गोंड जनजाति (Gond Janjati) दुनिया के सबसे बड़े आदिवासी समूहों में से एक है। यह भारत की सबसे बड़ी जनजाति है, जो पूर्व-द्रविड़ जाति से संबंधित है।
गोंड जाति क्या है ? | Gond Janjati kya hai
Gond भारत में पाया जाने वाला एक प्रमुख जातीय समुदाय है। इन्हें कोइतुर या गोंडी भी कहा जाता है। यह भारत के सबसे पुराने समुदायों में से एक है। गोंड जनजाति के लोग कृषि, पशुपालन और पालकी ढोने का काम करते है। वे हिंदी, गोंडी, उड़िया, मराठी और स्थानीय भाषाएं बोलते है।
गोंड जनजाति का इतिहास | Gond Janjati ka Itihas
गोंड जनजाति का इतिहास गौरवशाली है। गोंडों का क्षेत्र गोंडवाना के नाम से प्रसिद्ध है, जहां 15वीं और 17वीं शताब्दी में राजगोंड राजवंशों का शासन था। राजगोंड राजवंशों का शासन मध्य भारत से पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार तक फैला हुआ था। 15वीं शताब्दी में चार महत्वपूर्ण गोंड राज्य थे- खेरला, गढ़ामंडला, देवगढ़ और चंदागढ़। गोंड वंश के प्रसिद्ध शासकों में राजा बख्त बुलंद शाह और रानी दुर्गावती के नाम शामिल हैं। रानी दुर्गावती गढ़ामंडला की सबसे प्रसिद्ध योद्धा-रानी हैं। 1564 में अपनी मृत्यु तक, रानी दुर्गावती ने अकबर के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वीर नारायण, रानी दुर्गावती के पुत्र थे और उनकी मृत्यु के बाद राज्य पर शासन किया। वीर नारायण ने भी अपनी मृत्यु तक मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। कुछ समय के लिए गोंड राज्यों पर मुगलों ने विजय प्राप्त की, अंततः गोंड राजाओं को बहाल कर दिया गया और मुगलों के आधिपत्य में ले लिया गया।
तीसरे आंग्ल – मराठा युद्ध तक, मराठों द्वारा गोंड राजाओं के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया गया था। युद्ध के बाद अंग्रेजों ने गोंड की जमींदारियों को नियंत्रित कर राजस्व वसूली अपने हाथ में ले ली। अंग्रेजों की औपनिवेशिक वन प्रबंधन प्रथाओं ने गोंडों को हाशिए पर डाल दिया। गोंड अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर थे परन्तु अंग्रेजों की भेदभावपूर्ण वन नीतियों ने उनके अधिकार छीन लिए। इस वजह से गोंड जनजाति ने 1910 में प्रसिद्ध बस्तर विद्रोह का नेतृत्व किया, जो अंग्रेजों के खिलाफ एक सशस्त्र संघर्ष था।
गोंड जनजाति की जीवनशैली | Gond Janjati ki Jiwansheli
गोंड जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि है, लेकिन वे कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते है। इनका मुख्य भोजन बाजरा है, जिसे ये दो रूपों (कोदो और कुटकी) में ग्रहण करते है। इनकी त्वचा का रंग काला, बाल काले, होंठ मोटे, नाक बड़ी और फैली हुई होती है। वे अलिखित भाषा गोंडी बोली बोलते है, जो द्रविड़ भाषा से संबंधित है। गोंड मानते हैं कि पृथ्वी, जल और वायु देवताओं द्वारा शासित है।
Gond लोग स्वभाव से सक्रिय होते है। वह दिनभर किसी न किसी काम में लगे रहते है। स्त्री और पुरुष दोनों में शारीरिक शक्ति होती है। वे निरन्तर कुछ न कुछ करते रहते हैं जैसे जंगली भूमि को साफ करना, खेती करना, टोकरियाँ बनाना, शहतूत और लाख की खोज करना और फिर उसका भंडारण करना, शिकार करना, बीज और फल इकट्ठा करना, गोंद इकट्ठा करना, चटाई बुनना, झोपड़ियाँ बनाना, वाद्य यंत्र बनाना, मुर्गियाँ, सूअर, गाय, भैंस आदि पालना, पानी भरना, खाना बनाना आदि। गोंड जनजाति के लोग बहुत रचनात्मक होते है। वे अपनी झोपड़ियों को अलग-अलग रंग की मिट्टी से ढकते हैं। ये झोपड़ियाँ बहुत ही आकर्षक लगती है।
गोंड जनजाति की उपजनजाति | Gond Janjati ki Upjanjati
Gond Janjati (गोंड जनजाति) को आरक्षण प्रणाली के तहत आंध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में केवल उत्तरप्रदेश के कुछ जिलों में उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है, शेष जिलों में उन्हें अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। गोंडों को चार जनजातियों में बांटा गया है: राजगोंड, मड़िया गोंड, धुर्वे गोंड, खतुलवार गोंड ।
गोंड जनजाति की वंशावली | Gond Janjati Vanshavali
गोंड लोगों को 12 उप-शाखाओं में विभाजित किया गया है – राजगोंड, रघुवली, दाददेव, कलालिया, पाडल, ढोली, ओझायाल, थोत्याल, कोयला मूतुप्ले, कोइकॉयल, कोलम, मुदयाल।
इन लोगों की वंशावली या तो पेड़ पौधे के नाम पर है या जानवर के नाम पर – जैसे कच्छवंश, नागवंश, बकुलवंश, तेंदुवंश । ये लोग प्रकृति के करीब रहते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
गोंड मध्यप्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण जनजाति है, जो प्राचीन काल के गोंड राजाओं को अपना वंशज मानती है। यह एक स्वतंत्र जनजाति थी, जिसका अपना राज्य था और जिसके 52 गढ़ थे। मुगल शासकों और मराठा शासकों ने उन पर हमला किया और उनके क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और उन्हें घने जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में शरण लेने के लिए मजबूर किया।
अधिकांश गोंड आज भी प्रकृति पूजा की अपनी पुरानी परंपरा का पालन करते है। लेकिन भारत की अन्य जनजातियों की तरह उनके धर्म पर भी हिंदू धर्म का खासा प्रभाव रहा है। उनके मूल धर्म का नाम “कोया पुनेम” है, जिसका अर्थ है “प्रकृति का मार्ग”। कुछ गोंड सरना धर्म का भी पालन करते हैं। कई गोंड अभी भी हिंदू धर्म का पालन करते हैं और विष्णु और अन्य हिंदू देवताओं की पूजा करते है। दशहरा, पोला, फाग और पशु उत्सव इनके प्रमुख पर्व है।
गोंड जनजाति के प्रमुख देवता को बारादेव के नाम से जाना जाता है। बारादेव को भगवान, बड़ा देव या कुपर लिंगो के नाम से भी जाना जाता है।
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