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हरतालिका तीज व्रत कथा

हरतालिका तीज व्रत कथा | Hartalika Teej 2022 Vrat Katha

Posted on August 25, 2022
Table of contents
  1. हरतालिका तीज की रोचक व्रत कथा
  2. हरतालिका तीज 2022 तिथि
  3. हरतालिका तीज का महत्व
  4. हरतालिका तीज के नियम
  5. हरतालिका तीज की पुजा विधि
  6. हरतालिका तीज व्रत कथा

हरतालिका तीज की रोचक व्रत कथा

हिंदू धर्म में व्रतों की अपनी एक अलग जगह मानी जाती है। हर एक व्रत अपने आप में अनोखे और अलग अलग वरदान पाने के लिए रखे जाते हैं। इन्में से अधिकतर व्रत स्त्रियाँ रखती हैं। स्त्रियों के लिए उनके परिवार की सुख समृद्धि और सेहत सबसे ऊपर होती हैं। यही वजह है कि अनेक व्रत स्त्रियों द्वारा किए जाने वाले उनके सुहाग या परिवार के सुख शांति का वरदान पाने के लिए किए जाते हैं।

इन्हीं कुछ व्रतों में से एक है हरतालिका तीज। यह व्रत स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षा के लिए या कुंवारी कऩ्याएं मनचाहा वर पाने के लिए करती हैं। इस व्रत का उल्लेख पुराणों में मिलता है और इसका संबंध माता पार्वती और भगवान शिव से माना जाता है। इस दिन व्रतियां निर्जला उपवास रख कर अपने पति के लंबी आयु की कामना भगवान शिव और माता पार्वती से करती हैं। वहीं रात्रि पहर में व्रतियां पुजा अर्चना के साथ हरतालिका तीज व्रत कथा सुनती हैं।

हरतालिका तीज 2022 तिथि

हर साल की भांति इस वर्ष भी स्त्रियाँ हरतालिका तीज रखेंगी जो कि हर वर्ष भाद्रपद माह में पड़ने वाले शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को मनायी जाती हैं। इस वर्ष यह योग 30 अगस्त को पड़ रहा है। इसलिए व्रतियां इसी दिन हरतालिका तीज का उपवास रखेंगी और अगले दिन व्रत का समापन करेंगी।

हरतालिका तीज का महत्व

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार हरतालिका तीज का व्रत माता पार्वती से जुडा़ माना जाता है। मान्यता यह भी है कि इस तीज का नाम हरतालिका तीज इसलिए पड़ा क्योंकि एक बार माता पार्वती की सखियां उनका हरण कर के उन्हें एक जंगल में ले गई थी। क्योंकि उनकी सखियां जान गई थी की माता पार्वती ने अपने मन में भगवान शिव को स्थान दे दिया है और वह उनसे हीं विवाह करना चाहती हैं। इसी कारण इस तीज को हरतालिका तीज के नाम से जाना जाने लगा।

वैसे तो पुराणों में यह उल्लेख मिल हीं जाता हैं कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कितनी कठोर तपस्या की थी। उन्हीं कठोर तपस्या में माता पार्वती ने कई निर्जला उपवास भी रखे थे। जिनमें से एक निर्जला उपवास जो माता पार्वती ने रखा था वह था हरतालिका तीज का उपवास।

यह व्रत माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह करने के लिए किया था। जिसके पश्चात स्त्रियों में इस हरतालिका तीज के प्रति बहुत आस्था रहती है। इस दिन व्रतियां 24 घंटे का उपवास रखती हैं और वह भी निर्जला जिसमें वह अन्न जल कुछ ग्रहण नहीं करती।

रात्रि पहर में व्रतियां नहा धो कर सोलह श्रृंगार करती है और भगवान शिव की और माता पार्वती की पुजा कर अपने पति के लंबी उम्र की कामना करती हैं। ना केवल विवाहित महिलाएं बल्कि यह व्रत कुंवारी कऩ्याएं भी करती है ताकि उन्हें मनचाहा और योग्य वर मिले।

