गंगासागर पवित्र नदी गंगा और बंगाल की खाड़ी का संगम है, जो इसे देश के सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से एक बनाता है।
अपने धार्मिक महत्त्व के कारण, गंगा दुनिया की सबसे पवित्र नदियों में से एक है। जिस बिंदु पर गंगा समुद्र से मिलती है उसे हिंदुओं द्वारा पवित्र माना जाता है। गंगा सागर मेले के दौरान नदी में पवित्र डुबकी लगाने के लिए हजारों तीर्थयात्री हर साल जनवरी के मध्य में सागरद्वीप जाते है। भारत की विस्तृत संस्कृति और मान्यताओं को देखने के लिए गंगासागर एक उपयुक्त स्थान है।
गंगासागर का महत्व | Gangasagar ka Mahatav
गंगासागर पर एक एकड़ चांदी की रेत और साफ नीला आकाश देखा जा सकता है। यह उन आगंतुकों को शांत वातावरण प्रदान करता है जो अपना सप्ताहांत शांति से बिताना चाहते है। गंगासागर द्वीप देश के सबसे लोकप्रिय हिंदू तीर्थ स्थानों में से एक है। कई हिंदू पुराणों में, गंगासागर नाम का उल्लेख है। गंगासागर के प्रकाश स्तंभ से समुद्र तट के शानदार दृश्य दिखाई देते हैं और यह जगह सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के लिए सबसे उपयुक्त है।
Gangasagar एक आकर्षक पर्यटन स्थल है, जो तीर्थयात्रियों और रोमांच प्रेमियों दोनों को आकर्षित करता है। सुंदरवन में एक द्वीप पर स्थित, गंगासागर गंगा नदी के मुहाने पर समुद्र तट का आकर्षण प्रदान करता है।
गंगासागर की कहानी | Gangasagar ki Kahani
एक बार महाराज सगर ने अश्वमेध यज्ञ प्रारंभ किया। बलि के घोड़ों को यज्ञ विधि के अनुसार छोड़ दिया गया। महाराज सगर के पुत्र घोड़ों के पीछे-पीछे चलने लगे, लेकिन देवलोक के राजा इंद्र को अपनी इंद्रलोक की गद्दी खोने का डर सताने लगा, क्योंकि जो अधिक पुण्य कर्म करता है उसे देवलोक का राजा बना दिया जाता है।
देवराज इंद्र ने एक चाल चली, महाराज सगर के अश्वमेध यज्ञ के घोड़ों को चुरा लिया और पाताल लोक ले गए। कपिल मुनि वहाँ तपस्या कर रहे थे, वहाँ घोड़ों को ले जाकर बाँध दिया। जब सगर के पुत्र घोड़ों की तलाश में पाताल लोक पहुंचे तो वहां बंधे घोड़ों को देखकर उन्होंने सोचा कि तपस्या में बैठे यह ऋषि घोड़ों को यहां लेकर आए है। वे उन मुनि को ध्यान से जगाने का प्रयत्न करने लगे और चिल्लाने लगे। ध्यान में बैठे कपिल मुनि सगर के पुत्रों की बातों से क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने क्रोध की अग्नि से सगर के सभी 6000 पुत्रों को जलाकर भस्म कर दिया।
मोक्ष न मिलने के कारण सगर के पुत्रों की आत्माएं भटकने लगीं। महाराज सगर ने कपिल मुनि से अपने पुत्रों की आत्मा को मुक्त करने की प्रार्थना की। तब कपिल मुनि ने कहा कि जब स्वर्ग की मंदाकिनी को धरती पर लाया जाएगा और उसमें सगर के पुत्रों की अस्थियां अर्पित की जाएंगी तभी ये आत्माएं मोक्ष प्राप्त कर पाएंगी।
इसके बाद महाराज सगर के पौत्र अंशुमन ने मंदाकिनी या गंगा को धरती पर लाने का प्रयास किया। उसके बाद अंशुमन के बेटे दिलीप ने भी कोशिश की। लेकिन वे सफल नहीं हो सके।
उसके बाद दिलीप के पुत्र महाराज भागीरथ का जन्म हुए। महाराज भागीरथ ने घोर कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से गंगा को पृथ्वी पर लाने की प्रार्थना की। स्वर्ग से पृथ्वी पर आने पर गंगा के प्रभाव से पृथ्वी के टूटने या कटने का भय बना हुआ था।
अतः उस प्रभाव को रोकने के लिए भागीरथ ने फिर से तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया। भगवान विष्णु के चरणों से निकली मां गंगा भगवान शिव के केशों से प्रवाहित होने लगीं। उसके बाद भगवान शिव के केशों से गंगा, नदी बनकर हिमालय से निकलती हुई महाराज भगीरथ के पीछे पाताल लोक पहुंची, जहां 6000 सगर पुत्रों की अस्थियां और राख पड़ी हुई थी। सगर के पुत्रों की आत्माओं को माँ गंगा के जल से मुक्ति मिली।
