बद्रीनाथ मंदिर

बद्रीनाथ मंदिर – सम्पूर्ण जानकारी | Badrinath Mandir in Hindi

भगवान विष्णु को समर्पित, बद्रीनाथ मंदिर भारत के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर चार धाम और छोटा चार धाम के लिए प्रसिद्ध है, जो हिंदुओं द्वारा बहुत पूजनीय है। बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम को चार धाम के रूप में जाना जाता है। यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ नाम से चार तीर्थ-स्थल है, जिन्हें सामूहिक रूप से छोटा चार धाम के रूप में जाना जाता है। ये तीर्थस्थल प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते है, इसलिए ये पूरे उत्तर भारत में धार्मिक यात्रा के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र कहलाते है।

बद्रीनाथ धाम कहां है?

Badrinath Mandir, जिसे बद्रीनारायण मंदिर भी कहा जाता है, उत्तराखंड के बद्रीनाथ शहर में स्थित है, जो हिंदुओ के चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ लगभग 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अलकनंदा नदी के तट पर गढ़वाल हिमालय में स्थित, यह पवित्र शहर नर और नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित है और आश्चर्यजनक प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है।

बद्रीनाथ धाम की कहानी | Badrinath Dham ki Kahani

एक मान्यता के अनुसार, यह मंदिर 8 वीं शताब्दी तक एक बौद्ध मंदिर था, जिसके बाद आदि शंकराचार्य ने इसे एक हिंदू मंदिर में परिवर्तित कर दिया। एक और मान्यता यह है कि मंदिर मूल रूप से 9 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अलकनंदा नदी में भगवान बद्रीनाथ की एक छवि की खोज की और इसे तप्त कुंड के पास स्थापित किया। उन्होंने उस क्षेत्र में रहने वाले बौद्धों को भी निष्कासित कर दिया। 16 वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा ने मूर्ति को वर्तमान मंदिर में स्थानांतरित कर दिया। गढ़वाल राज्य के विभाजन के समय यह मंदिर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया था। Badrinath Mandir कई जीर्णोद्धार से गुजरा है। 17वीं सदी में गढ़वाल के राजाओं ने इसका विस्तार किया था। 1803 में, यह एक बड़े भूकंप में नष्ट हो गया था और जयपुर के राजा द्वारा इसका पुनर्निर्माण किया गया था।

बद्रीनाथ मंदिर से जुड़ी कई कहानियां है। एक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस स्थान पर तपस्या की थी और अपने गहन ध्यान के दौरान, वे कठोर मौसम से अनजान थे। उनकी पत्नी, देवी लक्ष्मी, बद्री वृक्ष में बदल गईं और भगवान की रक्षा की। वह उनके प्रयासों से प्रसन्न हुए और इसलिए उन्होंने उस स्थान का नाम बद्रिकाश्रम रखा।

बद्रीनाथ मंदिर का रहस्य | Badrinath Mandir ka Rahasya

  • यहां एक कुंड है, जिसमें गर्म पानी हमेशा उपलब्ध रहता है। इसमें स्नान करने के बाद ही लोग बद्री नारायण की पूजा करते है। मान्यता है कि इस कुंड में औषधीय गुण है, जो श्रद्धालुओं को बीमारियों से बचाते है।
  • Badrinath Mandir का उल्लेख कई हिंदू महाकाव्यों, जैसे भागवत पुराण, स्कंद पुराण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
  • बद्रीनाथ उत्तराखंड में स्थित सबसे महत्वपूर्ण विष्णु मंदिरों और पवित्र मंदिरों में से एक है।
  • जिस दिन बद्रीनाथ के कपाट खुलते है, उस दिन रावल साड़ी पहनकर और पार्वती का श्रृंगार कर गर्भगृह में प्रवेश करते है। इसके बाद पूजा की जाती है और फिर कपाट खोल दिए जाते है।
  • बद्रीनाथ धाम के पुजारी केरल के ब्राह्मण है। उन्हें केवल मंदिर में पूजा करने का अधिकार है। हिमालय के मंदिर में सुदूर दक्षिण के एक पुजारी को नियुक्त करने की इस परंपरा का नेतृत्व शंकराचार्य ने किया था, जो आज भी जारी है।
  • साल के छह महीने, जब भारी बर्फ के कारण मंदिर के कपाट बंद हो जाते है, रावल अपने घर केरल लौट आते है और कपाट खुलने की तारीख होते ही वापस बद्रीनाथ आ जाते है।