हरतालिका तीज के नियम

निर्जला उपवास होने के कारण हरतालिका तीज कठीन व्रतों में से एक माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि यह व्रत एक बार शुरू कर देने के बाद इसे स्त्रियां किसी भी वर्ष करना छोड़ नहीं सकती।

इसके अलावा क्योंकि यह व्रत 24 घंटो का होता है इसलिए व्रतियां इस बीच उपवास तोड़ नहीं सकती और अगले दिन पुजा करने के पश्चात हीं इसका समापन कर सकती हैं।

इस दिन कहा जाता है कि व्रतियों को दिन में सोने से परहेज करना चाहिए। इसके अलावा रात्रि में भी जागरण करना चाहिए।

हरतालिका तीज की पुजा विधि

हरतालिका तीज करने वाली व्रतियों को तीज के दिन अन्न जल 24 घंटे के लिए त्याग कर भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना करनी चाहिए। साथ हीं साँझ के पहर में नहा धो कर सोलह श्रृंगार कर पुजा अर्चना करनी चाहिए।

इस दिन स्त्रियां माता पार्वती को भी सोलह श्रृंगार के सामान चढ़ाती हैं। इसके अलावा पुजा के वक्त इस दिन हरतालिका तीज की व्रत कथा सुनना बहुत हीं लाभकारी माना जाता है। हरतालिका तीज व्रत कथा सुनने से इस तीज का पुर्ण फल व्रतियों को मिलता है।

हरतालिका तीज व्रत कथा

हरतालिका तीज के दिन व्रतियों द्वारा सुनी जाने वाली एक कहानी भगवान शिव ने हीं माता पार्वती को सुनाई थी। जिसे सुना कर भगवान शिव ने माता पार्वती को उन्हें उनके पुर्व जन्म की याद दिलाने का प्रयास किया था।

इस कहानी में भगवान शिव, माता पार्वती को बताते हैं कि वह बचपन से हीं उन्हें पाने के लिए कठोर तप करते आ रही हैं। भगवान शिव आगे कहते हैं कि किस तरह माता पार्वती ने बिना कुछ खाए पिये केवल हवा और सुखे पत्तों पर जीवित रह कर भगवान शिव की तपस्या की थी।

माता पार्वती की कठोर तपस्या देख उनके पिता भी बहुत दुखी थे। इसके पश्चात उनके पिता के पास भगवान विष्णु के विवाह का प्रस्ताव आता है माता पार्वती के लिए। जिस पर उनके पिता तो अपनी स्वीकृति देते है परंतु माता पार्वती दुखी हो जाती है।

इस पर माता पार्वती अपने प्राण त्याग देने का विचार भी करती हैं मगर यह सब जानकर उनकी सखी उन्हें घने जंगल मे ले जाती है। जहां माता पार्वती अपनी तपस्या शुरू करती हैं। माता पार्वती एक गुफा में मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण कर भगवान शिव की आराधना में लीन हो जाती हैं।

माता पार्वती की इतनी कठोर तपस्या देख भगवान शिव अपनी उपस्थिति माता पार्वती को दिए बिना रुक नहीं पाते। तभी वह माता के सामने उपस्थित होते हैं और उनसे वरदान मांगने को कहते हैं। माता पार्वती अपनी हृदय की बात भगवान शिव के समक्ष रख देती हैं और उन्हें अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार करने को कहती हैं। जिसे भगवान शिव मान लेते हैं।

वहीं दुसरी और उन्हें खोजते खोजते माता पार्वती के पिता गुफा में पहुंच जाते हैं। जहां माता पार्वती उन्हें सबकुछ बता देती है और उनके समक्ष प्रस्ताव रखती हैं कि वह उनके साथ घर इसी शर्त पर लौटेंगी कि वह उनका विवाह भगवान शिव से करवाएंगे। जिस पर उनके पिता अपनी स्वीकृति दे देते हैं और भगवान शिव का और माता पार्वती का विवाह हो जाता है।

यही वजह है कि स्त्रियां इस हरतालिका तीज को अपने सुहाग के लंबी आयु के लिए और कुंवारी कऩ्याएं अपने लिए मनचाहा और योग्य वर पाने के लिए रखती हैं।

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