जिस स्थान पर माँ गंगा ने सगर के पुत्रों को मुक्ति दिलाई थी, उस स्थान को श्री गंगासागर धाम के नाम से जाना जाता है। हिमालय से निकली गंगा इसी स्थान पर समुद्र में मिल जाती है। बंगाल की खाड़ी में स्थित गंगासागर हिंदुओं का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन यहां स्नान करने से 10 अश्वमेध यज्ञ करने या 100 गौ दान करने का पुण्य मिलता है।
गंगासागर मेला | Gangasagar Mela
Gangasagar Mela कुंभ मेले के बाद हिंदू तीर्थयात्रियों का दूसरा सबसे बड़ा मेला है। गंगासागर मेला प्रतिवर्ष केवल गंगा सागर (सागर द्वीप) पर मनाया जाता है। हर साल मकर संक्रांति के दौरान देश भर से तीर्थयात्री गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी के संगम पर पवित्र डुबकी लगाने आते हैं, इसके बाद कपिल मुनि मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। इस मंदिर से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई है और यह मंदिर भक्तों के बीच अत्यधिक पूजनीय है।
गंगासागर मंदिर | Gangasagar Mandir
कपिल मुनि मंदिर गंगा सागर में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इसकी स्थापना 1437 में स्वामी रामानंद ने की थी। इसकी मुख्य संरचना एक पत्थर का खंड है, जिसे ऋषि कपिल का प्रतिनिधित्व माना जाता है। संत की मूर्ति के बाएं हाथ में पानी का एक छोटा बर्तन और दाहिने हाथ में एक माला है। यहां भागीरथ, राम और सीता के चित्र भी देखे जा सकते हैं। तीर्थयात्री मंदिर जाने से पहले गंगा में पवित्र डुबकी लगाते हैं। किंवदंती में उल्लेखित महान ऋषि कपिल मुनि को पत्थर के एक खंड द्वारा दर्शाया गया है जिसका अभिषेक और पूजा की जाती है। मंदिर का मूल स्थल समुद्र द्वारा बहा दिया गया है लेकिन पुराने मंदिर की जगह एक आकर्षक नए मंदिर ने ले ली है।
गंगासागर कब जाना चाहिए ? | Gangasagar kab jana chiye
जून से सितंबर मानसून का मौसम है। इस अवधि के दौरान वर्षा स्थिर होती है और इस जगह का दौरा करना मुश्किल हो सकता है। मानसून के बाद के महीने न तो अधिक गर्म होते हैं और न ही अधिक ठंडे और इस अवधि से पर्यटक यहां आना शुरू कर देते है। शीत ऋतु दिसम्बर से प्रारंभ होकर फरवरी तक रहती है जिससे यह यात्रा करने की योजना बनाने का एक आदर्श समय बन जाता है। भारत और पड़ोसी देशों के लाखों तीर्थयात्री मकर संक्रांति के दौरान पवित्र संगम में डुबकी लगाने के लिए गंगासागर के तट पर आते है।
गंगासागर कैसे पहुंचे ? | Gangasagar kese phuche
- वायु द्वारा: गंगासागर का निकटतम हवाई अड्डा नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो कोलकाता में स्थित है। यह कई शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
- ट्रेन द्वारा: कोलकाता से काकद्वीप होते हुए नामखाना तक सियालदह दक्षिण लाइनों पर ट्रेनें चलती हैं, जहां से गंगासागर तक पहुंचने के लिए नौका चलती है।
- सड़क मार्ग से: कोलकाता से हारवुड पॉइंट तक बसें चलती हैं। हरवुड पॉइंट पर मुरीगंगा नदी को नाव से पार करने के बाद कचुबेरिया पहुंचा जा सकता है। कचुबेरिया से, एक बस सेवा है जो पर्यटकों को गंगासागर ले जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
गंगासागर पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित है।
कोलकाता से गंगासागर की दूरी 118 किमी है।
हावड़ा से गंगासागर की दूरी लगभग 155 किमी है।
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