बद्रीनाथ मंदिर की मूर्ति | Badrinath Mandir ki Murti

मंदिर में भगवान विष्णु की एक काले पत्थर की मूर्ति है, जो 1 मीटर लंबी है और इसे भगवान विष्णु की 8 स्वयंभू मूर्तियों में से एक माना जाता है। इसका उल्लेख भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्य देशमों में भी मिलता है।

माना जाता है कि बद्रीनाथ की मूर्ति की स्थापना देवताओं ने की थी। इसे बौद्धों ने अपने काल में अलकनंदा नदी में फेंक दिया था। आदि शंकराचार्य ने अलकनंदा नदी में बद्रीनाथ की मूर्ति की खोज की और इसे तप्त कुंड गर्म पानी के झरने के पास एक गुफा में स्थापित किया। बाद में रामानुजाचार्य ने मूर्ति को गुफा से निकालकर मंदिर में स्थापित कर दिया।

भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति, जिसे बद्री विशाल भी कहा जाता है, दो भुजाओं को ऊपर उठाए हुए, शंख और चक्र धारण किए हुए है एवं अन्य दो भुजाएँ योगमुद्रा में है। काले पत्थर से निर्मित, भगवान विष्णु की मुख्य मूर्ति ध्यान में बैठे हुए दिखाई देती है। मंदिर में भगवान नारायण के वाहनगरुड़, आदि शंकराचार्य, स्वामी देसिकन और श्री रामानुजम की मूर्तियां भी है।

बद्रीनाथ मंदिर कब खुलता है ?

Badrinath Mandir हर साल अप्रैल में अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर छह महीनों के लिए खुलता है। Badrinath Mandir महाभिषेक के साथ सुबह 4:30 बजे खुलता है। यह जनता के लिए सुबह 6:30 बजे खुलता है और रात 9:00 बजे बंद हो जाता है। यह दोपहर 1:00 बजे से 3:00 बजे तक बंद रहता है। मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय पूजा के दौरान सुबह 6:30 बजे है।

बद्रीनाथ मंदिर कब बंद होता है ?

Badrinath Mandir हर साल नवंबर से अप्रैल तक छह महीने के लिए बंद रहता है। अक्टूबर में भातृ द्वितीया (भाईदूज) के शुभ दिन पर पूजा के बाद मंदिर बंद कर दिया जाता है। बंद होने के दिन, एक अखंड ज्योति दीपक छह महीने तक जलाया जाता है और बद्रीनाथ की छवि को ज्योतिर्मठ में नरसिम्हा मंदिर में स्थानांतरित कर दिया जाता है।

बद्रीनाथ मंदिर कितना पुराना है?

माना जाता है कि 10,279 फीट की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ मंदिर मूल रूप से संत आदि शंकराचार्य द्वारा 9वी शताब्दी में स्थापित किया गया था।

बद्रीनाथ मंदिर कैसे पहुंचे?

भक्त इस पवित्र मंदिर तक पहुँचने के लिए हिमालय से एक कठिन यात्रा करते है। बद्रीनाथ भारत के सभी प्रमुख शहरों से हवाई, रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। बद्रीनाथ का निकटतम हवाई अड्डा देहरादून में जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो लगभग 317 किमी दूर है।

बद्रीनाथ का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश में स्थित है, जो यहां से लगभग 295 किमी दूर है। बद्रीनाथ उत्तराखंड के सभी शहरों से सड़क मार्ग से भी जुड़ा हुआ है, जबकि नई दिल्ली में आईएसबीटी कश्मीरी गेट से इसे भारत के अन्य शहरों से जोड़ने के लिए नियमित बसें उपलब्ध है। देहरादून से बद्रीनाथ के लिए हेलिकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न(FAQ)

बद्रीनाथ मंदिर किस जिले में स्थित है?

बद्रीनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जनपद में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है।

बद्रीनाथ मंदिर किस राज्य में स्थित है?

बद्रीनाथ मंदिर भारत में एक हिंदू तीर्थ स्थान है, यह प्रसिद्ध मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है।

बद्रीनाथ मंदिर किस नदी के किनारे स्थित है?

बद्रीनाथ मंदिर अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित है।

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