जैसे हीं गयासुर लेटा उसका शरीर बहुत दुर तक फैल गया और तभी से वह जगह गया नाम से जाने जानी लगी।
इसके बाद गयासुर ने यह इच्छा ज़ाहिर कि वह लोगो को पाप मुक्त करना चाहता है। तब उसे यह वरदान मिला की गया की जगह लोगों को मोक्ष और पाप मुक्त करने के काम आएगी।
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